2002 के गुजरात दंगों से संबंधित विवादित डॉक्यूमेंट्री के मद्देनज़र भारत में समाचार वेबसाइट बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने संबंधी याचिका में कहा गया था कि डॉक्यूमेंट्री भारत और इसके प्रधानमंत्री के वैश्विक उदय के ख़िलाफ़ गहरी साज़िश का परिणाम है.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ पर भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को 500 से अधिक भारतीय वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने देश की संप्रभुता और अखंडता को कम करने वाला बताया है. उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाना भारतीय नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन करता है.
मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा राज्यपाल ने कहा कि सभी निजी और राजकीय विश्वविद्यालय अधिक से अधिक रोज़गार मूलक पाठ्यक्रम संचालित करें. पाठ्यक्रमों की उच्च गुणवत्ता के मानकों का कड़ाई से पालन करें.
यूजीसी के सचिव रजनीश जैन द्वारा जारी किए गए सर्कुलर में उच्च शिक्षा संस्थानों और उनसे संबद्ध कॉलेजों से कहा गया है कि वे सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के समाधान के रूप में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर द्वारा विकसित 'मेडिटेशन एंड मेंटल हेल्थ' सत्र आयोजित करें.
उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति रद्द करने के हाईकोर्ट के निर्णय को बरक़रार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक वीसी के पास विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष का शिक्षण अनुभव होना चाहिए और उनका नाम एक सर्च कम सलेक्शन कमेटी द्वारा अनुशंसित किया जाना चाहिए.
सीयूईटी परिणाम के बाद कई छात्रों द्वारा निजी संस्थान छोड़कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने पर कॉलेज/विश्वविद्यालयों द्वारा पूरी फीस वापस न करने की शिकायतों के मद्देनज़र यूजीसी ने चेताया है कि उसके शुल्क वापसी और मूल प्रमाण-पत्र वापस करने संबंधी नियमों के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी.
वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘गो-बारस’ के मौक़े पर पूजा के आयोजन में कर्मचारियों को सपरिवार उपस्थित रहने को कहा गया. आए दिन ऐसे आयोजन कई विश्वविद्यालयों के कैलेंडर का हिस्सा बनते जा रहे हैं और ऐसा करते हुए विश्वविद्यालय अपनी अवधारणा, सिद्धांत और कर्तव्य से बहुत दूर हो रहे हैं.
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार को कुलपतियों का चयन करने का अधिकार नहीं होने के कारण उच्च शिक्षा पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है. पूर्व में राज्यपाल कुलपतियों का चयन करने से पहले राज्य सरकार से परामर्श करते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ऐसा नहीं किया जा रहा.
'फ्री टू थिंक 2021' रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय अधिकारियों ने आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत शिक्षाविदों और छात्रों को ग़लत तरीके से हिरासत में लिया और उन पर मुक़दमा चलाया गया.
विश्वविद्यालय परिसर को ऐसा होना ही चाहिए जहां भय न हो, आत्मविश्वास हो, ज्ञान की मुक्ति हो और जहां विवेक की धारा कभी सूखने न पाए. तमाम सीमाओं के बावजूद भारतीय विश्वविद्यालय कुछ हद तक ऐसा माहौल बनाने में सफल हुए थे. पर पिछले पांच-सात वर्षों से कभी सुधार, तो कभी ‘देशभक्ति’ के नाम पर ‘विश्वविद्यालय के विचार’ का हनन लगातार जारी है.
विश्वविद्यालय में यह तर्क नहीं चल सकता कि चूंकि पैसा सरकार (जो असल में जनता का होता है) देती है, इसलिए विश्वविद्यालयों को सरकार की तरफ़दारी करनी ही होगी. बेहतर समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी है कि विश्वविद्यालय की रोज़मर्रा के कामकाज में कम से कम सरकारी दख़ल हो.
विश्वविद्यालयों की स्थापना के पीछे सैद्धांतिक रूप से यह विचार कहीं न कहीं ज़रूर था कि ये ऐसी नई पीढ़ी के विकास में सक्षम होंगे, जो सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों से मुक्त होगी. पर व्यावहारिक रूप से सामने यह आया कि विश्वविद्यालय इन बुराइयों को समाज से हटा तो नहीं सके, साथ ही ख़ुद इसका शिकार बन गए.
बीते दिनों यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों को 18 वर्ष से अधिक आयु समूह के लिए मुफ़्त टीकाकरण शुरू करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने वाले बैनर लगाने कहा है.
प्रताप भानु मेहता के इस्तीफ़े के बाद हुई बहस के दौरान एक अध्यापक ने कहा कि निजी के मुक़ाबले सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में अधिक आज़ादी है. शायद वे सोचते हैं कि यहां अध्यापकों को उनकी सार्वजनिक गतिविधि के लिए कुलपति तम्बीह नहीं करते. पर इसकी वजह बस यह है कि इन विश्वविद्यालयों के क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देते.
अगर यूजीसी को अंतिम परीक्षा लेने का अपना निर्णय इतना उचित लग रहा है तो वह इसके तर्क विस्तार से क्यों नहीं बता रहा और उसमें जो विकल्प हो सकते हैं उन पर विचार क्यों नहीं कर रहा? हड़बड़ी में सिर्फ अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए छात्रों के स्वास्थ्य की परवाह किए बिना शिक्षा की गुणवत्ता पर ज़ोर देना अमानवीयता है.