जेलें क़ैदियों को उनके अपराध के आधार पर वर्गीकृत कर सकती हैं, लेकिन जेलों, ख़ासतौर पर महिला जेलों में वर्गीकरण सिर्फ अपराधों से तय नहीं होता है. यह सदियों की परंपराओं और अक्सर धर्म द्वारा स्थापित नैतिक लक्ष्मण रेखा लांघने से जुड़ा है. ऐसे में भारतीय महिलाएं जब जेल जाती हैं, तब वे अक्सर जेल के भीतर एक और जेल में दाख़िल होती हैं.
दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में गिरफ़्तार गर्भवती सफूरा ज़रगर तिहाड़ जेल में हैं और अदालत में जेल अधीक्षक का कहना था कि उन्हें सभी ज़रूरी सुविधाएं दी जा रही हैं. हालांकि देश की जेलों की स्थिति पर आए आंकड़े और सूचनाएं बताते हैं कि भारतीय जेलें गर्भवती महिला क़ैदियों के लिहाज़ से मुफ़ीद नहीं हैं.
महिला कैदी का आरोप है कि यह घटना कथित तौर पर तीन अगस्त को नंदन कानन एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में उस समय हुई, जब उन्हें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से अदालती सुनवाई के बाद दिल्ली लाया जा रहा था.
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के केंद्रीय कारावास में सज़ा काट चुकी एक महिला ने बीते दिनों प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि जेल में महिला बंदियों को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है और ऐसा न करने पर उनकी बेरहमी से पिटाई की जाती है.
जस्टिस मदन बी. लोकुर ने नाराज़गी भरे लहज़े में कहा, 'पूरी चीज़ का मज़ाक बना दिया गया है. क्या कैदियों के कोई अधिकार हैं? मुझे नहीं पता कि अधिकारियों की नजरों में कैदियों को इंसान भी माना जाता है या नहीं.’
जस्टिस अमिताव रॉय की अध्यक्षता वाली ये समिति महिला कैदियों से जुड़े मुद्दों को भी देखेगी. सुप्रीम कोर्ट देश की 1,382 जेलों में कैदियों की स्थिति से जुड़े मुद्दों की सुनवाई कर रही है.
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि बच्चों को किशोर न्याय क़ानून के तहत देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.