बिहार: 15 साल सरकार में रह चुकी भाजपा के लिए सुशांत सिंह राजपूत की मौत चुनावी मुद्दा क्यों है?

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की जांच सीबीआई, ईडी और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कर रहे हैं और तीनों ही केंद्र सरकार के अधीन हैं. केंद्र और बिहार में एनडीए की ही सरकार है. ऐसे में सवाल है कि ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ हैशटैग चलाकर बिहार में भाजपा जस्टिस किससे मांग रही है?

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(फोटो साभार: ट्विटर)

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की जांच सीबीआई, ईडी और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कर रहे हैं और तीनों ही केंद्र सरकार के अधीन हैं. केंद्र और बिहार में एनडीए की ही सरकार है. ऐसे में सवाल है कि ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ हैशटैग चलाकर बिहार में भाजपा जस्टिस किससे मांग रही है?

(फोटो साभार: ट्विटर)
भाजपा के कला व संस्कृति प्रकोष्ठ की तरफ से ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ हैशटैग वाला स्टिकर. (फोटो साभार: ट्विटर)

बिहार मूल के बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर जिस तरह बिहार की एनडीए सरकार भावनात्मक माहौल बनाने में जी-जान से जुटी हुई थी और जन-भावना का खयाल रखते हुए उसने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी थी, ये अंदेशा पहले से था कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को भुनाया जाएगा.

शनिवार को भाजपा के कला व संस्कृति प्रकोष्ठ की तरफ से ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ हैशटैग वाला कार स्टिकर और सुशांत की तस्वीर वाला मास्क जारी कर इस अंदेशे की पुष्टि कर दी गई.

स्टिकर में सुशांत का हंसता हुआ चेहरा है और दाईं तरफ लिखा गया है- न भूले हैं, न भूलने देंगे.

भाजपा के कला व संस्कृति प्रकोष्ठ ने सुशांत की तस्वीर वाला 25 हजार कार स्टिकर और 30 हजार मास्क बनवाए हैं, जिसे आम लोगों में वितरित किया जा रहा है.

प्रकोष्ठ के कनवेनर वरुण कुमार सिंह का कहना है कि कार स्टिकर और मास्क पिछले कुछ समय से वितरित किए जा रहे हैं, लेकिन लोगों की नजर अभी पड़ी है.

सुशांत की मौत के मामले को बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रमुखता से भुनाना चाहती है और उसका अभियान कार स्टिकर और मास्क तक ही सीमित नहीं है.

पार्टी ने सुशांत की जिंदगी पर वीडियो भी तैयार किया है, जिसे जल्द ही सोशल मीडिया पर जारी किया जाएगा.

वरुण कुमार सिंह ने बताया कि वे शुरू से ही सुशांत को न्याय दिलाने के अभियान का हिस्सा रहे हैं और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद, सुशील कुमार मोदी और रामकृपाल यादव को सुशांत के परिवार से मिलने को तैयार किया था.

सिंह के मुताबिक, सुशांत का मुद्दा उनके लिए राजनीतिक नहीं बल्कि भावनात्मक है.

बिहार भाजपा के प्रवक्ता डॉ. निखिल आनंद ने भी इसे मनोभावना का प्रकटीकरण करार दिया. उन्होंने ट्वीट किया, ‘बिहार भाजपा के कला-संस्कृति मंच ने सुशांत की यादों को संजोगने और जिंदा रखने के लिए विभिन्न कार्यक्रम प्लान किए हैं, जो स्वागतयोग्य है. सुशांत के लिए हमारे इन कलाकारों के मनोभावना को प्रकट करने का अपन तरीका है, जिसको राजनीतिक रंग देना बिल्कुल गलत है.’

असली सवालों से बचने के लिए भावनात्मक मुद्दे का सहारा

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मुद्दे को भाजपा भुनाना चाहती है, तो ये अचानक नहीं हुआ है. इसके लिए माहौल बनाने की मुहिम सुशांत की मौत के साथ ही शुरू हो गई थी.

सुशांत की मौत के साथ ही भाजपा समर्थित सोशल मीडिया पेज और सोशल मीडिया पर प्रभाव रखने वाले लोग (इन्फ्लुएंसर) इसमें लग गए थे. हर दूसरे दिन सुशांत से जुड़े कुछ भावुक वीडियो सोशल मीडिया पर घूमने लगते थे.

फिर धीरे-धीरे इसे बिहारी अस्मिता से जोड़ा गया. इसी बीच सुशांत राजपूत के पिता केके सिंह ने पटना के एक थाने में एफआईआर दर्ज करा दी.

