12 राज्यों में लोकायुक्त के पद ख़ाली, चार राज्यों ने क़ानून ही नहीं बनाया: आरटीआई

द वायर विशेष: सूचना के अधिकार के ज़रिये खुलासा हुआ है कि अब तक 23 राज्यों ने ही लोकायुक्त के लिए कार्यालय तैयार किया है. इनमें से नौ राज्यों में लोकायुक्त की वेबसाइट ही नहीं है. महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां लोकायुक्त को ऑनलाइन शिकायत भेजी जा सकती है.

द वायर विशेष: सूचना के अधिकार के ज़रिये खुलासा हुआ है कि अब तक 23 राज्यों ने ही लोकायुक्त के लिए कार्यालय तैयार किया है. इनमें से नौ राज्यों में लोकायुक्त की वेबसाइट ही नहीं है. महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां लोकायुक्त को ऑनलाइन शिकायत भेजी जा सकती है.

Modi Corruption Twitter
(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: सरकारी तंत्र में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के मामलों को देखने के लिए साल 2013 में ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक’ बनाया गया था. जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार ने चार साल बाद भी लोकपाल की नियुक्ति नहीं की है, वहीं कई राज्यों का भी हाल ऐसा ही है.

भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दे पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा दायर सूचना का अधिकार आवेदन से खुलासा हुआ है कि 12 राज्यों में लोकायुक्त के पद ख़ाली हैं.

इस समय दिल्ली समेत सिर्फ़ 18 राज्यों में लोकायुक्त हैं. इतना ही नहीं, चार राज्यों ने तो अब तक अपने यहां लोकायुक्त क़ानून लागू ही नहीं किया है.

लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013 की धारा 63 में कहा गया है कि संसद से इस क़ानून को पारित किए जाने के एक साल के भीतर सभी राज्य लोकायुक्त की नियुक्ति करेंगे. हालांकि कई सारे राज्यों ने इस नियम का उल्लंघन किया है. लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 16 जनवरी 2014 को लागू हुआ था.

इसी साल मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से कहा था वे क़ानून के मुताबिक समयसीमा के अंदर लोकायुक्त की नियुक्ति करें.

29 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में दायर की गई आरटीआई से ये पता चला है कि 6 दिसंबर, 2018 तक सिर्फ 23 राज्यों ने ही लोकायुक्त के लिए ऑफिस तैयार किया है. अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और तमिलनाडु ने लोकायुक्त क़ानून बनाया है लेकिन यहां अभी तक लोकायुक्त के लिए ऑफिस नहीं बन पाए हैं.

ध्यान देने वाली बात ये है कि ज़्यादातर राज्यों ने लोकायुक्त क़ानून को ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013’ के आधार पर नहीं तैयार किया है.

वहीं जम्मू कश्मीर, मिज़ोरम, मणिपुर और तेलंगाना जैसे राज्यों ने चार साल बाद भी लोकायुक्त क़ानून नहीं बनाया है. इसी तरह जिन 23 राज्यों ने लोकायुक्त क़ानून बना है उसमें से पांच राज्यों में लोकायुक्त के पद ख़ाली हैं. हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, उत्तराखंड और असम में लोकायुक्त के पद ख़ाली हैं.

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लोकायुक्तों के सामने सबसे ज्यादा लंबित मामले

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार लगातार डिजिटल इंडिया और सरकारी तंत्र को ऑनलाइन माध्यम पर लाने के लिए ज़ोर देती रही है. हालांकि हकीकत ये है कि जिन 23 राज्यों में लोकायुक्त क़ानून बना है उसमें से नौ राज्यों में लोकायुक्त की वेबसाइट ही नहीं है.

इतना ही नहीं, सिर्फ महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां के लोकायुक्त को ऑनलाइन शिकायत भेजी जा सकती है. बाकी सभी राज्यों में लोकायुक्त के पास भ्रष्टाचार की शिकायत भेजने के लिए ऑफलाइन माध्यम अपनाना होगा. शिकायत भेजने की राशि सबसे ज़्यादा 2,000 रुपये उत्तर प्रदेश और गुजरात में है.

