आज भाजपा का संगठन चुनाव के लिए चाक-चौबंद नज़र आता है. इस पर और नजदीक से नज़र डालने के लिए आइए चलते हैं कानपुर मंडल के फर्रुखाबाद जिले की अमृतपुर विधानसभा में.
21 साल के शिवम का दिन आजकल अपने हमउम्र नौजवानों की दिनचर्या से थोड़ा अलहदा तरीके से गुजरता है. बीए तृतीय वर्ष के इस छात्र को आजकल पूरे दिन ‘जनसंपर्क’ और ‘सांगठनिक दायित्व’ निभाने पड़ते हैं, जिसके चलते पढ़ाई भी हर्जा हो रही है.
माता-पिता की नाराज़गी भी रहती है लेकिन ‘पार्टी की सरकार’ बनवाने के लिए शिवम ये कीमत चुकाने को तैयार हैं. शिवम फर्रुखाबाद जिले की अमृतपुर विधानसभा में पड़ने वाले राजेपुर पश्चिमी बूथ के अध्यक्ष हैं और कैडर वाली पार्टी कही जाने वाली भाजपा की सांगठनिक मशीनरी के सबसे छोटे, पर सबसे महत्वपूर्ण घटक- पोलिंग बूथ का दायित्व संभाल रहे हैं.
संघे शक्ति
भारतीय जनता पार्टी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आदर्श वाक्य है- संघे शक्ति कलौयुगे, यानी कलियुग (मौजूदा समय) में संगठन में ही शक्ति है. किसी भी पुराने भाजपाई को पकड़ के पूछिए, वो राजनीति के लिए चार चीज़ों की ज़रूरत बताएगा- विचारधारा, कार्यकर्ता/सदस्यता, संगठन और आंदोलन/कार्यक्रम.
विचारधारा पार्टी की दिशा तय करती है और उसे अन्य दलों से अलग करती है. सदस्यता और सदस्यों की ट्रेनिंग के ज़रिये पार्टी कार्यकर्ता तैयार करती है, जिससे संगठन का ढांचा तैयार होता है जो पार्टी की रीढ़ बनता है.
कार्यक्रमों और आंदोलनों के ज़रिये पार्टी समाज के अलग-अलग तबकों की आवाज़ उठाती है, और इस तरह उन तबको में अपनी पहुंच बनाते हुए उन्हें अपने प्रभाव में लेते हुए पार्टी खुद के जनाधार को बढ़ाती है.
पुराने राजनीतिक जानकारों और विश्लेषकों की मानें तो खुद को ‘वैचारिक आधार वाली पार्टी’ मानने वाली भाजपा में संगठन और कार्यकर्ता का हमेशा बहुत महत्व रहा है. राम मंदिर आंदोलन के दौर में भाजपा ने गोविंदाचार्य के निर्देशन में गैर यादव ओबीसी जातियों को हिंदुत्व के ‘फुट सोल्जर’ के बतौर विकसित करना शुरू किया और लोध, कुर्मी, शाक्य बिरादरी से नेताओं की एक पूरी फौज तैयार हुई.
यही संगठन का सुनहरा दौर था जब पार्टी के पास हर जाति के नेता थे. लेकिन बाद के दौर में सवर्णों को छोड़कर अन्य जातियां पार्टी छोड़कर निकल लीं और 2007 में ब्राह्मण भी हाथी पर सवार हो गए.
2012 के चुनाव में तो कल्याण सिंह भी अलग हो गए और अपने साथ लोध वोटों को लेते गए. पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा में अपने न्यूनतम स्कोर पर पहुंच गई. सालों सरकार से बाहर रहते रहते और जातीय आधार के दरकने के चलते संगठन क्षीण होता गया.
इस मामले में नई बयार बही 2014 के लोकसभा चुनाव से, जब नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी के साथ पार्टी ने फिर गैर यादव ओबीसी जातियों में पहुंच बनाई. सरकार बनने के बाद संसाधनों की कमी की दिक्कत ख़त्म हुई और रूटीन के तौर पर चलने वाले ‘सांगठनिक पुनर्गठन’ का काम नए तेवर के साथ शुरू हुआ.
पिछले दो वर्षों के लगातार प्रयासों के चलते आज भाजपा का संगठन चुनाव के लिए चाक-चौबंद नज़र आता है. इस पर और नजदीक से नज़र डालने के लिए आइए चलते हैं कानपुर मंडल के फर्रुखाबाद जिले की अमृतपुर विधानसभा में.
बूथ से विधानसभा तक
फर्रुखाबाद शहर में एक दुकान पर भाजपा के जिला महामंत्री विमल कटियार से मुलाक़ात होती है. कुर्मी बिरादरी से आने वाले 45 वर्षीय कटियार 1991 में राम मंदिर आंदोलन के समय भाजपा से जुड़े थे, तब से पार्टी में ही हैं.
विधानसभा में संगठन के ढांचे के बारे में वे बताते हैं, ‘जिले की हर विधानसभा सीट पर दो कमेटियां होती हैं. चुनाव प्रबंधन समिति और चुनाव संचालन समिति. प्रबंधन समिति पार्टी बनती है और उसका इंचार्ज पार्टी द्वारा तय किया गया विधानसभा प्रभारी होता है. वहीं संचालन समिति प्रत्याशी बनाता और चलाता है. जिले के हर मतदान केंद्र (बूथ) पर बूथ अध्यक्ष की निगरानी में 11 से 21 सदस्यों की बूथ समितियां होती हैं. 10 से 15 बूथों को जोड़कर एक सेक्टर बनाया जाता है जिसे सेक्टर प्रभारी देखता है. 10 से 15 सेक्टर्स पर मंडल अध्यक्ष होता है. हर विधानसभा में 3 से 5 मंडल आते हैं और सभी मंडल प्रभारी सीधे विधानसभा प्रभारी के संपर्क में रहते हैं.’
