क्यों कोई भी क्षेत्रीय दल मोदी और शाह पर भरोसा करने को तैयार नहीं है?

ख़रीद-फरोख़्त की राजनीति में भी एक न्यूनतम विश्वास और सामंजस्य की ज़रूरत होती है. कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद जो हुआ, वो बताता है कि मोदी-शाह की जोड़ी काफ़ी तेज़ी से यह विश्वास भी खो रही है.