मुकेश अंबानी की रिलायंस द्वारा फंड प्राप्त कंपनी ने फेसबुक पर किया था भाजपा के लिए प्रचार

विशेष रिपोर्ट: क़ानूनी ख़ामियों, फेसबुक द्वारा नियमों के चुनिंदा इस्तेमाल के चलते मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस द्वारा वित्तपोषित एक कंपनी ने 2019 के आम चुनाव और कई विधानसभा चुनाव के दौरान फेसबुक पर ख़बरों की शक्ल में भाजपा समर्थक विज्ञापन चलाए, जो दुष्प्रचार और फ़र्ज़ी नैरेटिव से भरे हुए थे.

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विशेष रिपोर्ट: क़ानूनी ख़ामियों, फेसबुक द्वारा नियमों के चुनिंदा इस्तेमाल के चलते मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस द्वारा वित्तपोषित एक कंपनी ने 2019 के आम चुनाव और कई विधानसभा चुनाव के दौरान फेसबुक पर ख़बरों की शक्ल में भाजपा समर्थक विज्ञापन चलाए, जो दुष्प्रचार और फ़र्ज़ी नैरेटिव से भरे हुए थे.

(इलस्ट्रेशन: द रिपोर्टर्स कलेक्टिव)

नई दिल्ली: 2019 के संसदीय चुनावों में भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आतंकवाद की आरोपी एक हिंदू साध्वी को मैदान में उतारा. जैसे ही भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को अपने लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के रूप में चुना, फेसबुक ने किसी न्यूज़ रिपोर्ट की शक्ल में एक विज्ञापन दिखाया, जिसके शीर्षक में झूठा दावा किया गया था.

इस विज्ञापन में गलत दावा करते हुए कहा गया था कि प्रज्ञा ठाकुर को मालेगांव बम धमाके के मामले में विस्फोटक प्लांट करने के लिए अपनी मोटरसाइकिल देने के आरोप से ‘बरी’ कर दिया गया है. इसे एक दिन में 300,000 बार देखा गया. इलाज के लिए जमानत पर रिहा हुईं प्रज्ञा ठाकुर, जो अब तक इस मामले की आरोपी हैं, ने अपनी सीट पर जीत दर्ज की.

(सभी स्क्रीनशॉट साभार: फेसबुक एड लाइब्रेरी)

2019 में ही 11 अप्रैल को आम चुनावों के लिए मतदान शुरू होने से पहले फेसबुक पर एक और विज्ञापन नजर आया, जिसमें देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी का मखौल उड़ाया गया था.

अपने एक भाषण में गांधी ने भाजपा पर आतंकवाद के प्रति नरम रुख रखने का आरोप लगाते हुए कहा था कि 1999 में भाजपा की सरकार ने भारत द्वारा आतंकी संगठन के तौर पर चिह्नित पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को रिहा किया था. गांधी ने अपने भाषण में कटाक्ष करते हुए अज़हर को ‘अज़हर जी’ कहा था.

हालांकि फेसबुक पर जो विज्ञापन दिखाया गया, उसमें राहुल गांधी के भाषण के संदर्भ को हटाते हुए पेश किया. इसे किसी खबर की तरह न्यूज [NEWJ] के लोगो के साथ राहुल गांधी का मीम-सरीखा बनाते हुए लिखा गया ‘जब राहुल ने मसूद अज़हर को जी बोला’. इसे चार दिन के अंदर करीब साढ़े छह लाख बार देखा गया.

फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा द्वारा इसके विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर जाने वाले विज्ञापनों का लेखा-जोखा रखने रखने वाली एड लाइब्रेरी अनुसार यह दोनों विज्ञापन न्यूज [NEWJ] नाम के फेसबुक पेज द्वारा दिए गए थे.

न्यूज यानी ‘न्यू इमर्जिंग वर्ल्ड ऑफ जर्नलिज्म लिमिटेड‘ जो भारत के सबसे बड़े दूरसंचार और इंटरनेट समूह जियो प्राइवेट लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है, जिसका स्वामित्व अरबपति मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह के पास है.

