अडानी समूह के गोदाम में गेहूं न रखने से हुए नुकसान की कैग रिपोर्ट हटाने को प्रयासरत मोदी सरकार

एक्सक्लूसिव: साल 2018 में कैग ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 2013-14 से 2015-16 के बीच एफसीआई ने हरियाणा के कैथल में अडानी समूह के गोदाम में इसकी क्षमता के अनुसार गेहूं नहीं रखा और खाली जगह का किराया भरते रहे. मोदी सरकार अब इस रिपोर्ट से यह बात हटवाने का प्रयास कर रही है.

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एक्सक्लूसिव: साल 2018 में कैग ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 2013-14 से 2015-16 के बीच एफसीआई ने हरियाणा के कैथल में अडानी समूह के गोदाम में इसकी क्षमता के अनुसार गेहूं नहीं रखा और खाली जगह का किराया भरते रहे. मोदी सरकार अब इस रिपोर्ट से यह बात हटवाने का प्रयास कर रही है.

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नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की उस रिपोर्ट में संशोधन कराने की कोशिश कर रही है, जिसमें कैग ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को फटकार लगाते हुए कहा था कि हरियाणा के कैथल स्थित अडानी साइलो में स्वीकृत मात्रा में अनाज न रखने के चलते करदाताओं का 6.49 करोड़ रुपये का बेजा खर्च हुआ है.

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, जिसके अधीन एफसीआई आता है, ने कैग को पत्र लिखकर मांग की है कि इस पैराग्राफ को रिपोर्ट से हटाया जाना चाहिए.

मंत्रालय ने दावा किया है कि जिस आधार पर इस अतिरिक्त खर्च का आकलन किया गया है, वो सही नहीं है. हालांकि कैग ने इन दलीलों को खारिज करते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए 88 पेज के आंतरिक दस्तावेजों से ये जानकारी सामने आई हैं.

इन फाइलों में शामिल कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि 2013-14 से 2015-16 के बीच उस स्टोरेज क्षमता के लिए भी अडानी कंपनी को 24.28 करोड़ का भुगतान किया गया, जिसका एफसीआई ने कभी इस्तेमाल ही नहीं किया था.

इस दौरान 11 महीनों में अडानी साइलो में कुल 5.18 लाख टन जगह खाली पड़ी रही, लेकिन एफसीआई ने इसमें गेहूं नहीं रखा और वे खाली जगह का किराया भरते रहे थे.

क्या है मामला

भारतीय खाद्य निगम हर साल अपनी एवं राज्य सरकार तथा इसकी एजेंसियों द्वारा गेहूं की खरीद करता है. राज्य की एजेंसियां खरीद सीजन बीतने के बाद सारा स्टॉक एफसीआई को हैंडओवर कर देती हैं.

यदि अनाज रखने के लिए एफसीआई के पास जगह नहीं बचती है तो राज्य सरकार और इसकी एजेंसियां अपने साइलो या गोदाम में गेहूं रखती हैं, जिसके बदले में एफसीआई भारत सरकार द्वारा तय की गई राशि का भुगतान करता है.

इसी सिलसिले में साल 2007 में एफसीआई ने हरियाणा के कैथल में अडानी एग्रो लॉजिस्टिक लिमिटेड के साइलो में दो लाख टन गेहूं के भंडारण के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया.

इसके लिए फरवरी 2013 में एक समझौता हुआ, जिसमें ये तय किया गया कि गेहूं रखने के लिए एफसीआई हर साल प्रति टन 1,842 रुपये की दर से कंपनी को भुगतान करेगा. बाद में सितंबर 2014 में इसे बढ़ाकर 2,033.40 रुपये प्रति टन प्रति वर्ष कर दिया गया.

खास बात ये है कि ये समझौता गारंटीड टनेज (Guaranteed Tonnage) के आधार पर हुआ था. इसका मतलब ये है कि यदि दो लाख टन गेहूं रखने के लिए के लिए कॉन्ट्रैक्ट हुआ है, तो हर साल पूरे दो लाख टन का भुगतान करना होगा, चाहे इससे जितना भी कम गेहूं रखा जाए.

