उत्तर प्रदेश के वाराणसी के घाटों पर अत्यधिक मात्रा में शैवाल पाए जाने के बाद से एक बार फिर से बहस तेज़ हो गई है कि आखिर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी गंगा स्वच्छ क्यों नहीं हो पा रही है. सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गई परियोजनाएं काग़ज़ी दावे बनकर रह गई हैं.
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए रिवरफ्रंट के सौंदर्यीकरण का बजट घटाकर सिर्फ एक लाख रुपये कर दिया गया है. वहीं राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के बजट में करीब 30 फीसदी की कटौती की गई है.
राजस्थान सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 33 ज़िलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है, जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. इसका मतलब है कि आधे से ज़्यादा राज्य में ज़मीनी पानी कभी भी समाप्त हो सकता है.
पर्यावरण मंत्रालय ने संसद में बताया कि केंद्रीय भूजल बोर्ड ने विभिन्न राज्यों में फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और आयरन सहित अन्य हानिकारक धातुओं की भूजल में निर्धारित मानकों से अधिक मात्रा पाए जाने की पुष्टि की है.
इस साल मई तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28,451 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गई, लेकिन उनमें से केवल 25 फीसदी राशि ही ख़र्च की जा सकी.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हालिया आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का पानी पीने एवं नहाने योग्य नहीं है. बोर्ड द्वारा जारी एक मानचित्र में नदी में ‘कोलीफॉर्म’ जीवाणु का स्तर बहुत बढ़ा हुआ दिखाया गया है.
एनजीटी ने कहा, ‘गंगा की स्वच्छता को धन उगाही और व्यावसायिक व औद्योगिक धंधे के भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता है. कोई व्यक्ति भी यदि गंगा को प्रदूषित करता है तो उसे कानून के अधीन दंडित किया जाना चाहिए.'
साक्षात्कार: गंगा सफाई के लिए लंबे समय तक अनशन करने वाले संत गोपाल दास पांच दिसंबर 2018 को लापता हो गए थे. करीब 133 दिन बाद पास वापस लौटने पर उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर उन्हें प्रताड़ित किया गया और एम्स प्रशासन ने अस्पताल से निकालकर उन्हें मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया था.
मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: एक आरटीआई के जरिए पता चला है कि मोदी सरकार ने गंगा से जुड़े विज्ञापनों पर 2014 से लेकर 2018 के बीच 36.47 करोड़ रुपये ख़र्च किए.
मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले मार्च 2014 तक गंगा सफाई के लिए बनी संस्था नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को मिले अनुदान और विदेशी लोन पर सरकार को करीब सात करोड़ रुपये का ब्याज मिला था. लेकिन मार्च 2017 तक आते-आते यह राशि बढ़कर 107 करोड़ रुपये हो गई.
बिहार में एसडीएम से बदसलूकी पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज होने समेत आज की बड़ी ख़बरें. दिनभर की महत्वपूर्ण ख़बरों का अपडेट.
द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली क्लीन गंगा फंड के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की समय पर बैठक नहीं होने की वजह से गंगा सफाई के लिए परियोजनाओं की स्वीकृति और पैसे ख़र्च नहीं हो पा रहे हैं.
राजनेताओं के चहेते राहतकोष, जलप्रबंधन व जलवायु प्रबंधन योजना के नाम पर अपनी जेब भरते रहेंगे. ‘नमामि गंगे’ जैसी भ्रष्टाचारी प्रदूषण नियंत्रण योजनाएं बनाते रहेंगे. राजनैतिक दलों के घोषणापत्र दिखावा करके वोट लेने वाला भ्रमजाल फैलाते रहेंगे. जो जितना या ज्यादा झूठ सफाई से बोलेगा वो उतनी ही वोटों की कमाई अपने लिए कर लेगा.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'मैं गंगा का बेटा हूं, गंगा ने मुझे बुलाया है. गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए काम करूंगा.’ पांच साल बीत गये, लेकिन इस सरकार ने गंगा जी की निर्मलता-अविरलता हेतु कुछ भी काम नहीं किया है. जैसे गंगा जी पहले मैली थीं, अब उससे भी ज्यादा मैली हो गई हैं.
द वायर एक्सक्लूसिव: उमा भारती द्वारा इस दिशा में चिंता जाहिर करने के बावजूद मोदी सरकार ने घाट एवं श्मशान घाट से संबंधित योजनाओं के लिए 966 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है. ये राशि शुरुआत में आवंटित की गई धनराशि से दोगुनी से भी ज़्यादा है.