विचारधारा की जकड़न से विचारों की स्वतंत्रता की नवल जी की यात्रा कष्टसाध्य रही. उन्हें ख़ुद को ही कई जगह अस्वीकार करना पड़ा. लेकिन चूंकि उनकी प्रतिबद्धता रचनाकार से भी आगे बढ़कर रचना से थी, और विचारधारा से तो कतई नहीं, सो उन्हें ख़ुद को बदलने में संकोच नहीं हुआ.
वीडियो: युवा कथाकार अणुशक्ति सिंह का पहला उपन्यास ‘शर्मिष्ठा' बीते दिनों आया है. इस उपन्यास के मद्देनज़र उनसे मिथकीय और पौराणिक चरित्रों में स्त्री की मौजूदगी, सिंगल मांओं के संघर्ष, स्त्री-पुरुष के कथित वैध और अवैध प्रेम समेत विभिन्न विषयों पर फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
आज उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मदिन है. ये मार्मिक संस्मरण कहानीकार निर्मल वर्मा ने उन्हें याद करते हुए लिखा था. इसे रेणु की पुस्तक ‘ऋणजल धनजल’ में शामिल किया गया है.
गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया ‘पहला गिरमिटिया’ नामक उपन्यास महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था, जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई.
अपनी रचनाओं में मौलिक भाषाई प्रयोगों के लिए चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद का अमेरिका के न्यूयॉर्क में गुरुवार को निधन हो गया. हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले वैद आधुनिक गद्य साहित्य के महत्वपूर्ण लेखकों में शुमार थे.
हिंदी के कथाकार स्वयं प्रकाश पिछले कुछ समय से बीमार थे. मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी. अतीत में जो कुछ हुआ उसे फिर से उलट-पलट कर देखने का मौका साहित्य देता है. हिंदी साहित्य में यह घटना भी कई रूपों में दर्ज है.
पुस्तक समीक्षा: कुलदीप कुमार की कविताएं पिछले तीन दशकों में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में आती रही हैं, पत्रकार की हैसियत से वे साहित्य-संस्कृति की जानी-मानी शख्सियतों से बातचीत करते रहे हैं. ऐसे अदीब से यह उम्मीद रहती है कि अपनी मौलिक रचनाओं में वे नई अंतर्दृष्टि की तलाश करेंगे. हाल ही में प्रकाशित उनके संग्रह 'बिन जिया जीवन' में सादगी के साथ इस उम्मीद को पूरा करने की कोशिश है.
आज जब यह सच्चाई और कड़वी होकर हमारे सामने है कि उस दिन बाबरी मस्जिद को शहीद करने वालों ने न सिर्फ अयोध्या बल्कि शेष देश में भी बहुत कुछ ध्वस्त किया था, यह देखना संतोषप्रद है कि देश के कवियों ने इस सच्चाई को समय रहते पहचाना और उसे बयां करने में कोई कोताही नहीं बरती.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हिंदी साहित्य पढ़ाने वाली प्रोफेसर एलिसन बुश बीते दिनों कैंसर से लड़ते हुए ज़िंदगी की लड़ाई हार गईं. हिंदी साहित्य में पीएचडी करने वाली बुश ने अपनी 'पोएट्री ऑफ किंग्स' नाम की किताब में रीतिकालीन साहित्य पर नए ढंग से विचार किया था.
वह असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.
वीडियो: वरिष्ठ लेखक और साहित्यकार मृदुला गर्ग से रीतू तोमर की बातचीत.
शिवकुटी लाल वर्मा ने अपनी कविता में वह सब महसूस किया, जिसे देश की दलित, पीड़ित व शोषित जनता आज तक महसूस करती आई है. उन्होंने न केवल इसे महसूस किया बल्कि इसे लेकर लगातार सवाल भी किए.
गिरीश कर्नाड आज़ादी के बाद आई पहली पीढ़ी के उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने भारतीय रंगमंच के लिए सबसे गंभीर और चिरस्थायी नाटकीय लेखन की नींव रखी.
साक्षात्कारः हिंदी की वरिष्ठ लेखिका और साहित्यकार ममता कालिया का कहना है कि स्त्री विमर्श के लिए हमें सिमोन द बोउआर तक पहुंचने से पहले महादेवी वर्मा को पढ़ना पड़ेगा, जिन्होंने 1934 में ही लिख दिया था कि हम स्त्री हैं. हमें न किसी पर जय चाहिए, न पराजय, हमें अपनी वह जगह चाहिए जो हमारे लिए निर्धारित है.