आशा कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 महामारी के दौरान फ्रंटलाइन पर काम करने के बावजूद उनका बकाया भुगतान और सुरक्षा उपकरण नहीं मिल रहा है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिवों को छह सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है.
हरियाणा के पानीपत का मामला. आशा कार्यकर्ता को तीन फरवरी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज दी गई थी. परिवार का आरोप है कि वैक्सीन की वजह से उनकी मौत हुई है, जबकि प्रशासन का कहना है कि उन्हें ट्यूमर था और यह उनकी मौत का कारण हो सकता है.
आशा कार्यकर्ताओं ने कोरोना वायरस को लेकर स्वास्थ्य उपकरण मुहैया कराने, नियमित वेतन देने और कोरोना वॉरियर्स के तौर पर बीमा राशि जैसी मांगों के साथ दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके बाद इनके ख़िलाफ़ लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में केस दर्ज किया गया है.
महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच लगातार घर-घर जाकर सर्वे करने वाली आशा कार्यकर्ता पर्याप्त सुरक्षा उपकरण न मिलने के चलते अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं. एक कार्यकर्ता ने बताया कि उन्हें दो महीने पहले एक-एक पीपीई किट दी गई थी, जिसे वे धोकर दोबारा इस्तेमाल कर रही हैं.
गुजरात के मेहसाणा ज़िले में कोरोना वायरस के लक्षणों को जांचने गई एक आशा कार्यकर्ता से बदसलूकी की गई, वहीं हरियाणा के फरीदाबाद में एनआरसी के लिए डेटा इकट्ठा करने का आरोप लगाते हुए आशा कार्यकर्ताओं की एक टीम के साथ मारपीट की गई.
कोरोना संकट से निपटने के लिए ज़मीनी स्तर पर आशा कार्यकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन महामारी के चुनौतीपूर्ण दौर में ज़िम्मेदारी के साथ मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण क्षेत्र की कई आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें अपने भुगतान की राशि पाने के लिए कमीशन देना पड़ रहा है.
उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उत्तरकाशी के 132 गांवों में बीते तीन महीनों में कुल 216 बेटे पैदा हुए हैं जबकि एक भी बेटी पैदा नहीं हुई. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी से रिपोर्ट मांगी है.