राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2017 के बाद से हिरासत में बलात्कार के दर्ज किए गए 275 मामलों में से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 92 मामले शामिल हैं. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों के लिए क़ानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को ज़िम्मेदार ठहराया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 357 के तहत अदालत द्वारा पीड़ित व्यक्तियों को मुआवज़ा देने का प्रावधान है, जिसका पालन करना अनिवार्य है. यह सभी अदालतों का कर्तव्य है कि वह आपराधिक मामले में उचित एवं निष्पक्ष मुआवज़े पर विचार कर इसका आदेश दे.