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अडानी ग्रुप द्वारा बनाए गए साइलो. (फोटो साभार: Adani Agri Logistics Limited)

इसे लेकर कैग ने साल 2018 की रिपोर्ट नंबर-4 में बताया था कि एफसीआई ने राज्य सरकार एवं इसकी एजेंसियों के गोदामों या साइलो में ही गेहूं रहने दिया और इसे अडानी साइलो में शिफ्ट नहीं किया गया, जिसके कारण एक तरफ अडानी साइलो में खाली जगह का भी भुगतान करना पड़ा और राज्य के गोदामों में गेहूं रखने से करदाताओं के 6.49 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हुए, जिसे बचाया जा सकता था.

राष्ट्रीय ऑडिटर ने कहा कि 2013-14 से 2015-16 के बीच कैथल साइलो कई बार खाली पड़ा रहा, 14 अप्रैल 2014 को यह 1.33 लाख टन (कॉन्ट्रैक्ट की तुलना में 67 फीसदी) खाली पड़ा रहा. जबकि पेहोवा, पुंडरी और पाई में राज्य के गोदामों में गेहूं पड़ा हुआ था.

साल 2013-14 के दौरान आठ महीने और साल 2014-15 के दौरान तीन महीने साइलो में क्षमता के मुकाबले गेहूं का स्टॉक कम था.

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य सरकार एवं इसकी एजेंसियों के गोदामों की तुलना में साइलो में गेहूं रखना सस्ता होता है. इसलिए करदाताओं के पैसे बचाने के लिए ये करना जरूरी था.

हालांकि मोदी सरकार का मानना है कि कैग का ये आकलन सही नहीं है और इसे वापस लिया जाना चाहिए.

कैग रिपोर्ट

28 अक्टूबर 2018 को मंत्रालय ने पत्र लिखकर कहा कि कैग ने ये आकलन इस आधार पर किया है कि कैथल में अडानी साइलो को हर साल गारंटीड दो लाख टन का भुगतान किया गया है.

जबकि एफसीआई ने गारंटीड टनेज की मात्रा 2013-14 में घटाकर 1.90 लाख टन, 2014-15 में 1.41 लाख टन और साल 2015-16 में 1.33 लाख टन कर दी थी. इसलिए अतिरिक्त भुगतान करने की बात सही नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘भंडारण क्षमता का पर्याप्त उपयोग का ये मतलब नहीं है कि हर समय इसकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया जा सकेगा. कुछ जगह जरूर खाली होगी जब स्टॉक को यहां से निकाला जाता है. चूंकि गेहूं की खरीदी सिर्फ दो महीने के लिए होती है और स्टॉक निकालने का कार्य हर महीने होता है, इसलिए भंडारण क्षमता के इस्तेमाल में गिरावट अगले खरीदी सीजन तक जारी रहता है.’

इसके साथ ही उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा कि ऑडिट के दौरान इस बात को ध्यान में नहीं रखा गया है कि साइलो में गेहूं रखने से 0.25 फीसदी खाद्यान्न का नुकसान होता है, इसलिए राज्य सरकार के गोदाम में गेहूं रखने से अप्रत्यक्ष रूप से 0.25 फीसदी की बचत हुई है.

मंत्रालय ने कहा, ‘इसके अलावा राज्य सरकार के गोदामों से एक जुलाई से पहले स्टॉक निकालने पर एफसीआई को एक फीसदी का भार लाभ नहीं मिलता है. इसका मतलब है कि साइलो में गेहूं रखने से कुल 1.25 फीसदी का नुकसान होता. इसके साथ ही राज्य सरकार के गोदामों से स्टॉक को साइलो तक ले जाने में भी काफी खर्च होता.’


