कृषि मंत्री का कहना है कि राजस्थान के किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति नहीं है. जब तक जांच पूरी न हो जाए तब तक उसे आत्महत्या कहना ग़लत है.
लहसुन की उपज के कम भाव मिलने की वजह से राजस्थान के हाड़ौती संभाग में अब तक पांच किसान आत्महत्या कर चुके हैं जबकि दो की सदमे से मौत हो चुकी है.
राजस्थान के हाड़ौती संभाग (कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ ज़िले) के लहसुन उत्पादक किसानों की मुसीबतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. बाज़ार में उपज का सही दाम नहीं मिल रहा और सरकारी केंद्रों पर बदइंतज़ामी की वजह से ख़रीद नहीं हो पा रही. इससे निराश और हताश किसान मौत को गले लगा रहे हैं.
क्षेत्र के अब तक पांच किसान आत्महत्या कर चुके हैं जबकि दो की मौत सदमे से हो चुकी है. वहीं क्षेत्र के हज़ारों लहसुन उत्पादक किसान अवसाद की स्थिति में पहुंच चुके हैं.
हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि कई किसानों को इससे निकलने का आत्महत्या के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा. बलदेवपुरा (बारां) के चतुर्भुज मीणा भी इनमें से एक हैं. वे 24 मई को लहसुन मंडी में अपनी उपज का दाम पता करने गए थे. वहां उन्हें 500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला तो उनकी हिम्मत जवाब दे गई.
उन्होंने इसी दिन रात को सल्फास खाकर अपनी जा दे दी. पहले से ही तंगहाली और क़र्ज़ से परेशान परिवार अपने मुखिया की मौत से सदमे में है. उन्हें इससे उबरने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा.
चतुर्भुज के बेटे मेघराज कहते हैं, ‘हमारे पास ख़ुद की ज़मीन नहीं है. पिता जी ने 16 हज़ार रुपये में भैंस बेचकर दो बीघा ज़मीन किराये पर लेकर इसमें लहुसन बोया. फसल तैयार करने के लिए 60 हज़ार रुपये का क़र्ज़ लिया. फसल भी अच्छी हुई. सोचा था क़र्ज़ भी उतर जाएगा और कुछ बचत भी हो जाएगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. मंडी में जो कीमत मिल रही है उससे तो ज़मीन का किराया भी नहीं निकल रहा. जिनसे उधार लिया था वे रोज़ाना मांगने आते थे. वे बेइज़्ज़त करते थे. धमकी देते थे. पिता जी को इससे बचने का कोई रास्ता नहीं दिखा इसलिए उन्होंने ज़हर खाकर जान दे दी.’
बृजनगर (कोटा) के 38 वर्षीय हुकम चंद मीणा की दास्तां भी ऐसी ही है. उन्होंने 23 मई को अपनी जान दे दी. खेती से घर चलाने लायक मुनाफा कमाने की ज़िद ने उन्हें क़र्ज़ के ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया कि आत्महत्या करने के अलावा उन्हें इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला.
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उनके छोटे भाई सत्यनारायण बताते हैं, ‘ज़मीन की हमारे यहां कोई कमी नहीं है, लेकिन सिंचाई के लिए पानी नहीं है. बड़े भाई ने क़र्ज़ लेकर कई बोरिंग करवाए मगर पानी नहीं निकला. ट्रैक्टर का क़र्ज़ पहले से था. इस बार ख़ुद की ज़मीन के अलावा 20 बीघा किराये की ज़मीन लेकर लहसुन बोया किंतु उल्टा घाटा हो गया.’
हुकम चंद मीणा के यूं चले जाने के बाद पत्नी संतोष बदहवास है. चार बेटियों और एक बेटे के लालन-पालन की ज़िम्मेदारी अब उनके कंधों पर ही है. सबसे बड़ी बेटी 13 साल की है.
वे कहती हैं, ‘मेरे पति हिम्मत हारने वालों में से नहीं थे. उनके बराबर कोई मेहनत नहीं कर सकता. मंडी में लहसुन का भाव कम होने की वजह से वे यह तो कहते थे कि इस बार लहसुन ने बर्बाद कर दिया मगर यह नहीं सोचा था कि ज़हर खाकर जान दे देंगे. अब बच्चों को कौन पालेगा? क़र्ज़ तो हमारे सिर पर रहेगा ही. अब मैं इसे कैसे चुकाऊंगी? मेरा भी मरने का मन होता है पर बच्चों को देखकर रुक जाती हूं.’
कम भाव मिलने की वजह से अब तक सात लहसुन उत्पादक किसान अपनी जान गंवा चुके हैं, लेकिन राज्य की वसुंधरा राजे सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही. वह तो उल्टा अपनी पीठ थपथपा रही है. बाज़ार हस्तक्षेप योजना की अंतर्गत 5864.74 मीट्रिक टन लहसुन खरीद को सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि मानती है.