भारत के चुनाव आयोग की कानून लागू करने में मौजूद खामी और फेसबुक द्वारा नियमों और प्रक्रियाओं के चुनिंदा इस्तेमाल ने भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक समूह को इन सरोगेट विज्ञापनों- जो किसी राजनीतिक उम्मीदवार द्वारा सीधे वित्त पोषित नहीं हैं या उस उम्मीदवार द्वारा अधिकृत नहीं हैं- को प्रचारित करने के लिए लाखों रुपये खर्च करने का मौका दिया.

ये वो विज्ञापन थे, जो 2019 के संसदीय चुनाव और नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की पहुंच और लोकप्रियता को बढ़ावा देने के लिए जारी किए गए थे.

जब जाहिर तौर पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए फेसबुक ने सरोगेट विज्ञापनों पर नकेल कसी, तब उसके निशाने पर ज्यादातर ऐसे विज्ञापनदाता रहे, जो भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को बढ़ावा दे रहे थे, लेकिन न्यूज (NEWJ) जैसे पेजों को जारी रखने की अनुमति मिली रही.

पिछले एक साल में भारत के एक गैर-लाभकारी मीडिया संगठन द रिपोर्टर्स कलेक्टिव और सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों का अध्ययन करने वाले एड.वॉच ने भारत में होने वाले चुनावों पर फेसबुक की राजनीतिक विज्ञापन नीतियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए फरवरी 2019 से नवंबर 2020 तक फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डाले गए सभी 536,070 राजनीतिक विज्ञापनों के डेटा का विश्लेषण किया.

इन्होंने फेसबुक के एड लाइब्रेरी एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) के माध्यम से डेटा एक्सेस किया और पाया कि उन 22 महीनों में, जिसमें देश के महत्वपूर्ण 2019 के आम चुनाव और नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव शामिल हैं, फेसबुक का विज्ञापन प्लेटफॉर्म दुनिया के सबसे बड़े चुनावी लोकतंत्र में व्यवस्थित रूप से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को कम करते हुए भाजपा को उसके प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अनुचित लाभ देता रहा.

चार भागों की इस श्रृंखला के पहले भाग में हम बताएंगे कि कैसे फेसबुक ने भारत के सबसे बड़े समूह द्वारा वित्त पोषित एक फर्म को भाजपा के पक्ष में सरोगेट विज्ञापन प्रकाशित करने और इसे व्यापक दर्शकों तक पहुंचने में मदद करने के लिए कानूनी खामियों का सहारा लेकर काम करने की अनुमति दी.

न्यूज़ रिपोर्ट के तौर पर पेश होते विज्ञापन

न्यूज [NEWJ] खुद को ऐसा स्टार्ट-अप बताता है जो गांवों और छोटे शहरों में लोगों के लिए, खासतौर पर सोशल मीडिया के माध्यम से ‘समाचार सामग्री’ तैयार करता है.

वास्तव में कंपनी फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ऐसे वीडियो- जो वास्तव में राजनीतिक विज्ञापन होते हैं, लेकिन समाचारों के रूप में तैयार किए जाते हैं, को प्रकाशित करने के लिए एड स्पेस (विज्ञापन देने की जगह) खरीदती है.

इन विज्ञापनों का एक ही अंतर्निहित विषय होता है- भाजपा को गलत सूचनाओं के बलबूते पर बढ़ावा देना, मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़काना और विपक्ष के दलों को बदनाम करना.

फेसबुक उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) या पेजों द्वारा की जाने वाली पोस्ट, जो आम तौर पर दोस्तों और फॉलोवर्स की टाइमलाइन पर दिखती हैं, के विपरीत ये विज्ञापन ‘पेड पोस्ट’ होते हैं, जो फेसबुक द्वारा ऐसी अपेक्षित पहुंच (रीच) से परे यूजर्स को दिखाए जाते हैं.

