झारखंड में डायन बताकर महिलाओं की हत्या किसी भी राजनीतिक दल के लिए मुद्दा क्यों नहीं है?

डायन बताकर महिलाओं की हत्या किए जाने के मामले में झारखंड पिछले कई सालों से लगातार देश में शीर्ष पर है. इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिकता में यह मुद्दा नज़र नहीं आता.

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(फोटो साभार: पीटीआई/ट्विटर)

डायन बताकर महिलाओं की हत्या किए जाने के मामले में झारखंड पिछले कई सालों से लगातार देश में शीर्ष पर है. इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिकता में यह मुद्दा नज़र नहीं आता.

(फोटो साभार: पीटीआई/ट्विटर)
(फोटो साभार: पीटीआई/ट्विटर)

झारखंड राज्य के गठन के बाद यहां चौथी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. पहले और दूसरे चरण के लिए 30 नवंबर और सात दिसंबर मतदान हो चुके हैं. अब तीन अन्य चरणों में मतदान 12, 15 और 20 दिसंबर को होने हैं.

विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य स्थानीय दलों ने अपने घोषणा-पत्र जारी कर झारखंड में विकास की बयार बहाने की बात कही है, लेकिन उनके घोषणा-पत्रों में वादों की लंबी-लंबी लाइनों से डायन-बिसाही (विचक्राफ्ट या विच हंटिंग) जैसे मुद्दे गायब हैं, जो इस राज्य की प्रमुख समस्याओं में से एक है.

किसी भी दल ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है कि झारखंड से डायन-बिसाही जैसी कुप्रथा और अंधविश्वास को सख्त कानून बनाकर खत्म किया जाएगा.

कुछ महीने पहले राज्य की राजधानी रांची से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर नामकुम के हाप पंचायत के बरूडीह में 55 वर्षीय चामरी देवी को डायन बताकर उनके ही परिवारवालों ने मार डाला था.

इस मामले में सूमा देवी के बड़े पापा फौदा मुंडा, उनके बेटे मंगल मुंडा और रूसा मुंडा, खोदिया मुंडा समेत पांच लोगों पर आईपीसी की धारा 302 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है. सभी आरोपी फिलहाल जेल में है.

झारखंड में चामरी देवी की हत्या साल की कोई पहली घटना नहीं है और यह आखिरी होगी ऐसा नहीं कहा जा सकता है. झारखंड में डायन बताकर हत्या करना एक बड़ी समस्या है. ऐसे कई मामले हैं, जो उजागर ही नहीं हो पाते. इसके अलावा हाल ये है कि ऐसी घटनाओं को भारत सरकार के आंकड़ों में भी उचित जगह नहीं मिल पाती.

विच हंटिंग: एनसीआरबी और झारखंड पुलिस के आंकड़ों में फ़र्क़

देश भर में होने वाले अपराधों का रिकॉर्ड दर्ज करने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट जारी की है, जो साल 2017 में हुए अपराधों का लेखा-जोखा है.

एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2017 में झारखंड में डायन बताकर हत्या के 19 मामले समाने आए हैं. इसके उलट अगर हम झारखंड पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो 2017 में ऐसी हत्याओं की संख्या 41 थी.

इसी तरह साल 2016 की एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में डायन बताकर मार दी गईं महिलाओं की संख्या 27 बताई गई है, जबकि झारखंड पुलिस के अनुसार यह आंकड़ा 45 है.

साल 2015 के एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में डायन बताकर 32 महिलाओं की हत्या की गई, वहीं झारखंड पुलिस ने यह संख्या 51 बताई है.

आंकड़ों का मिलान किया जाए तो एनसीआरबी के अनुसार, झारखंड में इन तीन सालों में डायन बताकर 78 महिलाओं की हत्या की गई, दूसरी ओर राज्य की पुलिस की ओर से दर्ज आंकड़ों में ऐसी हत्याओं की संख्या 137 है.

इस तरह से एनसीआरबी की ओर से 59 हत्याओं के मामले दर्ज ही नहीं किए गए हैं, जिसे झारखंड पुलिस ने अपने आंकड़ों में जगह दी है.

आंकड़ों में नजर आ रहा यह अंतर एनसीआरबी की ओर से दर्ज आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं.