प्रदेश भाजपा के आधिकारिक फेसबुक पेज पर इसके बखान की एक पोस्ट भी है. इसमें सरकारी खरीद केंद्रों से लहसुन खरीद की समय सीमा 15 मई से बढ़ाकर 31 मई करने का भी ज़िक्र है.
गौरतलब है कि सरकार बाज़ार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत 3257 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लहसुन खरीद रही है, लेकिन इसमें इतनी खामियां कि बहुत कम किसान अपना लहसुन सरकारी ख़रीद केंद्रों पर बेच पा रहे हैं.
सिर्फ कोटा केंद्र की ही बात करें तो यहां कुल 57 हज़ार 545 किसानों ने लहुसन बेचने के लिए पंजीकरण करवाया है, लेकिन अभी तक महज़ 2363 किसानों का लहसुन खरीदा गया है. 31 मई तक और कितने किसान यहां अपनी उपज बेच पाएंगे इसका आकलन किया जा सकता है.
दरअसल, सरकार ने बाज़ार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत लहसुन ख़रीद के जो नियम बना रखे हैं वे इतने कड़े हैं कि ज़्यादातर किसान इसके दायरे से बाहर हो गए हैं. ख़रीद की पहली शर्त यह है कि लहसुन की गांठ का आकार न्यूनतम 25 मिलीमीटर होना चाहिए.
इसके अलावा वह गीली, ढीली व पिचकी हुई नहीं होनी चाहिए. जिन किसानों का लहसुन गुणवत्ता के इन मापदंडों पर खरा भी उतर रहा है उसे भी सरकार आसानी से नहीं ख़रीद रही. अव्वल तो ख़रीद के केंद्र सीमित हैं और यहां तुलाई की गति बहुत धीमी है. यही वजह है कि किसानों का धैर्य जवाब देने लगा है.
सरकार की इस बेरुख़ी से इलाके के भाजपा के नेता ही परेशान हैं. छबड़ा से पार्टी के विधायक प्रताप सिंह सिंघवी सरकार की लहसुन ख़रीद नीति पर सार्वजनिक रूप से प्रश्नचिह्न लगा चुके हैं.
सिंघवी कहते हैं, ‘इस बार क्षेत्र में लहसुन की बंपर पैदावार हुई है, लेकिन किसानों को लागत के बराबर भी भाव नहीं मिल रहे. सरकार बाज़ार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत ख़रीद तो कर रही है मगर इसकी शर्तें इतनी कड़ी और सिस्टम इतना हैं कि ज़्यादातर किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा. ख़रीद के लिए लहसुन का न्यूनतम 25 एमएम का होने की शर्त पूरी तरह से बेतुकी है. मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर किसानों की समस्याओं का समाधान करने की मांग की है.’
हालांकि राज्य के कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि सरकार की लहसुन ख़रीद नीति में कोई खामी है. वे कहते हैं, ‘सरकार पूरी तत्परता से लहसुन की ख़रीद कर रही है. जहां तक नियम-शर्तों का सवाल है तो गुणवत्ता देखकर ख़रीद करना ज़रूरी है. ख़राब लहसुन को कोई नहीं खरीदेगा. आख़िर सरकार को भी इसे बेचना ही है.’
किसानों की आत्महत्या से भी सैनी इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं, ‘राजस्थान के किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति नहीं है. जब तक जांच पूरी न हो जाए तब तक उसे कम भाव मिलने के कारण आत्महत्या कहना गलत है.’
किसान नेता दशरथ कुमार लहसुन ख़रीद मामले में सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं, ‘सरकार महज़ खानापूर्ति के लिए बाज़ार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत लहसुन की ख़रीद कर रही है. उसका मक़सद किसानों को राहत पहुंचाना है ही नहीं. न तो ख़रीद के लिए 25 एमएम आकार की शर्त रखना तर्कसंगत है और न ही चुनिंदा खरीद केंद्र खोलना. सरकारी केंद्रों पर जिस गति से लहसुन ख़रीदा जा रहा है उस हिसाब से तो किसानों की उपज खरीदने में 13 महीने का समय लगेगा जबकि समय सीमा 31 मई तक की है.’
आश्चर्यजनक यह है कि राजस्थान के जिस हाड़ौती संभाग में लहसुन उत्पादक किसान परेशान हैं वही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का निर्वाचन क्षेत्र भी है. उनके बेटे दुष्यंत सिंह भी यहीं से सांसद हैं. बावजूद इसके सरकार की बेरुख़ी समझ से परे है.
किसानों की नाराज़गी का एक कारण मध्य प्रदेश सरकार की भावांतर योजना भी है.
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार इस योजना के अंतर्गत लहसुन की उपज पर किसानों को भाव के अंतर के तौर पर 800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान कर रही है. चूंकि राजस्थान का हाड़ौती संभाग मध्य प्रदेश सीमा पर स्थित है इसलिए यहां के किसानों को शिवराज सरकार की इस योजना की जानकारी है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)