भारत के लिए गुजरात के चुनाव परिणाम का विचारधारात्मक आशय काफ़ी गंभीर होगा. गुजरात के बाहर भी मुसलमान और ईसाई विरोधी घृणा और हिंसा में और तीव्रता आएगी. श्रमिकों, किसानों, छात्रों आदि के अधिकार सीमित करने के लिए क़ानूनी तरीक़े अपनाए जाएंगे. संवैधानिक संस्थाओं पर भी दबाव बढ़ेगा.
इन चुनावों व उपचुनावों में भाग लेने वाले मतदाताओं ने जता दिया है कि नए विकल्प न भी हों तो वे मजबूर होकर सत्ताधीशों की मनमानियों को सहते नहीं रहने वाले. जो विकल्प उपलब्ध हैं, उन्हीं में उलट-पलटकर चुनते हुए सत्ताधीशों के अपराजेय होने के भ्रम को तोड़ते रहेंगे.