गैर सरकारी संस्था आशा द्वारा झारखंड में डायन बताकर हुईं हत्याओं का आंकड़ा.
गैर सरकारी संस्था आशा द्वारा झारखंड में डायन बताकर हुईं हत्याओं का आंकड़ा.

विच हंटिंग से जुड़े आंकड़ों में फर्क के सवाल पर झारखंड सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के विशेष सचिव डीके सक्सेना ने कहा, ‘किसी भी तरह का अपराध हो उसे दर्ज किया जाना चाहिए. विच हंटिंग से जुड़े आंकड़ों के फर्क पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.’

वहीं झारखंड के अपर पुलिस महानिदेशक (ऑपरेशन) सह-वरीय पुलिस प्रवक्ता मुरारी लाल मीणा कहा है, ‘मुझे जानकारी नहीं कि आंकड़ों में कितना अंतर है. मुझे देखना पड़ेगा. मैं इससे अवगत नहीं हूं. मैं देखने के बाद ही बता पाऊंगा और चुनाव के बाद ही कोई जानकारी दे सकूंगा.’

विच हंटिंग का मुद्दा दलों की प्राथमिकता में नहीं

आंकड़े दर्ज करने में राष्ट्रीय स्तर पर नजर आ रही उदासीनता राज्य के विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे दलों में भी साफ नजर आती है. राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र में डायन बताकर किसी की हत्या पर लगाम लगाने के लिए कोई कदम उठाने की बात नदारद है.

इस संबंध में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि पार्टी के घोषणा-पत्र में विच हंटिंग का जिक्र इसीलिए नहीं है, क्योंकि उनकी सरकार ने इस कुप्रथा को काफी हद तक रोक दिया है.

दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के नेताओं ने इस सवाल से कन्नी काट ली.

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक दुबे कहते हैं कि भले ही उनके घोषणा-पत्र में यह बात नहीं आई, लेकिन उनकी सरकार बनी तो डायन बिसाही की कुप्रथा पर रोकथाम के लिए सख्त कानून लाएगी.

डायन प्रथा पर रोकथाम के लिए झारखंड की भाजपा सरकार अपनी जिम्मेदारी से कहीं ज्यादा गांव और समुदाय की जिम्मेदारी तय करना चाहती है. हाल ही में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने एक इंटरव्यू में विच हंटिंग के सवाल पर कहा था कि सिविल सोसायटी और समाज के लोग आगे आएं और इस कुप्रथा को खत्म करने की जिम्मेदारी लें.

विशेष सचिव डीके सक्सेना कहते हैं, ‘सभी जिलों को निर्देश है कि महिलाओं से संबंधित कोई भी घटना घटित होने पर रिपोर्ट करें. लेकिन हम लोगों का ध्यान डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए एक कानून लाने पर केंद्रित है. इसके प्रावधान के तहत अगर किसी गांव में ऐसी कोई घटना होती है तो पूरे गांव और समुदाय को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.’

पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से मामले दर्ज ही नहीं हो पाते

झारखंड में एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव (आली) की स्टेट कोऑर्डिनेटर रेशमा का मानना है कि राज्य में विच हंटिंग का बढ़ता के बढ़ते आंकड़ों के पीछे पुलिस और प्रशासन की लापरवाही और समाज की असंवेदनशीलता जिम्मेदार है.

वे कहती हैं, ‘मेरा सवाल समाज और सरकार दोनों से है. विच हंटिंग पर रोकथाम के लिए सरकार पर सवाल इसलिए खड़े होते हैं कि क्योंकि इसके नाम पर राज्य में औसतन हर माह एक से दो महिलाओं की हत्या होती है. ऐसे मामलों में पुलिस मुश्किल से केस दर्ज करती है. वहीं समाज में वो डर खत्म हो गया, जो हमें सही-गलत का फर्क बताता है.’

गैर सरकारी संस्था आशा के अनुसार झारखंड के पांच जिलों में डायन बताकर हत्या किए जाने का आंकड़ा.
गैर सरकारी संस्था आशा के अनुसार झारखंड के पांच जिलों में डायन बताकर हत्या किए जाने का आंकड़ा.