Adani Silos CAG Report by The Wire

भारत सरकार की इन दलीलों को खारिज करते हुए कैग ने 14 दिसंबर 2018 को दिए अपने जवाब में कहा कि एफसीआई के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि उन्होंने घटे हुए गारंटीड टनेज के आधार पर भुगतान किया है क्योंकि साइलो की क्षमता दो लाख टन की थी और इतना गेहूं इसमें रखा जा सकता था.

राष्ट्रीय ऑडिटर ने कहा, ‘अतिरिक्त खर्च का आकलन इस आधार पर किया गया है कि साइलो की कुल क्षमता, जो दो लाख टन थी, में से कितने टन का इस्तेमाल किया गया है. मैनेजमेंट की ये दलील सही है नहीं है कि उन्होंने 2013-14 के दौरान 1.90 लाख टन, 2014-15 में 1.41 लाख टन और 2015-16 में 1.33 लाख टन के लिए भुगतान किया है क्योंकि साइलो की क्षमता दो लाख टन की थी.’

यदि कुल क्षमता के बजाय गारंटीड टनेज के आधार पर भी अडानी साइलो में गेहूं की मात्रा को देखा जाए तो दस्तावेजों के मुताबिक वित्त वर्ष 2013-14 में आठ महीने- अप्रैल में 10,693 टन, सितंबर में 9,733 टन, अक्टूबर में 27,812 टन, नवंबर में 45,771 टन, दिसंबर में 67,001 टन, जनवरी में 90,887, फरवरी में 99,807 टन और मार्च में 1,17,951 टन जगह खाली पड़ी थी.

इसी तरह वित्त वर्ष 2014-15 में तीन महीने- जनवरी में 2,083, फरवरी में 17,355 और मार्च में 29,573 टन जगह खाली पड़ी थी. इस खाली जगह के लिए भी भारत सरकार ने 15.35 रुपये प्रति क्विंटल प्रति महीने की दर से अडानी एग्रो लॉजिस्टिक लिमिटेड के लिए भुगतान किया है.

कैग ने अपने पत्र में आगे कहा, ‘ऑडिट में नुकसान का आकलन करते हुए स्टॉक को लेकर जाने में आने वाले खर्च को शामिल किया गया है. इसके अलावा भारत सरकार ने पंजाब में 21 लाख टन के स्टील साइलो के निर्माण की स्वीकृति (जैसा कि उनके ही एक जवाब में बताया गया है) दी है. यदि साइलो में खाद्यान्न रखने से 1.25 फीसदी का नुकसान होता है तो भारत सरकार अपने जवाब के आधार पर ही इस नुकसान को बचा सकती थी.’

कैग ने कहा कि खाद्यान को राज्य के गोदामों से ले जाने में 11.04 रुपये से लेकर 16.54 रुपये प्रति क्विंटल और बोरी में भरने तथा इसे खाली करने में 2.11 रुपये से 2.85 रुपये प्रति क्विंटल का खर्चा आता है. इस तरह गोदामों से साइलो तक स्टॉक ट्रांसफर करने में कुल 13.15 से 19.39 रुपये का खर्चा आता.

उन्होंने कहा कि चूंकि राज्य सरकार के गोदामों में स्टॉक रखने पर 20.91 से 23.29 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च आता है, इस तरह कैथल स्थित अडानी साइलो में गेहूं रखने से 2.7 से 9.0 रुपये प्रति क्विंटल बचाया जा सकता था.

कैग ने कहा कि ये पैराग्राफ हटाया नहीं जा सकता है और उनका आकलन सही है.

द वायर   द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि खुद भारतीय खाद्य निगम ने हरियाणा के अपने क्षेत्रीय कार्यालय को पत्र लिखकर कहा है कि खाद्यान्न भंडारण के लिए साइलो एक आधुनिक व्यवस्था हैं, जो नुकसान को कम करता है और खाद्यान्न की गुणवत्ता को बनाए रखता है.

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एफसीआई का वो पत्र जिसमें कहा गया है कि साइलो में खाद्यान्न रखने से कम नुकसान होता है.

