सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय आ गया है कि राज्य सरकारें यह बताएं कि उन्हें हवा की ख़राब गुणवत्ता से प्रभावित लोगों को मुआवज़ा क्यों नहीं देना चाहिए? नागरिकों को स्वच्छ हवा और पेयजल सहित बुनियादी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराना उनका कर्तव्य है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हवा की खराब गुणवत्ता से प्रभावित व्यक्तियों को हर्जाने के रूप में भुगतान के लिए क्यों नहीं राज्यों को जिम्मेदार ठहराया जाए.
अदालत ने सोमवार को कहा कि नागरिकों को स्वच्छ हवा और पेयजल सहित बुनियादी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराना उनका कर्तव्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सभी राज्यों को नोटिस जारी कर उनसे वायु की गुणवत्ता इंडेक्स, वायु गुणवत्ता के प्रबंधन और कचरा निस्तारण सहित विभिन्न मुद्दों का ब्योरा मांगा है.
अदालत ने जल प्रदूषण के मामलों को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीबीसीपी) और अन्य संबंधित राज्यों और उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदूषण और गंगा यमुना सहित विभिन्न नदियों में मलशोधन और कचरा निस्तारण आदि की समस्या से निबटने से संबंधित आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया है.
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार से कहा कि वे एक साथ बैठकर दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग टावर लगाने के बारे में दस दिन के भीतर ठोस फैसला लें जो वायु प्रदूषण से निपटने में मददगार होगा.
पीठ ने कहा कि हवा की खराब गुणवत्ता और जल प्रदूषण की वजह से मनुष्य के जीने का अधिकार ही खतरे में पड़ रहा है और राज्यों को इससे निपटना होगा क्योंकि इसकी वजह से जीने की उम्र कम हो रही है.
पीठ ने कहा, ‘समय आ गया है कि राज्य सरकारें यह बतायें कि उन्हें हवा की खराब गुणवत्ता से प्रभावित लोगों को मुआवजा क्यों नहीं देना चाहिए? सरकारी तंत्र को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहने के लिए क्यों नहीं उनकी जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए?’
अदालत ने वायु और जल प्रदूषण जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वे जनता के कल्याण के लिए मिलकर काम करें.
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदूषण के मामले में समय-समय पर अनेक आदेश दिए गए लेकिन इसके बावजूद स्थिति बदतर ही होती जा रही है.
पीठ ने कहा कि इसके लिए प्राधिकारियों को ही दोषी ठहराया जाएगा क्योंकि उन्होंने ही सही तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है.
पीठ ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का जिक्र करते हुए कहा कि शासन का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक और उनके स्वास्थ का ध्यान रखे लेकिन प्राधिकारी उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाली हवा और शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने में विफल रहे हैं.
पीठ ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से उत्पन्न स्थिति को बेहद गंभीर बताते हुए कहा कि इसके जलाने पर प्रतिबंध लगाने के आदेशों के बावजूद यह सिलसिला कम होने की बजाय बढ़ रहा है.
पीठ ने कहा, ‘इस स्थिति के लिए सिर्फ सरकारी तंत्र ही नहीं बल्कि किसान भी जिम्मेदार हैं.’
पीठ ने न्यायालय के आदेश के बावजूद पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम में विफल रहने के कारण पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को भी आड़े हाथ लिया.
पीठ ने कहा, ‘क्या आप लोगों से इस तरह पेश आ सकते हैं और प्रदूषण की वजह से उन्हें मरने के लिए छोड़ सकते है.’
पीठ ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की वजह से लोगों की आयु कम हो रही है और उनका दम घुट रहा है.
इस मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने कहा, ‘क्या इसे बर्दाश्त किया जाना चाहिए? क्या यह आंतरिक युद्ध से कहीं ज्यादा बदतर नहीं है? लोग इस गैस चैंबर में क्यों हैं? यदि ऐसा ही है तो बेहतर होगा कि आप इन सभी को विस्फोटक से खत्म कर दें. यदि सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो कैंसर जैसी बीमारी से जूझने से बेहतर तो ऐसे ही जाना ही होगा.’
पीठ ने कहा कि आप अपने घर का दरवाजा खोलिए और स्थिति (प्रदूषण) देखिये. कोई भी राज्य ऐसे उपाय नहीं करना चाहता जो अलोकप्रिय हों.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में असुरक्षित पेयजल की आपूर्ति को लेकर चल रहे विवाद का स्वत: ही संज्ञान लिया और कहा कि नागरिकों को पीने योग्य जल उपलब्ध कराना राज्य का कर्तव्य है.
अदालत में उपस्थित दिल्ली के मुख्य सचिव ने राष्ट्रीय राजधानी के शासन और केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे का मुद्दा उठाया.
पीठ ने कहा कि संबंधित प्राधिकारियों को एक साथ बैठकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए कि किस तरह से वायु की गुणवत्ता में सुधार किया जाए और लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जाए.
अदालत ने जल प्रदूषण के मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए केंद्र और दिल्ली दोनों की ही आलोचना की और कहा कि वे आरोप-प्रत्यारोप लगाने का खेल नहीं खेल सकते क्योंकि इस स्थिति से जनता ही परेशान होगी.
पीठ ने कहा कि देश के छह शहरों, इनमें से तीन उत्तर प्रदेश में हैं, दिल्ली से ज्यादा प्रदूषित हैं और वायु की गुणवत्ता, सुरक्षित पेयजल और कचरा निष्पादन जैसे मुद्दे देश के प्रत्येक हिस्से को प्रभावित कर रहे हैं.
पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह मामला अपनी प्राथमिकता खो चुका है.
अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह बताये कि स्मॉग निरोधक संयंत्र के मामले में क्या कदम उठाए गए हैं. यह संयंत्र फैले प्रदूषण के कणों को नीचे लाने के लिए स्वचालित तरीके से हवा में 50 मीटर तक पानी का छिड़काव करता है.
पीठ ने केंद्र सरकार को तीन दिन के भीतर उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया जो प्रदूषण से निपटने के बारे में अन्य प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के तरीकों पर विचार करेगी.
केंद्र को इस संबंध में तीन सप्ताह में अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी. पीठ ने कहा कि प्रदूषण से निपटने के लिए सिर्फ नीति तैयार करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि निचली स्तर पर इस पर अमल करने की जरूरत है.