क्या किसी सत्ता दल को मतदाताओं की नाराज़गी के आईने में अपनी शक्ल तभी देखनी चाहिए, जब वह उसे सत्तापक्ष से विपक्ष में ला पटके?
निर्वाचन अयोग के आंकड़ों के मुताबिक कुंडा, मल्हनी और रसड़ा सीट के भाजपा उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई. ज़मानत बचाने के लिए एक उम्मीदवार को अपनी सीट पर हुए कुल मतदान के 16.66 प्रतिशत या 1/6 हिस्से के बराबर मत प्राप्त करना जरूरी है.
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए चुनाव में बसपा का केवल एक उम्मीदवार विजयी हुआ है. यह सीट बलिया ज़िले की रसड़ा विधानसभा है. यहां से बसपा के मौजूदा विधायक और विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सीटों के लिहाज़ से भले ही पिछड़ी हो, लेकिन मत प्रतिशत के मामले में उसने लंबी छलांग लगाई है. अपने चुनावी इतिहास में पहली बार उसे 30 फीसदी से अधिक मत मिले हैं.
आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था, लेकिन आज हालात ये हैं कि किसी समय राज्य की नब्बे फीसदी से अधिक (430 में से 388) सीट जीतने वाली कांग्रेस दो सीटों पर सिमट कर रह गई है.
यूपी की 403 सीटों पर उतरी बसपा के खाते में महज़ एक सीट आई है. साल 1989 में पार्टी के गठन के बाद से यह उसका सबसे ख़राब प्रदर्शन है. उसे 12.88 फीसदी मत मिले हैं. इससे कम मत आख़िरी बार उसे तीन दशक पहले मिले थे, लेकिन सीट संख्या तब दहाई अंकों मे थी.
भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों को ही छह-छह सीटें एक हज़ार से भी कम मतों के अंतर से गंवानी पड़ी हैं. कुल डेढ़ दर्जन सीटों पर जीत-हार के बीच का अंतर हज़ार से भी कम रहा, जबकि ग्यारह सीटों पर जीत-हार के बीच 500 से भी कम वोटों का अंतर रहा.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा ने पूर्ण बहुमत तो पा लिया है, लेकिन पिछली बार से उसकी 57 सीटें कम हो गईं, जिसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिला है. इतना ही नहीं उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत योगी सरकार के 11 मंत्रियों का हार का सामना करना पड़ा.
उत्तर प्रदेश में नई सरकार की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी फिर सत्ता में वापसी की ओर बढ़ रही है. हालांकि, उसकी सीट संख्या में पिछले चुनावों की अपेक्षा कमी आई है, लेकिन फिर भी प्रचंड बहुमत की प्राप्ति हुई है. वहीं, समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन में भी सुधार देखा गया है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ हो गया है.
यूपी में बीते कुछ चुनावों से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला ही राजनीतिक दलों की सफलता का आधार बना है. वर्तमान चुनाव में समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग चर्चा में है. हालांकि जानकारों के अनुसार, पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों के दो अलग-अलग सपा गठबंधनों की विफलता के चलते इस बार के गठबंधन की कामयाबी को लेकर कोई सटीक दावा नहीं किया जा सकता.
2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश से सक्रिय राजनीति में क़दम रखा था, तब भले ही वे कोई कमाल नहीं दिखा सकीं, पर उसके बाद से राज्य में उनकी सक्रियता चर्चा में रही. विपक्ष के तौर पर एकमात्र प्रियंका ही थीं जो प्रदेश में हुई लगभग हर अवांछित घटना को लेकर योगी सरकार को घेरती नज़र आईं.
शुक्रवार को समाजवादी पार्टी कार्यालय में भाजपा छोड़कर आने वाले मंत्री और विधायकों के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. पुलिस द्वारा दर्ज शिकायत में उल्लेख है कि कार्यक्रम में हज़ारों की भीड़ जुटी थी. इसे लेकर चुनाव आयोग के निर्देश पर गौतमपल्ली थाने के प्रभारी को निलंबित किया गया है.
उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि जब धर्माचार्यों की बात करो, तो धर्माचार्य केवल हिंदू धर्माचार्य नहीं होते हैं, मुस्लिम भी होते हैं और ईसाई भी? और कौन-कौन क्या बातें कर रहा है, उन बातों को एकत्र करके सवाल करिए. हर सवाल का जवाब दूंगा.
सपा नेताओं के यहां आयकर विभाग की छापेमारी से संबंधित एक कथित वीडियो सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने यह स्पष्टीकरण दिया है. इस वीडियो में वह कहते सुने जा सकते हैं कि छापेमारी करनी थी तो छह महीने पहले हो जानी चाहिए थी. वे एक दिन में अपराधी नहीं बन गए होंगे. पहले कहां थे अधिकारी? इससे उनके लोगों में गु़स्सा पैदा होगा और वे सरकार के ख़िलाफ़
यूपी में महिलाओं के लिए 40 फीसदी सीटों की घोषणा करके प्रियंका गांधी ने एक तरह से यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस सीटों की एक बड़ी संख्या पर चुनाव लड़ेगी. यानी अन्य पार्टियों के साथ कोई समझौता या गठबंधन नहीं करेगी. महिला सशक्तिकरण दांव को इतने प्रचार-प्रसार के साथ खेलने का तभी कोई तुक बनता है, जब आप चुनावी संग्राम में अपनी उपस्थिति को उल्लेखनीय ढंग से बढ़ाएं.