विज्ञापनदाता यूजर्स की लोकेशन, डेमोग्राफी और व्यवहार जैसे कई डेटा बिंदुओं, जिन पर फेसबुक नज़र रखता है और डेटा एकत्र करता है, के आधार पर उन्हें लक्षित कर सकते हैं. फरवरी 2019 में भारत में आम चुनावों से ठीक पहले पारदर्शिता का दावा करते हुए फेसबुक ने एड लाइब्रेरी में भारत में ‘राजनीति से संबंधित सभी विज्ञापनों’ को टैग करते हुए दिखाना शुरू किया था.

यह एड लाइब्रेरी दिखाती है कि न्यूज [NEWJ] के फेसबुक पेज ने संसदीय चुनावों से पहले के तीन महीनों में लगभग 170 राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित किए.

इनमें से अधिकांश या तो भाजपा नेताओं का महिमामंडन करते हैं या मोदी के लिए मतदाताओं के समर्थन का अनुमान लगाते हैं, राष्ट्रवादी और धार्मिक भावनाओं को भड़काते हैं, जो अक्सर ही भाजपा के चुनावी मुद्दे होते हैं या फिर विपक्षी नेताओं और उनकी रैलियों का मज़ाक उड़ाते हैं.

इन विज्ञापनों को न्यूज [NEWJ] द्वारा अपने सोशल मीडिया चैनलों पर लोगों को लाने के लिए पोस्ट किए जाने वाले गैर-राजनीतिक, भारत के इतिहास और संस्कृति संबंधी सूचनात्मक वीडियो या यूजर्स द्वारा क्रिएट किए जाने वाले वायरल वीडियो- जैसे किसी विशेष रूप से सक्षम महिला, जो विश्वविद्यालय की परीक्षा में पैर से लिख रही थी, या एक पुलिस अधिकारी किसी विशेष तौर पर सक्षम व्यक्ति को खाना खिला रहा था, के बीच बहुत सावधानीपूर्वक प्रसारित किया गया था.

सरोगेट विज्ञापनदाता

न्यूज [NEWJ] के संस्थापक शलभ उपाध्याय के रिलायंस और भाजपा दोनों के ही साथ घनिष्ठ पारिवारिक संबंध हैं. उनके पिता उमेश उपाध्याय रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में अध्यक्ष और मीडिया निदेशक हैं और पूर्व में रिलायंस के स्वामित्व वाले नेटवर्क-18 समूह, जो भारत में कई समाचार चैनल चलाता है, में ‘प्रेसिडेंट ऑफ न्यूज़’ के रूप में काम कर चुके हैं. उनके चाचा सतीश उपाध्याय भाजपा नेता हैं और पार्टी की दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं.

हालांकि न्यूज [NEWJ] भाजपा के साथ किसी औपचारिक संबंध की घोषणा नहीं करता है और न ही पार्टी द्वारा राजनीतिक विज्ञापन बनाने या प्रकाशित करने के लिए न्यूज [NEWJ] को भुगतान करने का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड मौजूद है.

जनवरी 2018 में इसकी स्थापना से मार्च 2020 तक, जिस अवधि के लिए हमने न्यूज [NEWJ] की वित्तीय समीक्षा की, इसने समाचार संचालन, यहां तक कि विज्ञापन के लिए शुल्क के रूप में भी कोई राजस्व अर्जित नहीं किया. कंपनी की बैलेंस शीट दिखाती है कि इसके बजाय इसने रिलायंस समूह द्वारा विज्ञापनों पर निवेश किया गया पैसा खर्च किया.

सरोगेट या घोस्ट एडवरटाइजिंग, यानी किसी राजनीतिक उम्मीदवार का पक्ष लेने वाले विज्ञापन, जो उस उम्मीदवार द्वारा सीधे वित्त पोषित या अधिकृत नहीं हैं, भारतीय कानून के तहत अपराध है. इसके जरिये यह सुनिश्चित किया जाता है कि राजनीतिक दलों को उनके द्वारा दी गईं सभी सूचनाओं के लिए जवाबदेह ठहराया जाए और चुनाव अभियानों के विज्ञापनों के भुगतान के लिए पैसे के अज्ञात स्रोतों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित किया जा सके.

