अब जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं, तब ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि भूख और रोजी-रोटी की समस्या ख़त्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है.
जब सरकार ने दोबारा विमान सेवाएं शुरू कीं, तब एक केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और क्वारंटीन सेंटर में रखने जैसी बातें व्यावहारिक नहीं लगतीं. हैरानी वाली बात है कि जो बात विमान के यात्रियों के लिए व्यावहारिक नहीं लग रही, वो मज़दूरों के लिए अति आवश्यक कैसे बन गई थी.
सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.
जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा, पिछले तीन साल में देश में अमीर और ग़रीब के बीच आर्थिक असमानता तेज़ी से बढ़ी है.
प्रख्यात अर्थशास्त्री और नीति आयोग के सदस्य देबरॉय ने कहा कि भ्रष्टाचार से अपेक्षाकृत गरीबों को ज्यादा नुकसान होता है और भ्रष्टाचार पर शिकंजे का असर अमीरों पर पड़ता है.
योजना आयोग के पूर्व सदस्य ने कहा, नोटबंदी से ग़रीब प्रभावित हुए लेकिन उन्होंने मोदी को माफ़ कर दिया क्योंकि वे मानते हैं कि यह क़दम अमीरों के ख़िलाफ़ था.