वार्षिक रिपोर्ट दाख़िल करने के मामले में लोकायुक्तों की हालत बेहद ख़राब है. सिर्फ़ हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान ने ही वेबसाइट पर साल 2015-16 और 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट अपलोड किया है.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘भारत प्रभावी ढंग से भ्रष्टाचार का मुक़ाबला कर सकता है यदि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मज़बूत स्वतंत्र संस्थान भ्रष्ट लोगों पर मुक़दमा चलाते हैं और दंडित करते हैं. ये बेहद निराशाजनक है कि केंद्र और राज्य दोनों ने ही क़ानून का उल्लंघन करते हुए लोकपाल व लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘एक तरफ लोकायुक्तों की नियुक्ति नहीं हो रही है वहीं जिन राज्यों में लोकायुक्त कानून बना है वो 2013 में संसद द्वारा पास किए गए कानून के हिसाब से नहीं है. राज्य अपने मनमुताबिक लोकायुक्त कानून बना रहे हैं जो कि भ्रष्टाचार के मामलों को देखने के लिए काफी कमज़ोर है.’

बता दें कि लोकायुक्त के अलावा एक उप लोकायुक्त के पद का भी प्रावधान होता है. हालांकि जिन 23 राज्यों ने अपने यहां इस कानून को लागू किया है उसमें से सिर्फ 11 राज्यों के ही कानून में उप लोकायुक्त का प्रावधान है.

केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के कानून में उप लोकायुक्त के पद का प्रावधान नहीं है.

कैसा है राज्यों में लोकायुक्तों का प्रदर्शन

आरटीआई के ज़रिये सभी राज्यों से पूछा गया था कि साल 2012 से लेकर 2017 तक में लोकायुक्त के पास भ्रष्टाचार की कुल कितनी शिकायत आई और उसमें से कितने मामलों को हल किया गया. हालांकि कई राज्य 2017 तक का आंकड़ा नहीं दे पाए, लेकिन साल 2012-2015 तक के आंकड़े उपलब्ध हैं.

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राज्यवार लोकायुक्त के पास आईं भ्रष्टाचार की शिकायत

इस बीच सबसे ज़्यादा 40,119 मामले बिहार के लोकायुक्त के पास आए. वहीं दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां 2012-15 के बीच कुल 29,005 भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतें मिलीं. मध्य प्रदेश में 21,633, आंध्र प्रदेश में 19,700, कर्नाटक में 19,587, उत्तर प्रदेश में 16,550, राजस्थान में 8,680, केरल में 7,159, झारखंड में 2,638 इत्यादि मामले सामने आए.

जहां एक ओर बिहार में सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं तो दूसरी ओर सुनवाई के लिए सबसे ज़्यादा मामले बिहार में ही लंबित पड़े हैं. यानी कि केस को हल करने के मामले में बिहार सबसे पीछे है. साल 2012-15 के बीच में सबसे ज़्यादा मामले महाराष्ट्र द्वारा हल किए गए हैं.

महाराष्ट्र के लोकायुक्त ने कुल 30,276 मामलों का निस्तारण किया है. दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जहां इस बीच में 26,623 मामले हल किए गए हैं. मध्य प्रदेश में 21,528, आंध्र प्रदेश में 19,262, बिहार में 14, 317, केरल में 8,543 इत्यादि मामले हल किए गए हैं.

बिहार में सबसे ज़्यादा लंबित मामले हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जहां 28,529 मामलें लंबित हैं. महाराष्ट्र में 17,522, आंध्र प्रदेश में 16,323 और राजस्थान में 9,938 मामले लंबित हैं.

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राज्यवार लोकायुक्त द्वारा हल किए गए मामले

लोकपाल और लोकायुक्त कानून का इतिहास

साल 1963 में एलएम सिंघवी द्वारा लोकपाल और लोकायुक्त शब्द का इस्तेमाल किया गया था. पहले प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 1968 चौथी लोकसभा में पेश किया और इसे 1969 में पास किया गया.

हालांकि जब यह विधेयक राज्यसभा में लंबित था तो उस समय लोकसभा भंग कर दी गई थी, इसलिए विधेयक पास नहीं हो सका. इसके बाद साल 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998 और 2001 में इस विधेयक पर पुनर्विचार किया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

इसके बाद साल 2011 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे की अगुवाई में देश भर में लोकपाल की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन चला. इसे लोकपाल आंदोलन के नाम से जाना गया. व्यापक आंदोलन के चलते तत्कालीन यूपीए सरकार को ये विधेयक पास करना पड़ा और 16 जनवरी 2014 से लोकपाल और लोकायुक्त क़ानून लागू हुआ.

दुनिया में पहले लोकपाल की नियुक्ति साल 1809 में स्वीडन में हुई थी. वहीं फिनलैंड में 1920 से संसदीय लोकपाल है.

बता दें कि अन्ना हजारे ने हाल ही में कहा कि अगर 30 जनवरी, 2019 तक लोकपाल नियुक्त नहीं होता है तो वह अपने गांव में भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे.

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह को पत्र लिखते हुए अन्ना हजारे ने एनडीए सरकार पर केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर बहानेबाजी का आरोप लगाया है.