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में मिली जानकारी बताती है कि भारत में चुनावों को नियंत्रित करने वाला चुनाव आयोग बरसों से इन खामियों से वाकिफ होने के बावजूद फेसबुक जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इस प्रतिबंध का विस्तार नहीं करता है.

यहां तक कि फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा ने भी इस नियम को लागू नहीं किया, जिससे रिलायंस द्वारा वित्त पोषित न्यूज [NEWJ] को चुनावों के दौरान फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चुपचाप भाजपा और उसके उम्मीदवारों का प्रचार करने की अनुमति मिली.

इसके अलावा, फेसबुक ह्विसिलब्लोअर फ्रांसेस हॉगेन द्वारा हाल ही में लीक किए गए दस्तावेज बताते हैं कि फेसबुक ने भारतीय निकाय इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) को संसदीय चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कठोर नियम लागू न करने के लिए चुनाव आयोग के साथ लॉबीइंग करने को कहा था.

हालांकि फेसबुक ने संसदीय चुनावों से पहले सरोगेट विज्ञापनदाताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का दावा किया है, लेकिन इसके निशाने पर अधिकांश कांग्रेस का प्रचार करने वाले विज्ञापनदाता थे. इस बहुप्रचारित कार्रवाई, जिसे ‘कोऑर्डिनेटेड इनऑथेंटिक बिहेवियर’ कहा गया था, के जरिये इस कंपनी ने कई देशों में अपने मंच पर कार्रवाई की.

बताया गया कि भारत में इस कार्रवाई में इसने 687 पेजों और एकाउंट्स को हटाया, जो कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करते थे, लेकिन इसके साथ अपने जुड़ाव को छुपाया था. भाजपा का प्रचार करने वाले सिर्फ एक पेज और 14 एकाउंट इस कार्रवाई के दायरे में आए. उनका स्वामित्व और संचालन सिल्वर टच नामक एक आईटी फर्म के पास था, जिसने औपचारिक रूप से भाजपा के साथ अपने संबंध की घोषणा नहीं की थी.

तब एक साक्षात्कार में फेसबुक में साइबर सुरक्षा नीति के प्रमुख नथानिएल ग्लीचर ने कहा था, ‘हम यहां उन पेजों, समूहों की तलाश कर रहे हैं, जो ऐसे डिज़ाइन किए गए हैं कि वे स्वतंत्र हैं, लेकिन वास्तव में किसी संगठन या राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं और इस बात को छिपाने की कोशिश करते हैं.’

उन्होंने ऐसे एकाउंट्स का उदाहरण दिया, जो समाचार संबंधी पेज होने का दिखावा करते थे, लेकिन वास्तव में राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जा रहे थे.

फेसबुक की पूर्व कर्मचारी सोफी यांग, जो बाद में ह्विसिलब्लोअर बन गईं, ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया, ‘लेकिन इस घोषणा के कुछ हफ्तों के बाद ही फेसबुक ने आंतरिक रूप से बताया कि किसी देश के भीतर से उपजने वाले कोऑर्डिनेटेड इनऑथेंटिक बिहेवियर के खिलाफ कार्रवाई पर वैश्विक रोक लगा दी गई है.’

दूसरे शब्दों में समझें, तो उस प्रारंभिक कार्रवाई, जो ज्यादातर कांग्रेस से जुड़े पेजों के खिलाफ हुई थी, के बाद 2019 के चुनावों के दौरान या उसके बाद किसी भी पार्टी के विज्ञापनदाताओं के खिलाफ समान कार्रवाई नहीं की गई.

न्यूज [NEWJ] द्वारा राजनीतिक विज्ञापनों सहित ईमेल पर भेजी गई विस्तृत प्रश्नों की एक सूची के जवाब में मेटा ने कहा, ‘हम अपनी नीतियां किसी व्यक्ति की राजनीतिक स्थिति या पार्टी संबद्धता को केंद्र में रखे बिना समान रूप से लागू करते हैं. इंटेग्रिटी वर्क या कंटेंट को बढ़ावा देने के निर्णय किसी एक व्यक्ति द्वारा एकतरफा तरीके से नहीं किए जा सकते हैं और न ही किए जाते हैं; बल्कि, इनमें कंपनी में मौजूद सभी विभिन्न विचारों को शामिल किया जाता है.’

