साल 2014 से लेकर अब तक दस राज्यों ने कुल 2.70 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण को माफ़ करने की घोषणा की थी, लेकिन इसमें से 1.59 लाख करोड़ रुपये के ही क़र्ज़ माफ़ हुए हैं. इसके साथ ही आंकड़े बताते हैं कि 2015 से 2020 के बीच किसानों के क़र्ज़ में लगभग 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
नई दिल्ली: पिछले छह सालों में कई विधानसभा चुनावों के दौरान विभिन्न पार्टियों द्वारा किसानों का कर्ज माफ करने के वादे के बाद 10 राज्यों ने करीब 1.12 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज माफ नहीं किया है.
इतना ही नहीं, आंशिक कृषि कर्ज माफी के बावजूद किसानों पर ऋण का भार बढ़ता ही जा रहा है और किसानों द्वारा कर्ज लेने की राशि में साल दर साल बढ़ोतरी हुई है.
बीते रविवार को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों से जानकारी सामने आई है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन नाबार्ड द्वारा इकट्ठा की गई सूचना के मुताबिक साल 2014 से लेकर अब तक 10 राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश ने कुल 2,70,225.87 करोड़ रुपये (2.70 लाख करोड़ रुपये) के कृषि कर्ज को माफ करने वादा किया था.
लेकिन इसमें से 1,59,174.01 करोड़ रुपये (1.59 लाख करोड़ रुपये) के ही लोन को माफ किया गया है, जो कुल आवंटन की तुलना में करीब 63 फीसदी ही है.
यानी कि राज्य सरकारों द्वारा वादा किए जाने के बावजूद करीब 41 फीसदी या यूं कहें कि 1,11,051.86 करोड़ रुपये के ऋण को माफ नहीं किया गया है.
महाराष्ट्र
उदाहरण के तौर पर, किसानों के व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में महाराष्ट्र सरकार ने 28 जून 2017 को छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकारी सम्मान योजना की घोषणा की थी.
इसके तहत राज्य सरकार ने कुल 34,022 करोड़ रुपये के कृषि लोन को माफ करने का वादा किया था. लेकिन इसमें से सिर्फ 19,833.54 करोड़ रुपये के ही कर्ज को माफ किया गया, जो कुल आवंटन की तुलना में करीब 58 फीसदी ही है.
इस योजना से कुल 48.02 लाख किसानों को लाभ मिला. इसके तहत प्रति कृषि परिवार का 1.5 लाख रुपये तक के कर्ज को माफ किया जाना था.
इसमें ये भी प्रावधान था कि जिन किसानों के ऊपर 1.5 लाख रुपये से ज्यादा का कर्ज है, तो उन्हें बाकी राशि का भुगतान करने के बाद इसका लाभ मिल पाएगा.
हालांकि विपक्षी पार्टियां कांग्रेस और एनसीपी ने संपूर्ण कर्ज माफी की मांग करते हुए फडणवीस सरकार की इस योजना को किसानों पर एक भद्दा मजाक बताया. आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए उन्होंने तब पूर्ण रूप से कर्ज माफी का वादा किया.
बाद में दिसंबर 2019 में जब कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की गठबंधन वाली नई सरकार बनी तो उन्होंने महात्मा ज्योतिराव फूले शेतकारी कर्ज मुक्ति योजना की घोषणा की.
इसके तहत एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2019 के बीच लंबित दो लाख रुपये तक के फसल ऋण माफ करने की योजना बनी थी.
राज्य सरकार ने इस कार्य के लिए कुल 20,081 करोड़ रुपये का आवंटन किया, लेकिन इसमें से 17,080.59 करोड़ रुपये के ही कृषि लोन को माफ किया गया.
मध्य प्रदेश
इसी तरह दिसंबर 2018 में पांच विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस ने कहा था कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो उनकी सरकार 10 दिन के भीतर कृषि लोन माफ कर देगी. बाद में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उनकी पार्टी सत्ता में आई.
