कृष्णा सोबती: क्या एक लेखक को उसकी लेखनी से जाना जा सकता है?

जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.

शासकों द्वारा दिए गए सम्मान से कोई बड़ा नहीं हो जाता: कृष्णा सोबती

साक्षात्कार: बीते दिनों ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित साहित्यकार कृष्णा सोबती का निधन हो गया. उनके चर्चित उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ के पचास साल पूरे होने पर साल 2016 में उनसे हुई बातचीत.

कृष्णा सोबती: स्त्री मन की गांठ खोलने वाली कथाकार

‘मित्रो मरजानी’ के बाद सोबती पर पाठक फ़िदा हो उठे थे. ये इसलिए नहीं हुआ कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थीं. ऐसा हुआ क्योंकि उनकी महिलाएं समाज में तो थीं, लेकिन उनका ज़िक्र करने से लोग डरते थे.

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार कृष्णा सोबती का निधन

कृष्णा सोबती को साल 2017 में साहित्य के क्षेत्र में दिए जाने वाले देश के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है. 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज़ होकर उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस लौटा दिया था.