इसमें यह भी कहा गया है, ‘कोऑर्डिनेटेड इनऑथेंटिक बिहेवियर के खिलाफ हमारी कार्रवाई कभी नहीं रोकी गई और अप्रैल 2019 के चुनावों के बाद भी जारी है.’ मेटा की पूरी प्रतिक्रिया यहां पढ़ी जा सकती है.

भाजपा को किसी जांच-पड़ताल का सामना किए बिना न्यूज [NEWJ] जैसे पेजों के माध्यम से पार्टी के नेताओं और दल को लेकर होने वाली पोस्ट और विज्ञापनों से खूब फायदा हुआ.

एड आर्काइव डेटा के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2019 से नवंबर 2020 तक न्यूज [NEWJ] ने 22 महीनों और 10 चुनावों की अवधि में 718 राजनीतिक विज्ञापन दिए, जिन्हें सामूहिक रूप से फेसबुक यूजर्स द्वारा 29 करोड़ से अधिक बार देखा गया. कंपनी ने इन विज्ञापनों पर 52 लाख रुपये खर्च किए.

इनमें से कई विज्ञापनों ने मुस्लिम विरोधी और पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को भड़काया, कई में भाजपा के विरोधियों और आलोचकों को निशाना बनाया गया और कहीं मोदी सरकार की तारीफों के पुल बांधे गए. इसके उदाहरण देखें.

अप्रैल 2019 में आम चुनाव के लिए चल रहे मतदान के बीच मोदी ने एक चुनावी रैली में पाकिस्तान को भारत की परमाणु शक्ति की चेतावनी देकर ‘राष्ट्रवादी’ भावनाओं को जगाया.

राजस्थान के बाड़मेर में हुई एक रैली में मोदी ने कहा था, ‘भारत ने पाकिस्तान की धमकियों से डरना बंद कर दिया है, मैंने सही किया है न? हर दूसरे दिन वे (पाकिस्तान) कहते थे कि ‘हमारे पास परमाणु हथियार है’…. फिर हमारे पास क्या है? क्या हमने इन्हें (परमाणु हथियार) दिवाली के लिए रखा है?’

उनके इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य में मोदी की प्रतिद्वंद्वी महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया था, ‘अगर  भारत ने अपने परमाणु बम दिवाली के लिए नहीं रखे हैं तो जाहिर है कि पाकिस्तान ने भी अपने ऐसे हथियार ईद के लिए नहीं रखे होंगे. पता नहीं क्यों प्रधानमंत्री मोदी को इतना नीचे नहीं गिरना चाहिए और राजनीतिक बहस को इस स्तर पर नहीं लाना चाहिए.’

महबूबा मुफ़्ती के ट्वीट को मोदी के भाषण के संदर्भ से बिना जोड़े न्यूज [NEWJ] ने अपने विज्ञापन में उन्हें पाकिस्तान के हमदर्द के बतौर पेश किया. विज्ञापन में लिखा था, ‘दोबारा जाहिर हुआ महबूबा का पाकिस्तान प्रेम’.

न्यूज [NEWJ] ने अपने विज्ञापनों ने हिंदू धार्मिक भावनाओं को भी भड़काने की कोशिश की, जो भाजपा का एक प्रमुख हथियार है. मई 2019 में ट्विटर पर हैशटैग बॉयकॉट अमेज़ॉन (#BoycottAmazon) ट्रेंड कर रहा था, क्योंकि इस वैश्विक ऑनलाइन रिटेल दिग्गज और भारत में रिटेल बाजार में रिलायंस की प्रतियोगी कंपनी पर हिंदू देवताओं की छवियों वाले उत्पाद बिकते हुए पाए गए थे.

