विशेष रिपोर्ट: अल्पसंख्यकों के विकास के लिए ज़रूरी योजनाओं पर ही काफी कम पैसे ख़र्च हो रहे हैं. सरकार ने इसके मुक़ाबले औसतन ज़्यादा राशि हज सब्सिडी पर ख़र्च की है. इस साल सबसे कम पैसे अल्पसंख्यकों की शिक्षा के क्षेत्र में ख़र्च किए गए हैं.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी समेत केंद्र के कई मंत्रियों एवं भाजपा नेताओं ने समय-समय पर ये दावा किया है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काफी काम कर रही है. ये स्थिति तब है जब पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के मुकाबले एनडीए ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को ज्यादा बजट का आवंटन किया है.
हालांकि विकास करने के सरकार के ये दावे सवालों के घेरे में तब आ जाते हैं जब पता चलता है कि आवंटित की गई राशि का एक बड़ा हिस्सा खर्च नहीं हो पाया है. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए जितने बजट का आवंटन किया गया है उसके मुकाबले काफी कम राशि खर्च हो पाई है.
वित्तीय वर्ष 2019-20 को खत्म होने में करीब तीन महीने का समय बचा है, लेकिन मंत्रालय ने आवंटित किए गए कुल बजट में से 30 फीसदी से भी कम राशि खर्च किया है.
हाल ही में अपडेट किए गए अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019-20 के लिए कुल 4,700 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन इसमें से सिर्फ 1,396.48 करोड़ रुपये खर्च हो पाए हैं. इन आंकड़ों को विस्तृत तरीके से देखें तो स्थिति काफी चिंतनीय है.
मंत्रालय को मुख्य रूप से पांच कार्यों- शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, अल्पसंख्यक सशक्तिकरण के लिए विशेष कार्यों, क्षेत्र विकास कार्यों और संस्थाओं के सहयोग के लिए बजट दिए जाते हैं.
हालांकि दस्तावेजों से पता चलता है कि अल्पसंख्यकों के विकास के लिए जरूरी योजनाओं पर ही काफी कम पैसे खर्च हो रहे हैं. सरकार ने इनके मुकाबले औसतन ज्यादा राशि हज और अल्पसंख्यक मंत्रालय से जुड़े सचिवालयों में खर्च किया है. इस साल सबसे कम पैसे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किए गए हैं.
शिक्षा की स्थिति
वित्त वर्ष 2019-20 में अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा के लिए 2362.74 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. लेकिन 30 नवंबर 2019 तक इसमें से सिर्फ 421.33 करोड़ रुपये की राशि खर्च हो पाई है. यानी कि सरकार ने इस काम के लिए आवंटित राशि का सिर्फ 17.83 फीसदी ही पैसा अब तक खर्च किया है.
इस बजट के तहत प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए 1220.30 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन 30 नवंबर 2019 तक सिर्फ 162.99 यानी कि सिर्फ 13.35 फीसदी राशि खर्च हो पाई है. वहीं पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए 496.01 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था लेकिन इसमें से अब तक 70.56 करोड़ रुपये या 14.22 फीसदी राशि ही खर्च की गई है.
इन दोनों योजनाओं के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के क्लास एक से 10 और 11 एवं 12 क्लास के छात्रों को स्कॉलरशिप देने का प्रावधान है. हालांकि इन आंकड़ों से पता चलता है कि काफी कम बच्चों को समय पर स्कॉलरशिप मिल पा रही है.
इसके अलावा मेरिट के आधार पर स्कॉलरशिप देने के लिए ‘मेरिट-कम-मीन्स’ योजना बनाई गई है. इसके तहत कुल 366.43 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. हालांकि 30 नवंबर तक सिर्फ 63.86 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं जो कि आवंटन का सिर्फ 17 फीसदी ही है. इस योजना के तहत ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन स्तर पर टेक्निकल और प्रोफेशनल कोर्सेस के लिए स्कॉलरशिप दी जाती है.
वहीं पढ़ने के लिए देश से बाहर जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के शिक्षा ऋण पर सब्सिडी देने, फ्री कोचिंग और यूपीएससी की प्री-परीक्षा पास करने वालों की सहायता करने की योजना के तहत 30 करोड़ रुपये, 75 करोड़ रुपये और 20 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
हालांकि इन तीनों योजनाओं के तहत अब तक सिर्फ नौ करोड़ रुपये, 9.92 करोड़ रुपये और पांच करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं. ये आंकड़े मोदी सरकार के दावों पर सवालिया निशान खड़े करते हैं.
