आर्थिक वृद्धि में गिरावट के विपरीत अक्टूबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह पिछले 16 माह में सबसे ऊंची दर रही है. मुद्रास्फीति की यह दर रिज़र्व बैंक के अनुमान से काफी ऊंची रही है.
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.1 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है. इसकी प्रमुख वजह घरेलू और बाहरी मांग का कमजोर होना बताया गया है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही है. यह पिछले छह वर्ष का सबसे निचला स्तर है. इसकी प्रमुख वजह कृषि और विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन खराब रहना रहा है.
रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को जारी अपनी पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, ‘2019-20 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर का अनुमान घटाकर पांच प्रतिशत किया जाता है. अक्टूबर की मौद्रिक नीति में यह 6.1 प्रतिशत था.’
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.9 से 5.5 प्रतिशत और 2020-21 की पहली छमाही में 5.9 से 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है.
आर्थिक वृद्धि में गिरावट के विपरीत अक्टूबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह पिछले 16 माह में सबसे ऊंची दर रही है. मुद्रास्फीति की यह दर रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी ऊंची रही है.
हालांकि, मौद्रिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए जब तक जरूरी समझा जाएगा रिजर्व बैंक अपना रुख उदार बनाये रखेगा. केंद्रीय बैंक ने 2019-20 के लिए आर्थिक वृद्धि के अपने अनुमान को पहले के 6.1 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया.
इसके अलावा रिजर्व बैंक ने उद्योग एवं पूंजी बाजार की उम्मीदों को झटका देते हुए बृहस्पतिवार को मौद्रिक नीति समीक्षा में अपनी नीतिगत ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया. आर्थिक वृद्धि की गति सुस्त पड़ने के बावजूद केंद्रीय बैंक ने महंगाई बढ़ने की चिंता में रेपो दर को 5.15 प्रतिशत के पूर्व स्तर पर बरकरार रखा.
इससे पहले लगातार पांच बार रिजर्व बैंक ने रेपो दर में कुल मिलाकर 1.35 प्रतिशत की कटौती की.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने एक मत से रेपो दर को 5.15 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर को 4.90 प्रतिशत पर बनाए रखने के पक्ष में सहमति दी. मौद्रिक समीक्षा के लिए एमपीसी की तीन दिवसीय बैठक मंगलवार को शुरू हुई थी.
रेपो दर वह दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी त्वरित नकदी जरूरतों के लिए केंद्रीय बैंक से नकदी प्राप्त करते हैं जबकि रिवर्स रेपो दर के तहत केंद्रीय बैंक, प्रणाली में अतिरिक्त नकदी को नियंत्रित करने के लिए वाणिज्यिक बैंकों से नकदी उठाता है.
अर्थशास्त्रियों और बैंकों के साथ-साथ उद्योग जगत एवं निवेशकों को उम्मीद थी कि सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि को थामने के लिए रिजर्व बैंक रेपो दर में लगातार छठी बार कटौती कर सकता है.
इस साल की शुरुआत से ही केंद्रीय बैंक आर्थिक वृद्धि के अनुमान को लगातार कम करता रहा है. चालू वित्त वर्ष की अप्रैल में पेश मौद्रिक समीक्षा में आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.2 प्रतिशत रखा गया था.
मौद्रिक नीति समीक्षा में हालांकि कहा गया है, ‘एमपीसी मानती है कि भविष्य की समीक्षाओं में नीतिगत बदलाव के लिए कदम उठाने की गुंजाइश बनी हुई है. बहरहाल, वृद्धि और मुद्रास्फीति की मौजूदा स्थिति को देखते हुये समिति समझती है कि इस समय रुकना ठीक रहेगा.’
गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ब्याज दरों में कटौती के मामले में यह अस्थायी विराम है. एमपीसी इस मामले में फरवरी में बेहतर ढंग से निर्णय ले सकेगी. उस समय तक और आंकड़े सामने होंगे और सरकार भी 2020-21 का बजट पेश कर चुकी होगी.
दास ने कहा कि ब्याज दरों में लगातार कटौती करते रहने के बजाय समय अधिक महत्वपूर्ण होता है. उन्होंने कहा, ‘1.35 प्रतिशत की कटौती का पूरा असर आने दीजिए.’
उन्होंने कहा कि इस समय जरूरत इस बात की है कि जो अड़चनें आ रही हैं उन्हें दूर करने के उपाय किए जाएं, जिसकी वजह से निवेश रुका हुआ है.
समीक्षा रपट के अनुसार नीतिगत दर में कटौती का लाभ लोगों तक पहुंचने में सुधार आने और वैश्विक व्यापार तनाव के समाधान की उम्मीद के चलते वृद्धि की संभावना बेहतर हुई है. वहीं घरेलू मांग के सुधरने में देरी, भू-राजनैतिक तनाव और वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में नरमी से नीचे जाने का जोखिम भी है.
मौद्रिक नीति पर विचार करने वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने कहा कि हालांकि, आर्थिक गतिविधियां कमजोर बनी हुई हैं और उत्पादन एवं खपत का अंतर भी नकारात्मक बना हुआ है.