निगम के सहायक महाप्रबंधक मनदीप गुरे ने 27 मार्च 2019 को पंचकूला के अपने ऑफिस के महाप्रबंधक को लिखे पत्र में कहा, ‘मंत्रालय ने जानकारी मांगी है कि साल 2013-14 के दौरान आठ महीने और साल 2014-15 के दौरान तीन महीने तक कैथल साइलो खाली पड़ा था, जबकि राज्य सरकार के गोदामों में काफी मात्रा में गेहूं पड़ा हुआ था. साइलो खाद्यान्न भंडारण का आधुनिक तरीके है, जो खाद्यान्न के संरक्षण को सुनिश्चित करता है, नुकसान को कम करता है और अनाज की गुणवत्ता को बनाए रखता है. इसलिए भंडारण के लिए पारंपरिक गोदाम की जगह साइलो को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.’

हालांकि इसके बाद भी मंत्रालय ने पुरानी दलीलों को ही दोहराते हुए 18 फरवरी 2019 को एक और पत्र भेजा और कैग से इस आकलन को हटाने की मांग की.

खास बात ये है कि इस बार सरकार ने 1.25 फीसदी नुकसान की बात नहीं दोहराई और इसे दूसरे तरीके से रखते हुए कहा कि इस ‘विशेष मामले’ में साइलो की जगह राज्य सरकार के गोदामों में ही गेहूं रखने से लाभ हुआ है.

एक तरफ जहां मंत्रालय अतिरिक्त खर्च करने को लेकर कैग के इस आकलन को स्वीकार नहीं कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने पत्र में ये भी कहा कि एफसीआई को निर्देश दिया गया है कि वे भविष्य में कैथल साइलो को पर्याप्त रूप से भरा रखें.

मंत्रालय ने कहा, ‘भारत सरकार भंडारण व्यवस्था को आधुनिक करने का इरादा रखती है ताकि पहले के पारंपरिक गोदामों में अनाज रखने से होने वाली चोरी, नुकसान इत्यादि से बचा जा सके. इसके अलावा एफसीआई को निर्देश दिया गया है कि वे भविष्य में कैथल साइलो को पर्याप्त रूप से भरने के लिए सभी कदम उठाएं.’

यहां सवाल उठता है कि यदि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है कि राज्य के गोदामों में रखने से उसे लाभ हुआ है, जैसा कि कैग को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है, तो कैथल साइलो पूरी तरह भरने का निर्देश क्यों दिया गया है.

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अडानी साइलो. (फोटो साभार: Adani Agri Logistics Limited)

कैग की फटकार के बाद मंत्रालय के अवर सचिव मदन मोहन मौर्या ने 18 फरवरी 2019 को एफसीआई के चेयरमैन और महाप्रबंधक को पत्र लिखकर कहा कि वे कैथल स्थित अडानी साइलो को भरने के लिए सभी कदम उठाएं, क्योंकि ये भंडारण का आधुनिक तरीका है और इसमें कम नुकसान होता है.

कैग ने 26 फरवरी 2019 को दिए अपने जवाब में एक बार फिर से कहा कि भले ही गारंटीड टनेज को कम कर दिया गया हो, लेकिन साइलो की भंडारण क्षमता दो लाख टन थी, इसलिए मंत्रालय की दलील सही नहीं है और ये पैराग्राफ नहीं हटाया जाएगा.

इसके बाद भी मंत्रालय और एफसीआई के बीच पत्राचार होता रहा कि कैग का ये आकलन सही है या नहीं. पिछले साल 21 अप्रैल 2020 को मंत्रालय ने एक फिर पत्र लिखा, जिसके जवाब में एफसीआई ने छह दिसंबर 2019 को भेजे अपने जवाब को दोहाराया था.

निगम ने कहा कि यदि कैग की रिपोर्ट को फॉलो किया जाता है तो इसका मतलब ये होगा कि अडानी साइलो हर महीने 100 फीसदी तक भरा रहे. यदि एफसीआई ऐसा करती है तो अगले खरीद सीजन में अडानी साइलो पर किसानों से सीधी खरीद नहीं हो पाएगी, क्योंकि यहां रखने के लिए जगह नहीं बचेगी.