न्यूज [NEWJ] ने फ़ौरन एक विज्ञापन चलाया, जिसमें कहा गया था कि ‘अमेज़ॉन को इंडिया ने दिखाई अपनी ताकत, निकला लोगों का गुस्सा- देवी-देवताओं वाले प्रोडक्ट्स निकालना पड़ा भारी’

मई 2019 के आम चुनावों के बाद भी न्यूज [NEWJ] ने सरकारी नीतियों और भाजपा नेताओं की सराहना वाले या किसी नए खतरे के बारे में डराने वाली कहानियां पोस्ट करना जारी रखा.

दिसंबर 2019 में जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पड़ोसी देशों के मुसलमानों को छोड़कर बाकी कई धर्मों के शरणार्थियों को देश का नागरिक बनाने के लिए नागरिकता कानून में संशोधन करने का फैसला किया, तो देश भर में विरोध की लहर दौड़ गई.

नवंबर 2020 में न्यूज [NEWJ] ने फेसबुक पर एक विज्ञापन चलाया, जिसमें बांग्लादेश में हिंदू घरों पर मुसलमानों पर हमला करते हुए इस्लाम को बदनाम करने वाली एक कथित फेसबुक पोस्ट संबंधी अफवाहों को लेकर भारत में प्रदर्शनकारियों को यह बताने की कोशिश की गई कि उन्हें नए नागरिकता कानून का समर्थन क्यों करना चाहिए.

इसमें लिखा था, ‘फ्रांस ने अब इस्लामिक कट्टरवाद का शिकार बनने लगे अल्पसंख्यक हिंदू परिवार, सीएए का विरोध करने वालों को देखनी चाहिए बांग्लादेश के हिंदू परिवारों की हालत’.

इसी तरह जब गायिका रिहाना और अन्य वैश्विक हस्तियों ने भारतीय किसानों के लिए बात की, जो मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, तब न्यूज [NEWJ] ने एक विज्ञापन चलाकर पूछा कि ‘भड़काए गए किसानों के आंदोलन पर सवाल करने वाले ये सेलेब्स भारत पर होने वाले हमलों पर क्यों हो जाते हैं चुप’.

इस बारे में भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी और आईटी और सोशल मीडिया प्रमुख अमित मालवीय ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा भेजे गए सवालों का कई बार रिमाइंडर भेजने के बावजूद जवाब नहीं दिया.

व्यवस्थित निवेश

न्यूज [NEWJ] के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शलभ उपाध्याय और उनकी बहन दीक्षा ने जनवरी 2018 में 1,00,000 रुपये की चुकता पूंजी (paid-up capital) के साथ एक निजी लिमिटेड कंपनी के रूप में न्यूज [NEWJ] की स्थापना की.

नवंबर के मध्य में रिलायंस समूह की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट एंड होल्डिंग्स लिमिटेड (आरआईआईएचएल) ने न्यूज [NEWJ] में 75 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी के साथ टेकओवर किया. इसके बाद इसने कंपनी को कनवर्टिबल डिबेंचर (परिवर्तनीय ऋणपत्र) के माध्यम से 8 करोड़ 40 लाख रुपये उधार दिए.

नकदी पाने के साथ न्यूज [NEWJ] ने एक ही काम किया- सोशल मीडिया पर वीडियो का निर्माण और प्रकाशन, जो अक्सर उन विज्ञापनों के रूप में थे, जो भाजपा का प्रचार करते थे, वित्तीय रिकॉर्ड और फेसबुक और यूट्यूब शो पर न्यूज़ प्रोडक्शन.

न्यूज [NEWJ] ने वित्तीय वर्ष मार्च 2019 को केवल 33.7 लाख रुपये के राजस्व के साथ समाप्त किया, जिस पर उसे 22.06 मिलियन (2,20,60,000 रुपये) का शुद्ध घाटा हुआ.

अगले साल रिलायंस ने डिबेंचर के माध्यम से फिर से न्यूज [NEWJ] में 12.50 करोड़ रुपये का निवेश किया. मार्च 2020 को ख़त्म हुए वित्तीय वर्ष के लिए न्यूज [NEWJ] ने कोई राजस्व दर्ज नहीं किया, लेकिन पिछले वर्ष के 60.60 लाख रुपये की तुलना में इस बार उसका विज्ञापन प्रचार का खर्च बढ़कर 2.73 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.