आली झारखंड में बीते आठ सालों से डायन-बिसाही के पीड़ित परिवारों को कानूनी सहायता प्रदान कराती है.

विच हंटिंग जैसी कुप्रथा पर किताब लिख चुके प्रो. संजय बसु झारखंड पुलिस के आंकड़ों पर भी संदेह जताते हैं. उनका कहना है, ‘झारखंड पुलिस के आंकड़े भी इतने कम हैं कि आश्चर्य होता है. राज्य में विच हंटिंग एक बड़ी समस्या रही है इसीलिए हो सकता कि सरकारी मशीनरी सही आंकड़ा छिपाना चाहती हो.’

विच हंटिंग की वीभत्स तस्वीर

एनसीआरबी के पांच साल के आंकड़ें को देखें तो भारत भर में डायन-बिसाही के नाम 656 हत्याएं हुई हैं. इसमें से 217 सिर्फ झारखंड में है. इधर, पिछले कई सालों से डायन बताकर महिलाओं की हत्या के मामले में झारखंड शीर्ष पर रहा है.

वहीं, झारखंड पुलिस के मुताबिक राज्य में 2011 से लेकर सितंबर 2019 तक डायन-बिसाही के नाम पर 235 हत्याएं हुई हैं और सिर्फ चार साल (2014-17) में 2835 मामलों की एफआईआर दर्ज की गई है.

एनसीआरबी और झारखंड पुलिस के आंकड़ों में अंतर स्पष्ट नजर आता है. इसी तरह साल 2018 में सांसद संजीव कुमार के द्वारा विच हंटिंग पर संसद में पूछे गए सवाल पर तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज अहिर ने लिखित जवाब दिया.

जवाब के मुताबिक, झारखंड में डायन बताकर 2014 से 2017 तक 183 हत्याएं हुई हैं, जो इन चार सालों में क्रमश: 46, 51, 44, 42 हैं. लेकिन यही आंकड़ा एनसीआरबी की रिपोर्ट में बदल जाता है और कुल संख्या 125 हो जाती है, जो क्रमशः 47, 32, 27, 19 हैं.

डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर लंबे समय कार्यक्रम चला रही गैर सरकारी संस्था आशा के सचिव अजय कुमार जायसवाल का दावा है कि 1992 से लेकर अब तक 1800 महिलाओं को सिर्फ डायन, जादू-टोना, चुड़ैल होने और ओझा के इशारे पर मारा गया है.

आशा के सर्वे के मुताबिक, 1991 से साल 2000 तक 522 हत्याएं हुईं, जबकि और हत्या के 186 मामले दर्ज ही नहीं हुए. 2001 से 2012 तक 604 हत्याएं हुईं. इस दौरान कुल 1312 हत्याएं हुईं. रांची में 238, चाईबासा में 178, लोहरदगा में 138, गुमला में 141, पलामू में 61 हत्याएं हुईं.

एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव की एक रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में डायन-बिसाही का शिकार होने वाली महिलाओं में 35 प्रतिशत आदिवासी और 34 प्रतिशत दलित हैं.

जागरूकता अभियानों का असर नहीं

डायन बताकर होने वाली हत्याओं की रोकथाम के लिए झारखंड में अलग से कोई कानून नहीं है. संयुक्त बिहार के ‘डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1999’ ही झारखंड में लागू है, जिसे राज्य सरकार ने 3 जुलाई 2001 अंगीकृत किया था.

इस कुप्रथा के खिलाफ समय समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन उनका कुछ खास असर होता नहीं दिखता.

जागरूकता अभियान के बारे में अजय कुमार जायसवाल कहते, ‘झारखंड में इस कुप्रथा के नाम पर महिलाओं की लिंचिंग आम बात हो गई है. रोकथाम के लिए सरकारी जागरूकता अभियान नुक्कड़ नाटकों तक ही सीमित है, यह गांवों तक पहुंच ही नहीं पाती.’

वे आगे कहते हैं, ‘ग्रामीण इलाकों में इस तरह की अधिकांश घटनाएं सामूहिक सहमति से होती है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि ग्रामीण स्तर पर वह बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक करें. ऐसी कोई घटना घटने पर इनकी जिम्मेदारी सुनिश्चत करें, वरना तस्वीर बदलने वाली नहीं है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)