भीमा कोरेगांव मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू की गिरफ़्तारी के बाद लेखक अरुंधति रॉय ने केंद्र सरकार की आलोचना की हैं, वहीं जेएनयू छात्रसंघ ने कहा कि इस मामले में हुई घटिया जांच का एकमात्र निशाना वे कार्यकर्ता और स्कॉलर हैं जिन्होंने सत्तारूढ़ दल की नीतियों और सांप्रदायिकता पर सवाल उठाए हैं.
नरेंद्र मोदी को वोट देने वालों की सोच यह नहीं है कि वह अपने किए गए वादों को पूरा करेंगे या नहीं, बल्कि उन्होंने मोदी को इसलिए वोट किया क्योंकि उन्हें उनमें अपना ही अक्स दिखाई देता है.
क्या नरेंद्र मोदी यह कहना चाह रहे हैं कि मुस्लिमों को जिस भय की राजनीति का सामना करना पड़ रहा है, वे उसे ख़त्म करने की कोशिश करेंगे? अगर उन्हें गंभीरता के साथ इस ओर काम करना है तो इसकी शुरुआत संघ परिवार से नहीं होनी चाहिए.
पूर्व में बहुमत अंकगणित से हासिल होता था, जो सामाजिक समूहों को एक साथ जोड़कर होता था, यह बहुमत सिर्फ वैचारिक मंच पर ही नहीं, बल्कि सत्ता में सभी की भागीदारी का वादा करके हासिल होता था. 2014 में भाजपा ने ख़ुद को चुनावी अंकगणित से दूर कर लिया और ध्रुवीकरण की प्रक्रिया से राष्ट्रीय बहुमत हासिल किया.
सावरकर ने अंग्रेज़ों को सौंपे अपने माफ़ीनामे में लिखा था, ‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.’
अभिनव भारत के न्यासी और शोधकर्ता पंकज फड़नीस की गांधी हत्या की फिर से जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है.