सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समयसीमा पर ज़ोर देते हुए ऐसे उच्च न्यायालयों को लेकर चिंता व्यक्त की, जहां न्यायाधीशों के 40-50 प्रतिशत पद रिक्त हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर कॉलेजियम अपनी सिफ़ारिशों को सर्वसम्मति से दोहराता है तो केंद्र को तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति कर देनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वे शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफ़ारिशों पर कार्रवाई कर सकता है. कोर्ट ने यह भी पूछा कि उसके कॉलेजियम द्वारा भेजे गए दस नाम, जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं, को कब तक मंज़ूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने पहली बार अगस्त 2016 में न्यायिक अधिकारी पीके भट्ट के नाम की सिफारिश हाईकोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए की थी.
देश के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने यह भी कहा कि सरकार जजों की नियुक्ति में देरी नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि किसी मामले की सुनवाई से हटने के संबंध में जज को कोई कारण बताने की जरूरत नहीं है.
2012 में अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के फौरन बाद जजों को किसी नए सरकारी पद पर नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक हो सकता है, लेकिन उनकी इस सलाह को उनकी ही सरकार में कोई तवज्जो नहीं दी गई है.