राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बाबरी मस्जिद गिराया जाना एक सोचा समझा कृत्य था. 1992 में बाबरी विध्वंस मामले की जांच लिए बने लिब्राहन आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था.
नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने से संबंधित मामले से दूरी बनाए रखने वाले उच्चतम न्यायालय ने भी शनिवार को अपने फैसले में लिब्रहान आयोग द्वारा की गयी टिप्पणी से मिलती जुलती टिप्पणी की है.
न्यायालय ने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराया जाना एक ‘सोचा समझा कृत्य’ था.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में इस तथ्य का उल्लेख किया कि विवादित भूमि को लेकर मुकदमे लंबित होने के दौरान एक सार्वजनिक इबादत स्थल को नष्ट करने के सोचे समझे कृत्य के तहत मस्जिद का पूरा ढांचा ही गिरा दिया.
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लमानों को गलत तरीके से उनकी मस्जिद से वंचित किया गया जिसका निर्माण 450 साल से भी पहले किया गया था.
यद्यपि फैसले में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बारे में चंद पंक्तियां ही हैं लेकिन यह टिप्पणी अयोध्या में इस ढांचे को गिराए जाने की घटना के दस दिन के भीतर नरसिम्हा राव सरकार द्वारा गठित लिब्रहान जांच आयोग की टिप्पणी की याद ताजा करती है.
लिब्रहान आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अयोध्या में सारा विध्वंस ‘योजनाबद्ध’ तरीके से किया गया था.
अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना की न्यायिक जांच के लिए पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस एमएस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग गठित किया था.
हालांकि, जस्टिस लिब्रहान ने अवकाश ग्रहण करने के बाद इस आयोग को पूरा वक्त दिया और 17 साल बाद जून, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इस दौरान 48 बार जांच आयोग का कार्यकाल बढाया गया.
लिब्रहान जांच आयोग के समक्ष पूर्व प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव और विश्वनाथ प्रताप सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, डा मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और राम जन्म भूमि आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले अन्य नेताओं की गवाही हुई.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में छह दिसंबर, 1992 की घटना के लिए भाजपा और संघ परिवार (आरएसएस, विहिप और बजरंग दल) के प्रमुख नेतृत्व को जिम्मेदार पाया था.
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री कल्याण सिंह ने शीर्ष अदालत को हलफनामे पर आश्वासन दिया था कि कार सेवकों को विवादित ढांचे को किसी भी तरह की क्षति पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जाएगी.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि इस मामले के तथ्यों से यही सबूत सामने आता है कि सत्ता और धन की संभावना से प्रलोभित भाजपा, आरएसएस, विहिप, शिव सेना और बजरंग दल आदि के भीतर ही ऐसे नेता उभर आए थे, जो न तो किसी विचारधारा से निर्देशित थे और न ही उनमें किसी प्रकार का नैतिक संयम था.
न्यायमूर्ति लिब्रहान ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि छह दिसंबर, 1992 को देखा कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून का शासन बनाए रखने की इच्छुक नहीं थी और यह उदासीनता मुख्यमंत्री (कल्याण सिंह) के कार्यालय से लेकर निचले स्तर तक थी.