नियमानुसार होना चाहिए था कि पटना पुलिस मामले को मुंबई पुलिस के हवाले कर देती, लेकिन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने ऐसा नहीं बल्कि जांच दल को मुंबई भेज दिया.

मुंबई पुलिस और बिहार पुलिस में खींचतान शुरू हो गई, तो बिहार सरकार ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी. केंद्र सरकार ने भी मामले के मेरिट पर विचार किए बिना ही इसे सीबीआई के सुपुर्द कर दिया.

सुशांत केस की जांच सीबीआई कर रही है. इसके अलावा इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) आर्थिक हेराफेरी के आरोपों की तफ्तीश कर रही और अब ड्रग्स से जुड़े मामले में नेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की भी एंट्री हो गई है.

तीनों ही जांच एजेंसियां केंद्र सरकार के अधीन आती हैं, केंद्र तथा राज्य में एनडीए की सरकार है. ऐसे में सवाल है कि ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ हैशटैग चलाकर बिहार में भाजपा किससे जस्टिस मांग रही है?

दरअसल, भाजपा को लग रहा है कि बिहार की जनता में सुशांत को लेकर एक भावनात्मक माहौल बना हुआ है और केवल सुशांत की तस्वीर दिखाकर और ये बताकर कि सीबीआई जांच कराकर सुशांत को न्याय दिलाया जा रहा है, उनका वोट लिया जा सकता है.

यही वजह है कि वह चुनाव में इस मुद्दे को जोरशोर से रखने की रणनीति तैयार कर चुकी है.

लेकिन, सवाल ये है कि 15 साल तक बिहार में सरकार चला चुकी भाजपा विधानसभा चुनाव में सुशांत राजपूत की मौत को मुद्दा क्यों बना रही है?

इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर द वायर  से कहते हैं, ‘दरअसल भाजपा की सोची-समझी रणनीति के तहत सुशांत के मामले को तूल दिया जा रहा है. भावनात्मक मुद्दे हमेशा से भाजपा को लाभ पहुंचाते रहे हैं. अभी कोरोना को लेकर सरकार का कामकाज घेरे में है. देश की जीडीपी नेगेटिव हो गई है, बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. बेरोजगारी चरम पर है. आधा बिहार बाढ़ की चपेट में है. इन सारे मुद्दों पर भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है, इसलिए वह सुशांत का मुद्दा उछाल रही है.’

वे आगे कहते हैं, ‘सुशांत का मुद्दा उठाकर भाजपा वोटरों को अधिकार के साथ ये कह सकती है कि उसकी सरकार ने बिहारी अस्मिता का ख्याल रखते हुए सीबीआई से जांच करा रही है.’

भाजपा जिस तरीके से सुशांत के मुद्दे को चुनावी अभियान का अहम हिस्सा बना रही है, उससे जाहिर हो रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा के शीर्ष नेता भी अपनी रैलियों में सुशांत के मुद्दे को उठाएंगे.

ऐसे में विपक्षी पार्टियों के सामने दो तरह की चुनौतियां हैं. अव्वल तो उसे पब्लिक के जेहन में सुशांत की जगह बेरोजगारी, गरीबी, बाढ़, कोरोना से लड़ने में सरकार की लचर तैयारी जैसे मुद्दे डालने होंगे और दूसरा ये कि भाजपा को भी विवश करना होगा कि वह सुशांत के मुद्दे से हट जाए.

क्या होगा विपक्ष का रुख

जानकार मानते हैं कि सुशांत के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने अगर बढ़त ले ली होती, तो आज भाजपा इस मुद्दे को लेकर बैकफुट पर चली जाती. हालांकि ऐसा नहीं है कि विपक्षी पार्टियों ने सुशांत के मुद्दे पर कभी ध्यान नहीं दिया.

जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुई थी, तो तेजस्वी यादव उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने सबसे पहले उनके परिजनों से मुलाकात कर न्याय दिलाने की मांग उठाई थी, लेकिन सीबीआई के पास मामला जाने के बाद विपक्ष ने इस मुद्दे को छोड़ दिया.

राजद के वरिष्ठ नेता रामचंद्र पूर्वे ने द वायर  से बातचीत में कहते हैं, ‘हमारे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने शुरू में ही सुशांत की मौत की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी. यही नहीं, उन्होंने राजगीर में निर्माणाधीन फिल्मसिटी का नाम सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर रखने की भी मांग की थी. हमारी पूरी सहानुभूति और संवेदना सुशांत सिंह राजपूत के परिजनों के साथ है.’