उस समय आरआईआईएचएल की हिस्सेदारी को रिलायंस समूह की एक अन्य कंपनी जियो प्लेटफॉर्म्स लिमिटेड ने टेकओवर कर लिया, जो देश की सबसे बड़ी दूरसंचार ऑपरेटर है, जिसने मार्च 2021 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 902.9 अरब रुपये राजस्व कमाया था.

जियो के इसमें हिस्सेदारी लेने से छह दिन पहले न्यूज [NEWJ] ने अपने ‘आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन’ में संशोधन किया था, जिसके चलते इसके ‘निवेशक’, जो इस मामले में रिलायंस समूह की कंपनी है, को उस कंटेंट गाइडलाइन्स’ को मंजूरी देने का अधिकार मिल गया, जो यह तय करती हैं कि न्यूज [NEWJ] क्या कंटेट प्रोड्यूस करेगा, किसे बढ़ावा देगा और प्रसारित करेगा.

जियो ने मार्च 2021 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में नेवज [NEWJ] को 0.0001% वार्षिक ब्याज दर पर 84.96 मिलियन रुपये (8,49,60,000 रुपये) और उधार दिए. जियो फेसबुक को एक निवेशक मानता है.

न्यूज [NEWJ] का कहना है कि इसके शॉर्ट-फॉर्म वीडियो, जिसे वह ‘विशेष रूप से सोशल मीडिया पर’ प्रकाशित करता है, को कुल 4 अरब मिनट तक देखा गया और इसकी एग्रीगेटेड रीच (पहुंच) 22 अरब से अधिक की है-  जो ‘दुनिया की आबादी का तीन गुना’ है.

रिपोर्टर्स कलेक्टिव को भेजे गए जवाब में न्यूज [NEWJ] के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) शलभ उपाध्याय ने कहा, ‘सबसे बड़े सोशल-फर्स्ट प्रकाशकों में से एक के तौर पर न्यूज [NEWJ] पारदर्शी और प्रभावशाली स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए समर्पित है. इसके लिए हमारे काम की ईमानदारी, पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हम मेटा के कम्युनिटी गाइडलाइन्स, विज्ञापन नीतियों और अनुशंसित प्राधिकरण प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करते हैं.’

हालांकि उन्होंने न्यूज [NEWJ] द्वारा प्रसारित विज्ञापनों, जिनमें भाजपा के समर्थन में दुष्प्रचार या मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़काया गया था, के बारे में किए गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

चुनाव आयोग और फेसबुक की आंखों पर पड़ा पर्दा!

चुनावों को बेकाबू धनबल से बचाने के लिए भारतीय चुनाव कानून एक उम्मीदवार द्वारा प्रचार पर खर्च किए जा सकने वाले धन को सीमित कर देता है. यदि कोई तीसरा पक्ष, जिसका उम्मीदवार के साथ कोई घोषित संबंध नहीं है, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उस उम्मीदवार के विज्ञापनों के लिए भुगतान करता है, तो चुनाव आयोग इसे उम्मीदवार का खर्च मानता है.

आयोग उन उदाहरणों की भी जांच करता है, जहां पारंपरिक मीडिया में भुगतान किए गए विज्ञापनों को समाचार के रूप में पेश किया जाता है. यदि यह पाया जाता है कि किसी उम्मीदवार के प्रचार के लिए किसी ‘खबर’ के लिए वास्तव में भुगतान किया गया था, तो आयोग उम्मीदवार के चुनावी खर्च में इस विज्ञापन पर हुआ वास्तविक या काल्पनिक खर्च जोड़ता है.

हालांकि, ये नियम सोशल मीडिया में प्रसारित होने वाले विज्ञापनों पर लागू नहीं होते हैं.

