बिहार में भूमि सुधार के तहत भूमिहीनों को ज़मीन का पट्टा दिया गया था. काग़ज़ों पर तो ये लोग ज़मीन के मालिक बन गए हैं, लेकिन वास्तव में अब तक इन्हें ज़मीन का क़ब्ज़ा नहीं मिल सका है.
आप शंकराचार्यों की बेअसर पड़ चुकी पीठों पर काबिज़ होने के बजाय ज्ञान, विचार और सत्ता की नई पीठों की रचना के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते, लालू जी!
आज़ादी के बाद किसान अपनी समस्याओं के निदान के लिए गांधी के बताए सत्याग्रह के मार्ग पर चल रहे हैं, पर सरकारों के लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है.