सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने एकमत होकर ये फैसला दिया और साल 2010 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें कोर्ट ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई एक्ट के दायरे में है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 के उस फैसले को बुधवार को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आता है.
इस मामले से जुड़े घटनाक्रम इस प्रकार हैं:
11 नवम्बर, 2007: आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया और न्यायाधीशों की संपत्तियों पर सूचना मांगी.
30 नवम्बर, 2007: जवाब में उन्हें सूचना देने से इनकार कर दिया गया.
08 दिसम्बर, 2007: सूचना दिये जाने से इनकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में पहली अपील दाखिल की गई.
12 जनवरी, 2008: सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने पहली अपील खारिज की.
05 मार्च: अग्रवाल ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का रुख किया.
06 जनवरी, 2009: सीआईसी ने सुप्रीम कोर्ट से इस आधार पर न्यायाधीशों की संपत्तियों पर सूचना का खुलासा करने को कहा कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में आता है.
17 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने सीआईसी आदेश के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया.
19 जनवरी: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगाई.
26 फरवरी: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके न्यायाधीशों के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष अपनी संपत्तियों की घोषणा ‘व्यक्तिगत’ जानकारी है जिसका आरटीआई अधिनियम के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता है.
17 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके न्यायाधीश अपनी संपत्तियों की घोषणा करने के खिलाफ नहीं है और संसद को इस तरह की घोषणा किये जाने से संबंधित एक कानून बनाना चाहिए लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस कानून का दुरुपयोग नहीं हो.
24 मार्च: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि संपत्ति की घोषणा के मामले में जजों के साथ नेताओं की तरह बर्ताव नहीं किया जाना चाहिये.
चार मई: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बहुत अधिक पारदर्शिता न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल सकती है.
04 मई: उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा.
02 सितम्बर: हाईकोर्ट की एकल पीठ ने सीआईसी के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में आता है और पारदर्शिता कानून के तहत न्यायाधीशों की संपत्तियों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
05 अक्टूबर: शीर्ष न्यायालय ने एकल पीठ के फैसले को दो सदस्यीय पीठ के समक्ष चुनौती दी.
06 अक्टूबर: उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सहमति दी.
07 अक्टूबर: उच्च न्यायालय ने अपील को स्वीकार किया और इस मुद्दे पर फैसला लेने के लिए तीन सदस्यीय विशेष पीठ गठित की.
13 नवम्बर: उच्च न्यायालय ने अपील पर फैसला सुरक्षित रखा.
12 जनवरी, 2010: उच्च न्यायालय ने कहा कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में आता है.
26 नवम्बर: सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और सीपीआईओ ने उच्च न्यायालय और सीआईसी के आदेशों के खिलाफ तीन अपील दायर की.
17 अगस्त, 2016: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को एक संविधान पीठ के पास भेजा.
04 अप्रैल, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में फैसला सुरक्षित रखा कि क्या सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है या नहीं.
13 नवम्बर: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 में दिये गए फैसले को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय एक सार्वजनिक प्राधिकार है और यह आरटीआई के दायरे में आता है.