जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा कि 89 प्रतिशत जल का उपयोग सिर्फ कृषि कार्यों के लिए होता है. ऐसे में ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिनमें पानी का इस्तेमाल कम करने की ज़रूरत होती है.
नई दिल्ली: जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत को कम पानी के इस्तेमाल के जरिए होने वाली फसलों को बढ़ावा देना होगा, अन्यथा एक दिन ऐसी स्थिति बन जाएगी कि आपको ‘बहुमूल्य जल का भी निर्यात’ करना पड़ेगा.
सरकार ने कृषि निर्यात को 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. सिंह ने कहा कि भारत में ‘कार्बन फुटप्रिंट’ की तरह ही ‘वॉटर फुटप्रिंट’ के बारे में बात करने की जरूरत है. भारत पहले ही पानी की कमी वाला देश बन चुका है. बढ़ती आबादी के साथ प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता कम हो रही है.
सिंह ने कहा कि लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि सुबह वह जो एक कप कॉफी पीते हैं, उसके लिए बीज उत्पादन पर 140 लीटर पानी का इस्तेमाल किया गया है.
जल शक्ति सचिव ने कहा कि 89 प्रतिशत जल का उपयोग सिर्फ कृषि कार्यों के लिए होता है. ऐसे में ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिनमें पानी का इस्तेमाल कम करने की जरूरत होती है.
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कृषि निर्यात को दोगुना करने की आवश्यकता है लेकिन भारत को पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना चाहिए अन्यथा हम कीमती पानी का निर्यात कर रहे होंगे.
सिंह ने ‘इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर’ (आईसीएफए) द्वारा आयोजित चौथे वैश्विक कृषि सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम कृषि निर्यात को दोगुना करने के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन हमें अपनी जल दक्षता में सुधार करना होगा अन्यथा हम अपने बहुमूल्य जल का भी निर्यात करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘पंजाब 1980 के दशक के आरंभ तक धान नहीं उगा रहा था. वहां का जलस्तर अच्छा नहीं है और वर्षा केवल 500-700 मिमी की होती है. देश में ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां हमें 2,000 मिमी. वर्षा मिलती है, इसलिए हमें पंजाब में धान नहीं उगाना चाहिए. हमें महाराष्ट्र में गन्ना नहीं उगाना चाहिए लेकिन हम उगा रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि किसान ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पानी पंप करने के लिए उन्हें मुफ्त में बिजली देने की नीति है. इसके अलावा, पंजाब शायद ही ड्रिप सिंचाई का उपयोग करता है क्योंकि राज्य सरकार को लगता है कि यह धान के लिए उपयुक्त नहीं है.
सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा सुनिश्चित खरीद के माध्यम से चावल और गेहूं खरीद को प्रोत्साहन देने की वजह से भारत, दुनिया में ‘मधुमेह की राजधानी’ बन गया है.
उन्होंने कहा कि चीन और अमेरिका मिलाकर जितने भूजल का प्रयोग करते हैं उसकी तुलना में भारत कहीं अधिक भूजल का दोहन करता है. भारत में हरित क्रांति की सफलता में नलकूपों के योगदान का उल्लेख करते हुए सचिव ने कहा कि गंगा नदी की नहरें उत्तर प्रदेश में 25 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई नहीं कर पाती हैं.
राज्य में 80 प्रतिशत कृषि भूमि में नलकूप से सिंचाई होती हैं. पंजाब में भी नलकूपों और पंपों से 77 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है. वहां नलकूप न केवल कृषि के लिए बल्कि पेयजल के उद्देश्य के लिए भी इस्तेमाल में आता है.
सचिव ने जल उपयोग को बढ़ावा देने और विनियमित करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर जल बजट की आवश्यकता और जल उपयोग कुशल प्राधिकरण की स्थापना की जरूरत को भी रेखांकित किया.