वे आगे कहते हैं, ‘हम बिहार की अवाम की भावनाओं का भी सम्मान करते है, लेकिन हम बेरोजगारी, गरीबी, कोरोना, बाढ़ आदि को मुद्दा बनाना चाहते हैं. प्रवासी मजदूर के मुद्दे पर सीएम नीतीश कुमार पूरी तरह एक्सपोज हो गए और आखिरकार तेजस्वी यादव की मांग मानते हुए वह उन्हें बिहार लाने को तैयार हुए. हम इन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौकब कादरी सुशांत केस को राजनीतिक मुद्दा बनाने पर भाजपा की आलोचना करते हैं.

वह कहते हैं, ‘सुशांत सिंह राजपूत बिहार की शान थे. उनके परिवार के साथ हमारी पूरी सहानुभूति है, लेकिन भाजपा जिस तरह इसे राजनीतिक मुद्दा बना रही है, वह अफसोसजनक है.’

कादरी ने कहा, ‘सुशांत का मामला अब सीबीआई के हवाले है और वह जांच कर रही है. ऐसे में भाजपा की तरफ से इसे राजनीतिक मुद्दा बना देने से न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी. असल बात ये है कि भाजपा बेरोजगारी, गरीबी, कोरोना जैसे ज्वलंत मुद्दों को भटकाना चाहती है, इसलिए सुशांत राजपूत के मामले को उछाल रही है, लेकिन हम बेरोजगारी, गरीबी जैसे मुद्दे पर मजबूती से सवाल उठाएंगे।’

दोनों पार्टियों के नेताओं ने माना कि उन्हें सुशांत के मामले को चुनावी मुद्दा बनाना अनुचित लगा, इसलिए सीबीआई के पास जांच जाने के बाद उन्होंने इस मुद्दे को और तूल नहीं दिया.

कौकब कादरी ने इससे इनकार किया कि लोग सुशांत के नाम पर भाजपा को वोट दे देंगे. उन्होंने कहा, ‘जनता अब इतनी भोली नहीं रही कि भावनात्मक मुद्दों पर वोट डाल देगी. वह देख रही है कि उसके पास रोजगार नहीं है. कोरोना से वह त्रस्त है. वह भाजपा के बहकावे में नहीं आने वाली.’

हालांकि डीएम दिवाकर भी ये मानते हैं कि विपक्षी पार्टी खासकर तेजस्वी यादव की तरफ से रोजगार, गरीबी, बाढ़ जैसे मुद्दे उठाना सही कदम है.

उनका कहना है, ‘तेजस्वी यादव अगर ज्वलंत मुद्दे को उठा रहे हैं, तो ये अच्छी बात है. लेकिन, जितना प्रयास अभी हो रहा है, वो नाकाफी है. विपक्ष को इन मुद्दों को गहराई से उठाना होगा और लोगों तक पहुंचना होगा. अगर वह धारदार तरीके से ये मुद्दे उठाएगा, तो फायदा होगा.’

राजपूत वोट बैंक पर नजर

बिहार में राजपूत वोट बैंक 5 प्रतिशत के आसपास है. बिहार की उच्च जातियों में भाजपा को लेकर कुछ हद तक नाराजगी बरकरार है.

यही वजह है कि वह अब भी 15 साल पहले की लालू सरकार के कथित ‘जंगलराज’ का बार-बार जिक्र करती है ताकि उच्च जातियों का वोट भाजपा को मिल जाए.

सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने के पीछे राजपूत वोट बैंक भी एक वजह है.

दूसरी बात ये भी है कि सुशांत केस को केवल राजपूत समुदाय ही बिहारी अस्मिता से जोड़कर नहीं देख रहा है, बल्कि दूसरी बिरादरियों में भी सुशांत को न्याय दिलाने के लिए भावनात्मक ज्वार उठा हुआ है.

ऐसे में भाजपा को न केवल राजपूत वोट बल्कि दूसरे समुदायों का वोट मिलने की भी उम्मीद है.

कुल मिलाकर देखा जाए, तो भाजपा सुशांत के मुद्दे के जरिए एक तीर से कई शिकार करने की तैयारी में है. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा विपक्षी पार्टियां जनता को ज्वलंत मुद्दों की तरफ खींचकर चुनाव का रुख मोड़ पाती है कि नहीं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)