2013 में आयोग ने सभी राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके अधिकृत एजेंटों के लिए आयोग से सोशल मीडिया विज्ञापनों के लिए पूर्व-प्रमाण लेने और उन पर हुए खर्च को रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया था. लेकिन इस कानून से तीसरे पक्ष या उम्मीदवार से आधिकारिक तौर पर नहीं जुड़ी हुईं संस्थाओं द्वारा प्रसारित विज्ञापनों को बाहर रखा गया और इस तरह सरोगेट एडवरटाइजिंग के लिए एक रास्ता खुला छोड़ दिया गया.

आयोग ने अपने 25 अक्टूबर 2013 के आदेश में कहा कि सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हिस्सा है और विज्ञापनों को इसी तरह से विनियमित किया जाएगा. लेकिन इसमें कहा गया है कि यह अभी भी विचार कर रहा था कि उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों के अलावा अन्य लोगों द्वारा पोस्ट की गई सामग्री से कैसे निपटें ‘जहां ​​वे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार से संबंधित हैं, या उनसे जुड़े हो सकते हैं.’

इन परामर्शों के नतीजों का पता लगाने के लिए इस साल की शुरुआत में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा किए गए एक आरटीआई आवेदन के जवाब में आयोग ने ‘स्वैच्छिक आचार संहिता‘ (Voluntary Code of Ethics) का हवाला दिया, जिसे इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने मार्च 2019 में सोशल मीडिया मंचों पर ‘चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के लिए’ तैयार किया था.

इन नियमों में सरोगेट विज्ञापनों को लेकर कोई विशेष बात नहीं की गई है, जिसका फायदा पिछले आम चुनाव और नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए समय पर उठाया गया था.

चुनावों को कथित रूप से प्रभावित करने के लिए अमेरिका में विरोध का सामना करने के बाद फेसबुक ने 2018 में राजनीतिक विज्ञापन देने वाले लोगों की पहचान और पते को सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए एक नीति तैयार की.

अब यह ऐसे सभी विज्ञापनदाताओं को यह घोषित करने के लिए कहता है कि विज्ञापनों के लिए कौन भुगतान कर रहा है और एड लाइब्रेरी में फंडिंग इकाई का विवरण दिखाता है.

हालांकि, फेसबुक इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि विज्ञापनदाता द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं. न ही यह जांच करता है कि क्या यह उन विज्ञापनों को राजनीतिक दलों या उनके उम्मीदवारों की ओर से फंडिंग कर रहा है.

फेसबुक सभी ‘क्वॉलिफाइड’ समाचार संगठनों द्वारा दिए गए विज्ञापनों को वेरिफिकेशन या फंडिंग के खुलासे से छूट देता है. फेसबुक ने इन छूटों को न्यूज [NEWJ] के विज्ञापनों पर लागू नहीं किया. दूसरे शब्दों में, न्यूज [NEWJ] फेसबुक के अपने मानकों के अनुसार एक स्वतंत्र समाचार संगठन बनने के योग्य नहीं था.

रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सवालों के जवाब में शलभ उपाध्याय ने न्यूज [NEWJ] की तुलना अल जज़ीरा जैसे समाचार संगठनों से की.

उन्होंने कहा, ‘हम मेटा एड लाइब्रेरी का उपयोग विभिन्न जॉनर्स में अपने कंटेंट को बढ़ावा देने के लिए करते हैं, जो हमारे दर्शकों के साथ हाई एंगेजमेंट दिखाता है जो अन्य डिजिटल प्रकाशकों जैसे NowThis, Brut, वाइस और AJ+ द्वारा की जाने वाली एक मानक प्रक्रिया है. ऐसा करके हम वास्तविक समाचारों के साथ अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचते हैं जो रुचि के अनुरूप होते हैं.’

शलभ उपाध्याय की पूरी प्रतिक्रिया यहां पढ़ी जा सकती है.

(कुमार संभव रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सदस्य हैं और नयनतारा रंगनाथन एड वॉच से जुड़ी शोधार्थी हैं.)

यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेज़ी में अल जज़ीरा पर प्रकाशित हुई है.