आर्थिक विकास पर खर्च
अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के आर्थिक सशक्तिकरण या आर्थिक विकास के लिए मुख्य रूप से तीन योजनाएं- स्किल डेवलपमेंट, उस्ताद (हुनर हाट) और नई मंजिल चल रही हैं. इन तीनों कार्य के लिए साल 2019-20 में कुल 440 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
हालांकि अब तक 91.35 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं. ये आंकड़ा आवंटित राशि का सिर्फ 20 फीसदी ही है. इतना ही नहीं, पिछले साल और उससे भी पिछले सालों में इन कार्यों के लिए जितनी राशि आवंटित की गई थी वो भी अभी तक खर्च नहीं हो पाई है.
साल 2018-19 में अल्पसंख्यकों के स्किल डेवलपमेंट के लिए 250 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन इसमें से सिर्फ 175.73 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए. वहीं 2017-18 में भी 250 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन अब तक 199.80 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं.
वहीं नई मंजिल के लिए 2018-19 में 140 करोड़ रुपये, 2017-18 में 175.95 करोड़ रुपये और 2016-17 में 155 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. हालांकि इसमें से 93.73 करोड़ रुपये, 93.73 करोड़ रुपये और 117.97 करोड़ रुपये ही अब तक खर्च हो पाए हैं.
विशेष योजनाओं का अल्पसंख्यकों को कितना लाभ मिला
शिक्षा एवं आर्थिक विकास के अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के सशक्तिकरण के लिए विशेष पहल के तहत केंद्र सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं. इसमें अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्व विकास के लिए ‘नई रोशनी’ योजना, पारसी समुदाय की जनसंख्या में गिरावट के लिए ‘जीओ पारसी’ योजना, ‘हमारी धरोहर’ योजना और विकास योजनाओं पर शोध/स्टडी, मॉनिटरिंग एवं मूल्यांकन के लिए योजनाएं शामिल हैं.
इन कार्यों के लिए साल 2019-20 में कुल 87 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था. हालांकि 30 नवंबर 2019 तक सिर्फ 4.75 करोड़ रुपये यानी कि सिर्फ 5.45 फीसदी राशि ही खर्च हो पाई है. मुस्लिम महिलाओं में नेतृत्व विकास के लिए 15 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और इसमें से अब तक सिर्फ 46 लाख रुपये ही खर्च हो पाए हैं.
भारत की अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने की योजना ‘हमारी धरोहर’ के तहत कुल आठ करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और इसमें से अभी तक एक रुपया भी खर्च नहीं हो सका है. इस योजना के लिए साल 2018-19 के दौरान छह करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, लेकिन सिर्फ 1.64 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं.
विकास योजनाओं पर शोध के लिए 60 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ और अब तक सिर्फ 1.83 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं.
प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम की स्थिति
अल्पसंख्यक समुदाय के लिए प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम नाम से एक योजना है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना, लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना और चिह्नित क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के असंतुलन को कम करना है.
पहले इस योजना का नाम बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम था. इस योजना को साल 2008-09 में लागू किया गया था. बाद में इसका नाम बदलकर साल 2018 में प्रधानमंत्री जन विकास कार्यकम कर दिया गया.
इस साल के लिए इस योजना के तहत 1470 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था. हालांकि अब तक सिर्फ 627.07 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं. पिछले साल इसके लिए 1320 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था और अब तक सिर्फ 1156.07 करोड़ रुपये ही खर्च किया गया है.
हज एवं अन्य कार्यों के लिए खर्च
शिक्षा एवं आर्थिक विकास के मुकाबले मोदी सरकार ने औसतन ज्यादा राशि हज और अल्पसंख्यक मंत्रालय से जुड़े सचिवालयों में खर्च किया है. हज सब्सिडी के लिए 85 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था और इसमें से 30 नवंबर तक 69.82 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
वहीं हज सचिवालय के लिए नौ करोड़ रुपये का बजट दिया गया था और अब तक 6.53 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इसी तरह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को इस साल 9.30 करोड़ रुपये आवंटित किए गए और इसमें से 6.47 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
कौमी वक्फ बोर्ड योजना के तहत 17.50 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसमें से अब तक में 11.82 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट को खर्च न करने पर संसद की स्थायी समिति ने भी चिंता जताई है. हाल ही में संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा कि मंत्रालय को हर योजनाओं के लिए एक्शन प्लान और स्पष्ट टार्गेट रखना चाहिए ताकि सही से बजट खर्च किया जा सके.
समिति ने इस संबंध में राज्यों को भी दिशा-निर्देश दिया है. संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘इस रफ्तार से चौथी तिमाही के ट्रेंड का आंकलन करना कोई मुश्किल बात नहीं. समिति ने ये सहमति जताई है कि इस धीमी रफ्तार की वजह से विभिन्न योजनाओं के फंड का उपयोग काफी प्रभावित होगा.’
फंड न खर्च पाने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा दिए गए तर्कों को रमा देवी की अध्यक्षता वाली 31-सदस्यीस संसदीय समिति ने स्वीकार नहीं किया था.