मुस्लिम महिलाएं सम्मान से जी सकें इसके लिए विवाह कानून लागू हो: बीएमएमए

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने तीन तलाक़ की व्यवस्था ख़त्म करने और पर्सनल लॉ में सुधार की ज़रूरत को महत्वपूर्ण बताया है.

(फोटो साभार: Hernán Piñera/Flickr)

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने तीन तलाक़ की व्यवस्था ख़त्म करने और पर्सनल लॉ में सुधार की ज़रूरत को महत्वपूर्ण बताया है.

Muslim-woman_Flickr
प्रतीकात्मक फोटो (साभार: Hernán Piñera. Flickr )

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की पैरोकारी करने वाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने एक साथ तीन तलाक़ की व्यवस्था को ख़त्म करने और मुसलमानों के पर्सनल लॉ में समग्र सुधार की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए बुधवार को कहा कि सरकार को क़ुरान की मूल भावना के अनुरूप मुस्लिम परिवार क़ानून पारित करना चाहिए ताकि इस समाज की महिलाएं सम्मानजनक जीवन जी सकें.

बीएमएमए की सह-संस्थापक ज़किया सोमान ने कहा कि उनका संगठन एक साथ तीन तलाक़ की प्रथा को ख़त्म कराने और मुस्लिम परिवार क़ानून को मूर्त रूप देने के लिए जल्द ही विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों से मुलाक़ात करेगा.

नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन की ओर से तीन तलाक विषय पर हुई परिचर्चा में ज़किया ने कहा, हमारा मानना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पूरी तरह से सुधार की ज़रूरत है.

तीन तलाक़, निकाह हलाला, बहुविवाह का ख़त्म होना ज़रूरी है. इसके लिए एक ऐसे मुस्लिम परिवार क़ानून की ज़रूरत है जो न सिर्फ क़ुरान की मूलभावना के अनुरूप हो बल्कि देश के संविधान के तहत संहिताबद्ध भी हो.

बीएमएमए ने कुछ महीने पहले मुस्लिम परिवार क़ानून का एक मसौदा तैयार किया जिसमें मुस्लिम लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल करने, तलाक में पुरुषों और महिलाओं दोनों को बराबर का अधिकार देने और बहुविवाह व निकाह हलाला पर पूरी तरह रोक लगाने की बात की गई है.

ज़किया ने कहा, हम मुस्लिम परिवार कानून की अपनी मांग को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों से मिलेंगे और उनसे मदद मांगेगे. तीन तलाक़ का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और केंद्र सरकार ने वहां जो पक्ष रखा है वह स्वागतयोग्य है. हमें उम्मीद है कि न्यायपालिका से मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ मिलेगा.

बीएमएमए की वरिष्ठ पदाधिकारी नूरजहां सफिया नियाज़ ने कहा, मुस्लिम महिलाओं का संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक उनको पूरी तरह इंसाफ नहीं मिल जाता. मुस्लिम महिलाओं को सम्मान के साथ ज़िंदगी जीने का पूरा अधिकार है और वह उन्हें कानून और न्यायपालिका से ही मिल सकता है.