उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद शहर का मामला. आरोप है कि आठ माह की गर्भवती पत्नी को लेकर युवक सुबह से शाम तक ग़ाज़ियाबाद से लेकर नोएडा और ग्रेटर नोएडा तक के अस्पतालों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन कहीं बेड न होने और कहीं पत्नी में कोरोना वायरस के लक्षण होने की बात कहकर भर्ती करने से इनकार कर दिया गया.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी के दौरान तमाम सरकारी दावों के उलट मरीजों को अस्पताल दर अस्पताल भटकना पड़ रहा है और इलाज के अभाव में कई बार उनकी मौत भी हो जा रही है.
बीते पांच जून को उत्तर प्रदेश के कम से कम आठ अस्पतालों ने कोरोना संक्रमित होने के संदेह में आठ माह की एक गर्भवती महिला को प्रसव के लिए भर्ती करने से इनकार कर दिया. करीब 13 घंटे तक ऑटो और एंबुलेंस से तकरीबन आठ अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद आखिरकार महिला और बच्चे दोनों ने नोएडा के एक अस्पताल के बाहर एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया.
पीड़िता की पहचान गाजियाबाद स्थित खोड़ा कॉलोनी में रहने वाली 30 वर्षीय नीलम कुमारी गौतम के रूप में की गई है. वह नोएडा सेक्टर-58 में स्थित एक कंपनी में काम करती थीं और उनकी सैलरी करीब 18-20 हजार रुपये थी.
उनके 32 वर्षीय पति बीजेंद्र सिंह ग्रेटर नोएडा स्थित एक अन्य कंपनी में मशीन मेंटेनेंस का काम करते हैं और 35 हजार के करीब वेतन है. उनका छह साल का एक बेटा भी है.
द वायर से बात करते हुए बीजेंद्र सिंह ने बताया, ‘ब्लीडिंग होने और पानी निकलने के बाद पहली बार मैंने अपनी पत्नी को 24 मई को नोएडा सेक्टर 51 स्थित शिवालिक हॉस्पिटल में भर्ती कराया था. दो दिन तक भर्ती रखने के बाद उन्होंने छुट्टी दे दी थी. उन्होंने हर तीसरे दिन टीका लगवाने के लिए बुलाया था.’
उन्होंने कहा, ‘31 मई को जब हम टीका लगवाने पहुंचे तब उन्होंने बताया कि पत्नी को टाइफाइड है और चार दिन तक उन्हें भर्ती रखा. डॉक्टरों ने कहा था कि पानी की कमी है इसलिए हम प्रसव को ज्यादा देर तक खींच नहीं सकते हैं. मैंने कहा था कि आपको जैसा उचित लगे वैसा करिए. इसके बाद भी उन्होंने 4 जून की शाम को अपनी मर्जी से छुट्टी दे दी.’
बीजेंद्र कहते हैं, ‘पांच जून तड़के करीब तीन बजे पत्नी को घबराहट के साथ सांस लेने में दिक्कत होने लगी. हमारे पास कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआई) का कार्ड था तो हम नोएडा-24 ईएसआई अस्पताल लेकर गए. अस्पताल प्रशासन हमारे साथ बुरी तरह पेश आया. डॉक्टरों ने कहा कि यहां क्यों आए हो? मरने आए हो? मुंह उठाकर चले आते हो. देख नहीं रहे हो क्या (कोरोना) चल रहा है. आधे घंटे बाद हमें वहां से सेक्टर-30 के सरकारी अस्पताल में भेज दिया गया.’
उनके मुताबिक, सेक्टर-30 के सरकारी अस्पताल पहुंचते ही उसने पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि ईएसआई वालों ने भेजा है, तो कहा गया कि यहां कोई इलाज नहीं होता. गाजियाबाद के किसी अस्पताल में लेकर जाओ.
बीजेंद्र आगे कहते हैं, ‘सेक्टर-30 से हम एक बार फिर शिवालिक अस्पताल गए लेकिन उन्होंने कोविड के लक्षण बताते हुए भर्ती करने से मना कर दिया. इस पर मैंने उनसे कहा कि मेरी पत्नी का यहां पर एक हफ्ते तक इलाज चला है और एक दिन पहले लेकर गया हूं तो एक दिन में कोरोना थोड़े हो जाएगा. लेकिन उन्होंने भर्ती करने से साफ मना कर दिया. वहां से हम फोर्टिस अस्पताल लेकर गए लेकिन उन्होंने बेड न होने की बात कहते हुए इनकार कर दिया.’
उनके अनुसार, वहां से वे जेपी अस्पताल आए लेकिन यहां भी भर्ती नहीं किया गया. यहां उन्हें ग्रेटर नोएडा के शारदा अस्पताल ले जाने के लिए कहा गया. वहां गार्ड ने पर्ची कटाने के लिए कहा तो वह गलती से कोविड जांच की पर्ची वाली लाइन में लग गए और 4,500 रुपये के कोविड टेस्ट की पर्ची कटा ली.
