आफ्स्पा सेना के जवानों को मनमानी करने का अधिकार नहीं देता

आफ्स्पा सैन्य बलों को शांति के लिए ख़तरा माने जाने वालों पर गोली चलाने की आज़ादी देता है, लेकिन यह उन्हें फ़र्ज़ी मुठभेड़ या दूसरी तरह के अत्याचार करने का अधिकार प्रदान नहीं करता.

मणिपुर एनकाउंटर: सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की सैनिकों के ख़िलाफ़ एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका

मणिपुर और जम्मू कश्मीर में सशस्त्र कार्रवाई में शामिल सैनिकों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने को चुनौती देते हुए 300 से अधिक सैन्यकर्मियों ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी.

मणिपुर फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामला: पीठ से न्यायाधीशों के अलग होने की मांग वाली याचिका ख़ारिज

पुलिसकर्मियों ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि पीठ ने कुछ आरोपियों को पहले ही अपनी टिप्पणी में ‘हत्यारा’ बताया था. कोर्ट ने कहा कि एसआईटी द्वारा इन मामलों में की जा रही जांच पर संदेह का कोई कारण नहीं है.

मणिपुर एनकाउंटर: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ सैनिकों की याचिका अनुशासनहीनता का उदाहरण है

क्या सैनिकों के ऐसे क़दम को सर्वोच्च अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा माना जाए या आर्मी एक्ट के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन? ये याचिकाएं भले राजनीतिक रूप से प्रेरित न हों, लेकिन ग़लत मशविरे का परिणाम लगती हैं. साथ ही यह उस ‘अनुशासन’ के ख़िलाफ़ हैं, जिसका प्रतिनिधित्व भारतीय सेना करती है.

मणिपुर मुठभेड़: 356 जवानों द्वारा ‘उत्पीड़न’ के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका चिंताजनक क्यों है?

यह क़दम इस बात का संकेत देता है कि सैनिकों को यह लगता है कि आफ्सपा लागू होने के बावजूद उस पर अन्यायपूर्ण तरीक़े से मुक़दमा चलाया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला चाहे जो भी आए, मगर ऐसा लगता है कि सैनिक अपने धैर्य के आख़िरी बिंदु पर पहुंच गया है.

मणिपुर मुठभेड़ मामलों में एसआईटी जांच से उच्चतम न्यायालय संतुष्ट नहीं

मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस पर कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं का आरोप है.

मणिपुर फ़र्ज़ी मुठभेड़: पर्याप्त संख्या में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के लिए एसआईटी को फटकार

मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस पर कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं का आरोप है.