वीडियो: 6 दिसंबर 2019 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल पूरे हो गए. हम भी भारत की इस कड़ी में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की इस बारे में सामजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली से बातचीत कर रही हैं.
6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी. अतीत में जो कुछ हुआ उसे फिर से उलट-पलट कर देखने का मौका साहित्य देता है. हिंदी साहित्य में यह घटना भी कई रूपों में दर्ज है.
इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर महाभियोग प्रस्ताव के जरिए सुप्रीम कोर्ट के जजों को डराने धमकाने का भी आरोप लगाया है. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने पलटवार करते हुए कहा कि मोदी कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी कर रहे हैं.
शिवसेना में अपने मुखपत्र में लिखे संपादकीय में भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि अगर मंदिर निर्माण का मुद्दा आपके हाथ से निकल गया तो 2019 में आपकी रोज़ी-रोटी के अलावा कई लोगों की ज़ुबान बंद हो जाएगी.
बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के रक्तरंजित दौर की तरफ पच्चीस साल बाद फिर लौटते हुए हम नए सिरे से उस पुराने द्वंद्व से रूबरू होते हैं जो हर ऐसे सांप्रदायिक दावानल के बहाने उठता है.
‘हम वहां राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा करने गये थे, मस्जिद गिराने नहीं’, बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल रहे कारसेवकों ने बताया उनका अनुभव.
अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद वास्तविक मुद्दा नहीं हैं, क्योंकि जनता इस मुद्दे को लेकर शांतिपूर्ण रह रही है. वास्तविक मुद्दा सांप्रदायिकता का विकास और सांप्रदायिक संगठनों द्वारा सांप्रदायिक तनाव को हवा देना है.
राम मंदिर था या नहीं, ये बहस अनंत काल तक चलाई जा सकती है, लेकिन मुद्दा इतिहास का नहीं बल्कि धर्म के नाम पर बरगलाने का है.
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ने कहा, अब यही इतिहास लिखा जाएगा. राज्य सरकार इसके लिए पाठ्यक्रम में बदलाव भी करेगी.