लेकिन सिर्फ छत्तीसगढ़ को छोड़कर बाकी राज्यों में इनका संतोषजनक भी प्रदर्शन नहीं है. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी योजना के तहत राज्य सरकार ने कुल 36,500 करोड़ रुपये के कर्ज माफी की घोषणा की थी.
लेकिन इसमें से सिर्फ 11,912 करोड़ रुपये के ही ऋण को माफ किया गया, जो कुल आवंटन की तुलना में मात्र करीब 32 फीसदी है. इस योजना के तहत राज्य के 20.23 लाख किसानों को लाभ मिला है.
वर्तमान में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा सत्ता में है.
दिसंबर, 2018 में सत्ता में आते ही जब मध्य प्रदेश के नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस योजना को मंजूरी देते हुए हस्ताक्षर किया था, तो कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने उल्लास में आकर ट्वीट किया ‘एक हो गया, दो बाकी हैं.’
गांधी का इशारा इस ओर था कि मध्य प्रदेश में कर्ज माफी लागू कर दिया गया है और अब बस छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ये काम करना बाकी है.
हालांकि राजस्थान में भी वादे के मुताबिक कृषि कर्ज माफ नहीं किया गया.
राजस्थान
राजस्थान सरकार ने अलग-अलग श्रेणी के कर्जदार किसानों के लिए साल 2018 से 2019 के बीच कुल चार योजनाओं की घोषणा की और इनके तहत 18,695.72 करोड़ रुपये के कृषि लोन को माफ करने का ऐलान किया गया था.
इसमें अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के अलावा वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली भाजपा सरकार की भी 8,500 करोड़ रुपये की ऋण माफी घोषणा शामिल है.
लेकिन इसमें से कुल 15,603.35 करोड़ रुपये के ही कृषि कर्ज को माफ किया गया है.
संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक इससे कुल 48.72 किसानों को लाभ मिला है. राज्य की कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों ने अपने वादे के मुताबिक किसानों के कर्ज को माफ नहीं किया.
छत्तीसगढ़
कांग्रेस नेता भूपेश बघेल की अगुवाई वाली छत्तीसगढ़ सरकार का प्रदर्शन इन राज्यों की तुलना में बेहतर है. यहां राज्य ने साल 2018 के आखिरी महीने में 6,230 करोड़ रुपये के अल्पकालिक ऋण को माफ करने की योजना बनाई थी.
इसमें से 5,961.62 करोड़ रुपये माफ किए जा चुके हैं. इस योजना के तहत राज्य के 15.26 लाख किसानों को लाभ मिला है.
बघेल से पहले रमन सिंह की अगुवाई वाली छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने दिसंबर 2015 में किसानों के 25 फीसदी कर्ज माफी की घोषणा की थी.
हालांकि इसे उचित तरीके से लागू नहीं किया गया और इसके तहत सिर्फ 135.13 करोड़ रुपये के ही कृषि कर्ज को माफ किया जा सकता. राज्य के कुल 1.95 लाख किसानों को इस योजना से लाभ मिला था.
पंजाब
अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए अपने वादे के अनुसार साल 2017 में फसल ऋण माफी योजना की घोषणा की थी.
इसके तहत छोटे एवं सीमांत किसानों के दो लाख रुपये तक के लोन को माफ किया जाना था. राज्य सरकार ने इस योजना के तहत कुल 10,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था.
लेकिन इसमें से सिर्फ 4,696.09 करोड़ रुपये के कृषि ऋण का माफ किया गया है, जो कि पूरे आवंटन की तुलना में 50 फीसदी से भी कम है. इससे पंजाब के कुल 5.70 लाख किसानों को लाभ मिला है.
उत्तर प्रदेश
साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने भी किसानों के फसल ऋण को माफ करने वादा किया था.
नतीजन, योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य सरकार ने 36,359 करोड़ रुपये के कृषि कर्ज को माफ करने के लिए एक योजना का ऐलान किया.
इसके तहत छोटे एवं सीमांत किसानों के एक लाख रुपये तक के लोन को माफ किया जाना था. हालांकि योजना के तीन साल बाद योगी सरकार ने किसानों के 25,233.48 करोड़ रुपये के ही ऋण को माफ किया है.