उन्होंने कहा, ‘साइलो पर किसानों से भारी मात्रा में खरीद करने से मंडी में लगने वाले शुल्क, जैसे कि बोरियों पर मार्का लगाना, बोरी में गेहूं भरना, उसे तौलना, बोरी सिलना, फिर उसे खाली करना, आवागमन इत्यादि की बचत होती है.’

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एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा कराया गया आकलन, जिसमें बताया गया है कि नुकसान को रोकने के लिए कैथल साइलो को भरना जरूरी है.

एफसीआई का कहना है कि कैग ने अडानी साइलो में दो लाख टन की क्षमता के आधार पर नुकसान का आकलन किया है, जबकि दो लाख टन के लिए भुगतान नहीं करना था. साल दर साल गारंटीड टनेज की मात्रा कम कर दी गई थी.

हालांकि कैग की रिपोर्ट में ये कहा गया है कि अडानी साइलो की क्षमता के बराबर गेहूं रखने के बजाय एफसीआई ने राज्य सरकार के गोदामों में गेहूं रखा, जिसके कारण इन गोदामों को भी भुगतान करना पड़ना पड़ा और इस तरह सरकार ने अतिरिक्त खर्च किया.

इस तरह कैग ने जिस नुकसान का आकलन किया है वो राज्य सरकार के गोदामों को किए गए भुगतान पर आधारित है, न कि अडानी साइलो में खाली जगह का भुगतान करने को लेकर है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि कैग ही नहीं, बल्कि जनवरी 2014 में एफसीआई के क्षेत्रीय ऑफिस हरियाणा ने अपने जिला कार्यालय द्वारा आकलन कराने के बाद एफसीआई मुख्यालय से सिफारिश की थी कि नुकसान से बचने के लिए राज्य सरकार के गोदामों में रखे स्टॉक को कैथल साइलो में ट्रांसफर किया जाना चाहिए.

जबकि राष्ट्रीय ऑडिटर ने अपने आकलन में बताया था कि अडानी साइलो में स्टॉक ट्रांसफर नहीं करने के चलते प्रति क्विंटल पर अतिरिक्त 2.7 रुपये से 9.0 रुपये तक अतिरिक्त खर्च हुए हैं.

हालांकि कैग के मुताबिक एफसीआई इस दिशा में कोई कदम उठाने में असफल रही, जिसके चलते अप्रैल 2013 से अक्टूबर 2016 के बीच राज्य सरकार के गोदामों को 6.49 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा, जिसे बचाया जा सकता था.

दस्तावेजों के मुताबिक इस दौरान राज्य सरकार एवं इसकी एजेंसियों के पेहोवा, पुंडरी और पाई गोदामों में 43 महीनों में रखे गए कुल 43.84 लाख टन के लिए भुगतान किया गया था. इन गोदामों प्रति क्विंटल 20.91 रुपये से 23.29 रुपये की दर से पेमेंट भुगतान हुआ था.

हरियाणा के पंचकुला स्थित एफसीआई के क्षेत्रीय ऑफिस ने नई दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय के महाप्रबंधक (एसएंडीसी) को 14 अगस्त 2018 को लिखे पत्र में दावा किया था कि कैग के आकलन के उलट राज्य के गोदामों में गेहूं रखने से निगम को 2013-14 में 1.59 करोड़ रुपये और 2014-15 में 42.23 लाख रुपये का फायदा हुआ है.

 

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विभाग ने ये आकलन 1.25 फीसदी के संभावित लाभ फार्मूला के आधार पर निकाला था, जिसे कैग ने खारिज कर दिया था. कैग ने कहा था कि यदि साइलो में अनाज रखने से नुकसान ही होता है तो भारत सरकार साइलो बनाने को मंजूरी क्यों दे रही है.

