गुजरात: ज़हरीले धुएं की चपेट में आने से छह मज़दूरों की मौत, 22 अन्य अस्पताल में भर्ती

घटना सूरत के सचिन औद्योगिक क्षेत्र में हुई. एक फैक्टरी के पास खड़े रसायन से भरे टैंकर से कथित तौर पर निकले जहरीले धुएं की चपेट में आने से आसपास के इलाकों में मौजूद 26 मज़दूर बेहोश हो गए, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया. 

विकास की धीमी रफ़्तार और बढ़ता नौकरियों का संकट

सांख्यिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन ने 2017-18 में वार्षिक श्रम बल सर्वेक्षण करना शुरू किया, जो अब तक केवल हर पांच वर्षों पर होता था. हाल में एनएसओ ने अपना तीसरा वार्षिक सर्वेक्षण 2019-20 जारी किया, जिसके आंकड़ों से पता चलता है कि श्रम बल भागीदारी की स्थिति अब भी दुरुस्त नहीं है.

एक दिन में सर्वाधिक टीके देने के लिए क्या पहले भाजपा शासित राज्यों ने खुराकों में कमी की थी?

स्क्रोल डॉट इन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले कुछ दिनों में भाजपा शासित राज्यों द्वारा टीकाकरण की गति को धीमा करना सोमवार को भारत के रिकॉर्ड 86 लाख टीके की खुराक देने का कारण हो सकता है.

देश के बड़े अनौपचारिक कार्यबल को कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता दी जानी चाहिए

एक अनुमान के अनुसार लगभग 70% शहरी कार्यबल अनौपचारिक रूप से कार्यरत हैं. अनौपचारिक श्रमिकों के काम की अनिश्चित प्रकृति पहले ही जोखिम भरी होती है, जिससे उनके कोविड-19 के संपर्क में आने का ख़तरा बढ़ जाता है. मौजूदा टीकाकरण ढांचे में कई बाधाओं के चलते ऐसे कामगारों के टीकाकरण की संभावना कम है.

गृह मंत्रालय का एफसीआरए संशोधन के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से इनकार, कहा- राष्ट्रहित में नहीं

आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने दो आवेदन दायर कर इस विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020 से जुड़े कैबिनेट नोट, पत्राचार और फाइल नोटिंग्स की प्रति मांगी थी. आरोप है कि इस संशोधन क़ानून के चलते कई एनजीओ के काम में बाधा आ रही है.

कोरोना की दूसरी लहर में हिमाचल के प्रवासी मज़दूरों का भविष्य फिर अनिश्चित हो गया है

इस पहाड़ी राज्य में काम करने वाले प्रवासी मज़दूरों को डर है कि साल 2020 में कोरोना की पहली लहर में राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान उन्होंने जो दुख और चुनौतियां झेलीं, इस बार भी वैसा ही होने वाला है.

नया सामाजिक सुरक्षा क़ानून मज़दूरों के हक़ में कितना हितकारी होगा

सितंबर 2020 में भारत सरकार द्वारा मज़दूरों के हित का दावा करते हुए लाए गए सामाजिक सुरक्षा क़ानून में असंगठित मज़दूरों के लिए बहुत कुछ नहीं है, जबकि देश के कार्यबल में उनकी 91 प्रतिशत भागीदारी है.

1971 में एक युवा कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन का हिस्सा होने के अनुभव

कानपुर जैसे शहर में एक युवा कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन के सदस्य के बतौर काम करने के दौरान देखे गए पुलिस और प्रशासन के पक्षपातपूर्ण रवैये ने मेरे लिए वर्गीय दृष्टिकोण और वर्गीय सत्ता की सच्चाई को और प्रमाणित कर दिया.

पहली प्रवासी नीति: मज़दूरों के लिए वोट का अधिकार और माइग्रेशन विंग बनाने का प्रस्ताव

कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रवासी मज़दूरों के सामने खड़ी हुईं समस्याओं को दूर करने के लिए श्रम मंत्रालय नीति आयोग की अगुवाई में एक नीति तैयार कर रही है. मसौदा नीति में कहा गया है कि प्रवासी मज़दूरों का राजनीतिक समावेश किया जाना चाहिए, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को उनके लिए जवाबदेह ठहराया जा सके.

मज़दूर संगठनों ने सरकार से चार श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन पर रोकने की मांग की

केंद्र सरकार श्रम संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप दे रहा है. दस केंद्रीय मज़दूर संगठनों की संयुक्त मंच द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि सभी चार संहिताओं को रोक दिया जाना चाहिए और फिर इन श्रम संहिताओं पर केंद्रीय मज़दूर संगठनों के साथ सच्ची भावना से द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बातचीत होनी चाहिए.

आर्थिक नीतियों के विरोध में श्रमिक संगठनों की हड़ताल, श्रम क़ानूनों को वापस लेने की मांग

केंद्र सरकार की आर्थिक और मजदूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ मज़दूर संगठनों के आह्वान पर गुरुवार को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का विभिन्न हिस्सों में व्यापक असर देखने को मिला. इससे अलग वितरण कंपनियों के निजीकरण के ख़िलाफ़ बिजली कर्मचारियों ने भी देशभर में प्रदर्शन किया. आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ विरोध में शामिल नहीं रहा.

सीवान सूत मिल: धराशायी होती कामगारों की उम्मीदें

ग्राउंड रिपोर्ट: 80 के दशक में सीवान में शुरू हुई सूत मिल साल 2000 में मज़दूरों को उनका बकाया दिए बिना ही बंद हो गई. मज़दूरों को लगता था कि मिल दोबारा शुरू होगी, लेकिन चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार द्वारा यहां इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने के ऐलान के बाद उनकी रही-सही उम्मीदें भी ख़त्म हो गईं.

दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के कर्मचारियों को कई महीनों से नहीं मिला वेतन, क़र्ज़ लेकर चला रहे ख़र्च

वीडियो: दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड में काम करने वालों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है. इनमें 30 प्रतिशत स्थायी सदस्य हैं जिन्हें 5 महीने से और 70 प्रतिशत संविदा पर हैं जिन्हें 9 महीने से वेतन नहीं मिला है. प्रभा​त कुमार और चिन्मय ग्यामलानी की रिपोर्ट.

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