इससे कुल 44 लाख किसानों को लाभ मिला है.
इस योजना के चलते राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार इसलिए भी आलोचनों के घेरे में थी क्योंकि इसके तहत कम से कम 4,814 किसानों के 1 रुपये से लेकर 100 रुपये तक के लोन को माफ किया गया था.
इसके अलावा लगभग 12 लाख किसानों के 10,000 से अधिक के ऋण को माफ किया गया था.
कर्नाटक
कांग्रेस नेता सिद्धरमैया की अगुवाई कर्नाटक सरकार ने जून 2017 में 18,000 करोड़ रुपये के किसान ऋण माफी का ऐलान किया था. इसके तहत करीब 22 लाख किसानों के 50,000 रुपये के लोन को माफ किया जाना था.
हालांकि संसद में पेश किसानों के मुताबिक तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसमें से सिर्फ 7,794 करोड़ रुपये के ही लोन को माफ किया, जो कुल आवंटन की तुलना में सिर्फ करीब 43 फीसदी है.
इसके अगले साल कांग्रेस ने जेडीएस के साथ गठबंधन कर एचडी कुमारस्वामी की अगुवाई में नई सरकार बनाई और 44,000 करोड़ रुपये की लागत वाले नए ऋण माफी योजना की घोषणा की गई.
इसके तहत प्रति किसान परिवार दो लाख रुपये तक के अल्पकालिक फसल ऋण माफ करने का प्रवाधन था.
लेकिन कर्नाटक सरकार इसमें से केवल 14,754 करोड़ रुपये के ही कृषि ऋण को माफ किया, जो आवंटित राशि के मुकाबले मात्र 33 फीसदी है. इसके तहत कुल 25.65 लाख किसानों को लाभ मिला है.
जुलाई 2019 से राज्य में बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई वाली भाजपा सरकार सत्ता में है.
आंध्र प्रदेश
अगस्त, 2014 में तत्कालीन एन. चंद्रबाबू नायडू सरकार ने 24,000 करोड़ रुपये के कृषि ऋण माफी योजना की घोषणा की थी.
इसके तहत छोटे एवं सीमांत किसानों के 1.50 लाख रुपये तक के फसल ऋण को माफ किया जाना था.
लेकिन कृषि मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक कुल 15,622.05 करोड़ रुपये के ही कृषि कर्ज को माफ किया गया है. इसके जरिये कुल 58.34 लाख किसानों को लाभ मिला है.
तेलंगाना
इसी तरह के. चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली तेलंगाना सरकार ने साल 2014 में किसानों के 17,000 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ करने का वादा किया था. इस योजना के तहत सभी किसानों के एक लाख रुपये तक के लोन को माफ किया जाना था.
अन्य राज्यों की तुलना में यहां पर तेलंगाना सरकार का प्रदर्शन बेहतर है, जिसने किसानों के 16,144.10 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ किया है. इस योजना के जरिये कुल 35.32 लाख किसानों को लाभ मिला था.
तमिलनाडु
दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने मई 2016 में 5,318.73 करोड़ रुपये के कृषि लोन को माफ करने की घोषणा की थी. इसके तहत को-ऑपरेटिव बैंकों के छोटे एवं सीमांत किसानों पर 31.03.2016 तक बकाया कर्ज को माफ किया जाना था.
राज्य सरकार ने अपने वादे की आंशिक पूर्ति की और 4,529.54 करोड़ रुपये के ही कृषि कर्ज को माफ किया गया. इसके तहत कुल 12.02 लाख किसानों को लाभ मिला था.
इनके अलावा पूर्व राज्य जम्मू कश्मीर (अब केंद्रशासित प्रदेश) ने जनवरी 2017 में घोषणा किया था कि चरणबद्ध तरीके से एक लाख रुपये तक के कृषि क्रेडिट कार्ड (केसीसी) लोन का 50 फीसदी माफ किया जाएगा.
कृषि मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस योजना के तहत कुल 244 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ किया गया था और इससे राज्य के 1.15 लाख किसानों को लाभ मिला.