कैग ने कहा है कि भले ही मंत्रालय कोशिश करती रहे लेकिन वे इस बात को अपनी रिपोर्ट से नहीं हटाएंगे.

राष्ट्रीय ऑडिटर के मीडिया एडवाइजर बीएस चौहान ने द वायर  से कहा, ‘हम एक बार अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप देते हैं, उसके बाद इसमें किसी भी तरह का संशोधन नहीं होता है, न तो कोई पैरा हटाया जा सकता या उसे एडिट किया जाएगा. हमारी रिपोर्ट फाइनल होती है, भले ही मंत्रालय उसे हटाने की बात करती रहे.’

 बदलते रहे एफसीआई के बयान

दस्तावेजों से पता चलता है कि कैग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कैथल साइलो में पर्याप्त गेहूं न रखने के चलते 5.46 करोड़ रुपये के गैर जरूरी खर्च का आकलन निकाला था, हालांकि फाइनल रिपोर्ट में ये खर्च 6.49 करोड़ रुपये बताया गया है.

इसे लेकर जब पहली बार कैग ने जवाब मांगा था तो एफसीआई ने साल 2014 की एक बैठक के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें राज्य के गोदामों से अडानी साइलो में गेहूं ले जाने की इजाजत ही नहीं थी.

एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय, हरियाणा ने एक अगस्त 2017 को भेजे अपने जवाब में कहा, ‘कृपया 07.03.2014 को हुए बैठक का संज्ञान लें जिसमें कहा गया है कि एफसीआई को सीधे खाद्यान्न पहुंचाने का मतलब राज्य की एजेंसियों द्वारा संबंधित मंडियों द्वारा खरीदे गए गेहूं को पहुंचाना है, न कि राज्य की एजेंसियों के गोदाम से भेजना. इसलिए भारत सरकार के इस पत्र के मुताबिक राज्य सरकार के गोदामों से अडानी साइलो पर गेहूं पहुंचाना प्रतिबंधित था.’

कार्यालय ने कहा कि इस आधार पर अतिरिक्त खर्च के आकलन का सवाल ही नहीं उठता है.

हालांकि कैग ने इस दलील को सिरे से खारिज किया और कहा इस जवाब का कोई मतलब नहीं है क्योंकि कैग का आकलन इस बात पर आधारित है कि खरीद सीजन पूरा होने के बाद क्यों अडानी साइलो से स्टॉक निकालकर उसे खाली किया गया, जबकि खाली जगह के लिए भुगतान किया जाता रहा.


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ऑडिटर ने कहा, ‘एफसीआई ने जिस निर्देशों का हलावा दिया है, वो खरीद सीजन के दौरान राज्य सरकार के गोदामों से केवल सीधे एफसीआई को खाद्यान्न ट्रांसफर करने से जुड़ा है. चूंकि एफसीआई कैथल साइलो के लिए भारी-भरकम भुगतान कर रही है, इसलिए उसके इस जगह का इस्तेमाल करने में उचित कदम उठाना चाहिए था.’

इस बाद एफसीआई ने अलग-अलग तरीके की दलीलें देनी शुरू की. पहले उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के गोदामों में गेहूं रखने से 1.25 फीसदी का लाभ हुआ है. इस पर जब कैग ने कहा कि अगर ऐसी ही बात है तो भारत सरकार साइलो क्यों बना रही है, तो एफसीआई ने फिर अपनी बात बदली और कहा कि वे सिर्फ इस ‘विशेष मामले’ की बात कर रहे हैं.

हालांकि इसी बीच मंत्रालय और एफसीआई ने पत्र लिखकर साइलो व्यवस्था की पैरवी की और कहा कि पारंपरिक गोदामों की तुलना में साइलो में नुकसान कम होता है.

द वायर ने इस पूरे मामले को लेकर खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग और एफसीआई से सवाल पूछे हैे, लेकिन अब तक उनका कोई जवाब नहीं मिला है. कोई प्रतिक्रिया मिलने पर उसे रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

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