इस पर बीजेंद्र ने कहा, ‘इसके बाद मुझे 100 रुपये की दूसरी पर्ची कटानी पड़ी. इस बीच पत्नी को सांस लेने में बहुत ज्यादा परेशानी हो रही थी. लेकिन उन्होंने 10 मिनट के अंदर ही हमें जिम्स (गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) जाने के लिए कह दिया. पत्नी को सांस लेने में हो रही दिक्कत को देखते हुए मैंने ऑक्सीजन वाला एंबुलेंस बुक किया और जिम्स ले गया.’
बीजेंद्र ने कहा, ‘वहां भी बेड न होने की बात कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया गया. तब मैंने 112 नंबर पर कॉल किया. आधे घंटे बाद पुलिस आई और उन्होंने अस्पताल से बात की. जिम्स ने पुलिस से भी बेड न होने की बात कही. पुलिसवालों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए कि अब हम क्या कर सकते हैं.’
वे कहते हैं, ‘फिर हम गाजियाबाद के मैक्स अस्पताल गए लेकिन उन्होंने भी बेड न होने की बात कही. इसके बाद हम दोबारा जिम्स अस्पताल गए. 8 बजे के करीब एंबुलेंस में से निकालकर ह्वीलचेयर पर बिठाने के लिए हमने जैसे ही मास्क हटाया वैसे ही एंबुलेंस में ही पत्नी की मौत हो गई. डॉक्टरों ने 10-15 मिनट वेंटिलेंटर पर रखने के बाद बताया कि मां और बच्चे दोनों की मौत हो गई.’
मौत होने के बाद पुलिस को सूचना देने के सवाल पर सिंह टूट गए और कहने लगे, ‘जब मौत ही हो गई तब मैं पुलिसवालों का क्या करता. जब मुझे जरूरत थी तब मैंने उन्हें बताया था. जरा सा इलाज न होने के कारण मेरी पूरी जिंदगी खराब हो गई. मैं तो झेल लूंगा लेकिन मेरा एक छोटा बेटा है, उसको कौन देखेगा?’
उन्होंने कहा कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद के आठ अस्पतालों का चक्कर हमने एक ऑटो से लगाया. उसे सिर्फ सांस लेने में दिक्कत हो रही थी लेकिन हर अस्पताल कह रहा था कि हमें संदेह है, लक्षण लग रहे हैं, बेड नहीं हैं.
पत्नी के शव के लिए जिम्स में बीजेंद्र ने एंबुलेंस की मांग की मांग की, लेकिन वह भी उन्हें कई घंटों बाद मिल सकी.
वे कहते हैं, ‘जिम्स अस्पताल की एक महिला डॉक्टर ने कहा कि आप ऑटो से लेकर आए थे तो ऑटो ही लेकर चले जाओ. मैंने कहा कि यहां से 30-35 किलोमीटर दूर मैं ऑटो से कैसे लेकर जाऊंगा. इसके बाद किसी तरह रात के 12 बजे मुझे एक एंबुलेंस मिली और तब हम शव को लेकर घर लेकर आए. छह जून को सुबह 9 बजे मैंने पत्नी का अंतिम संस्कार किया.’
उन्होंने बताया, ‘एक स्थानीय अधिकारी ने हमसे संपर्क किया और मुख्य चिकित्सा अधिकारी से भी बात हुई है. प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं. हालांकि, किसी तरह के मुआवजे की कोई बात नहीं हुई है.’
उप्र में प्रसव के लिए अस्पताल खोजते-खोजते एक गर्भवती महिला की मृत्यु अति दुखद है. सरकार यह बताए कि अगर वो कोरोना के लिए 1 लाख बेड के इंतज़ाम का दावा करती है तो आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ बेड आरक्षित क्यों नहीं रखे. भाजपा सरकार ये भी बताए कि उसने अब तक कितने अस्पताल बनाए हैं. pic.twitter.com/ENNGL6Lyx6
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) June 7, 2020
इस घटना को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दुख प्रकट किया है.
उन्होंने ट्वीट कर कहा है, ‘उत्तर प्रदेश में प्रसव के लिए अस्पताल खोजते-खोजते एक गर्भवती महिला की मृत्यु अति दुखद है. सरकार यह बताए कि अगर वो कोरोना के लिए एक लाख बेड के इंतजाम का दावा करती है तो आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ बेड आरक्षित क्यों नहीं रखे. भाजपा सरकार ये भी बताए कि उसने अब तक कितने अस्पताल बनाए हैं.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस मामले की जांच के लिए गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने एक समिति का गठन किया है.
जिला सूचना अधिकारी राकेश चौहान ने बताया कि जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व मुनींद्र नाथ उपाध्याय तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. दीपक ओहरी को इसकी जांच सौंपी है. उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी ने दोनों अधिकारियों को इस प्रकरण में तत्काल जांच करते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.