केंद्रशासित प्रदेशों में एकमात्र पुदुचेरी ने जनवरी 2018 में 19.42 करोड़ रुपये के कृषि कर्ज माफ करने की घोषणा की थी.
हालांकि इसमें से सिर्फ नौ करोड़ रुपये तक के लिए कर्ज को माफ किया गया और इससे 500 किसान ही लाभान्वित हो पाए.
कर्ज माफी के बावजूद किसानों पर बढ़ता कर्ज
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा संसद में पेश की गई जानकारी से एक और तथ्य निकलकर सामने आता है कि विभिन्न राज्यों की अलग-अलग कृषि कर्ज माफी योजना के बावजूद किसानों पर कुल कर्ज राशि बढ़ती ही जा रही है.
आलम ये है कि पिछले पांच सालों (2015-20) में किसानों पर करीब 35 फीसदी कर्ज की बढ़ोतरी हुई है.
मंत्रालय के मुताबिक 31 मार्च 2015 तक किसानों पर 8,77,252.92 करोड़ रुपये का कर्ज था, जो 31 मार्ज 2020 में बढ़कर 11,81,901.29 करोड़ रुपये हो गया.
फिलहाल किसानों पर सबसे ज्यादा 7,28,306.29 करोड़ रुपये के कर्ज अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के हैं. इसके बाद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के कुल 2,08,840 करोड़ रुपये के कृषि कर्ज हैं.
किसानों पर राज्य एवं जिला सहकारी बैंकों के कुल 2,44,755 करोड़ रुपये के कर्ज हैं.
आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च 2016 तक बैंकों द्वारा दिया गया कुल कृषि लोन 9,84,764.40 करोड़ रुपये था, जो ठीक एक साल बाद बढ़कर 10,43,586.69 करोड़ रुपये हो गया.
इसके अगले साल 31 मार्च 2018 तक ये राशि और बढ़कर 11,17,459.27 करोड़ रुपये और 31 मार्च 2019 तक 11,78,581.20 करोड़ रुपये हो गई.
कृषि ऋण माफी पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ
साल 2014-15 के बाद विभिन्न बड़े किसान आंदोलनों एवं विपक्ष के दबावों के चलते एक नया ट्रेंड देखने में आया कि राजनीतिक दल चुनाव से पहले कृषि ऋण माफी की घोषणा करने लगे.
वैसे तो सत्ता में आने बाद पार्टियां अपने इन वादों को भूल गईं और आंशिक कर्ज माफी कर इससे छुटकारा पाना चाहा, लेकिन आर्थिक जगत इस तरह की योजनाओं को सहमति प्रदान नहीं करता है.
कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कृषि ऋण माफी लोन और आर्थिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.
हालांकि इसके जवाब में किसान एवं कृषि कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि कॉरपोरेट जगत के लाखों करोड़ों रुपये के लोन को बट्टा खाते (राइट ऑफ) में डाला जा सकता है तो किसानों के चंद लोन क्यों नहीं माफ किए जा सकते.
सितंबर 2019 में आई कृषि ऋण पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों के कर्ज माफ करने से राज्य के वित्त पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.
इसमें कहा गया, ‘एक वृहद आर्थिक दृष्टिकोण से, कृषि ऋण माफी की नीति इस तर्क पर आधारित है कि इससे किसानों पर ऋण के भार को कम किया जाएगा, जो कि उन्हें वास्तविक आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने में सक्षम बनाती है. हालांकि, वास्तव में यह अक्सर कर्ज संस्कृति को कमजोर करता है और राज्य के वित्त को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, जो बदले में मध्यम अवधि में किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाता है.’
आरबीआई ने सुझाव दिया कि किसानों को राहत पहुंचाने के लिए ऋण माफी के बजाय समग्र कृषि नीतियों को अच्छे तरीके से लागू करने की जरूरत है.
हालांकि कई किसानों एवं कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि ये बात सही है कि कृषि ऋण माफी किसानों की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए एक बार संपूर्ण ऋण माफी की जरूरत है ताकि किसान फिर से खड़ा हो सके और सरकार द्वारा कृषि नीतियों को उचित स्तर पर लागू किए जाने पर उसका लाभ उठा सके.