विमल कटियार गर्व से बताते हैं कि जिले के सभी बूथों, सेक्टरों, मंडलों पर पार्टी की समितियां तैयार हैं. और जिला समिति क्या करती है? इसके जवाब में वे कहते हैं, ‘जिला समिति चुनाव में नेपथ्य में चली जाती है, हालांकि कोआॅर्डिनेशन का काम हम ही लोग देखते हैं. साथ ही हर विधानसभा में पार्टी पास 4-5 प्रचार वाली मोटर साइकल हैं, एक वीडियो वैन और एक प्रचार रथ है. फिर बड़े नेताओं के कार्यक्रम हैं. इनका कोआॅर्डिनेशन भी हम ही लोग करते हैं.
एक कप चाय के बाद अमृतपुर विधानसभा का रुख करता हूं. चुनाव प्रभारी कुलदीप दुबे से फोन पर बात होती है तो वो राजेपुर मंडल के अध्यक्ष का नंबर देते हैं और राजेपुर कस्बे में पार्टी कार्यालय पहुंचने को बोलते हैं. एक बारात घर से पार्टी का अस्थायी दफ्तर चल रहा है.
उसी के लॉन में मंडल अध्यक्ष विभवेश सिंह राठौड़ से मुलाक़ात होती है, जो अगले दिन होने वाले मंडलभर की बूथ कमेटियों के सम्मलेन की तैयारी के लिए मीटिंग कर रहे हैं. 27 साल के विभवेश एमए बीएड हैं और 2016 की शुरुआत में ही मंडल अध्यक्ष बने हैं.
‘मेरे पास 145 बूथ और 11 सेक्टर प्रभारी हैं. हर बूथ पर 10 से 21 सदस्यों की कमेटी, मय फोन नंबर एकदम चाक-चौबंद है’, बोलते-बोलते सॉफ्ट स्पोकन विभवेश की आवाज़ में गर्व छलक ही जाता है.
पिछले महीने में पार्टी की ओर से क्या-क्या कार्यक्रम किए गए, पूछने पर विभवेश एक लंबी लिस्ट गिनाने लगते हैं, ‘पहले डिजिटल सदस्यता हुई, फिर सदस्यों तक पहुंचने के लिए महासंपर्क अभियान हुआ. उसके बाद तिरंगा यात्रा हुई जो हर बूथ तक गई. फिर सांगठनिक फेरबदल हुई और नई समितियां बनाई गईं. उसके बाद हर दो विधानसभा पर एक पिछड़ा वर्ग सम्मेलन हुआ, जबकि महिला, एससी-एसटी और युवा सम्मेलन जिलास्तर पर हुए. नवंबर से परिवर्तन यात्राएं शुरू हुईं जो हर विधानसभा में गईं.’
पास ही बैठे शंभू शरण कुशवाहा बोल पड़ते हैं, ‘पिछले डेढ़ साल से हमारा कार्यकर्ता घर नहीं बैठा.’ कुशवाहा जी देवरिया से हैं और यहां पार्टी की तरफ से चुनाव देखने भेजे गए हैं.
मैं सेक्टर और बूथ अध्यक्षों से मिलने की इच्छा व्यक्त करता हूं तो विभवेश राजेपुर सेक्टर के प्रभारी धर्मेंद्र सिंह से बात करा देते हैं. पास ही धर्मेंद्र का घर है. उनके घर पर उन्हीं के दो बूथ अध्यक्षों- शिवम और सनत सिंह से भी मुलाक़ात हो जाती है.
पास के सरस्वती शिशु मंदिर में प्रिंसिपल धर्मेंद्र 36 वर्ष के होकर इस टीम में सबसे उम्रदराज़ आदमी हैं, क्योंकि उनके दोनों बूथ अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष भी तीस से कम उम्र के हैं. आपके बूथ अध्यक्षों से कितने दिनों में बात-मुलाक़ात हो जाती है. धर्मेंद्र बताते हैं, ‘दो-तीन से तो रोज़ाना मुलाक़ात हो जाती है, बाकी हर तीन-चार दिन पर फोन से सबसे बात हो जाती है.’
यहां से वापस आता हूं तब तक विधानसभा प्रभारी कुलदीप दुबे भी मीटिंग के लिए आ चुके हैं. 40 साल के कुलदीप एयरफोर्स से वीआरएस लेकर पहले एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई करने आगरा विश्वविद्यालय गए. फिर वहीं विद्यार्थी परिषद से यूनिवर्सिटी छात्रसंघ का चुनाव लड़ा और हारे.
वेलफेयर ऑफिसर के बतौर चीनी मिल में कुछ साल काम किया. फिर पूरी तरह पार्टी से जुड़ गए. भाजपा ही क्यों, पूछने पर उनका जवाब है था, ‘भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो राष्ट्रवादी सोच के साथ काम करती है, बाकी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी रहती है.’
कभी नहीं रुकती जातीय गणित की घड़ी
बूथों के साथ संपर्क कैसा है, पूछने पर कुलदीप बोलते हैं, ‘तीन चौथाई बूथों पर एक से ज़्यादा बार खुद जा चुका हूं. सभी बूथ अध्यक्षों से नहीं तो सभी सेक्टर प्रभारियों से लगातार टच में रहता हूं.’
प्रत्याशी कहां हैं? इसके जवाब में वे कहते हैं, ‘आज सांसद मुकेश राजपूत का जनसंपर्क कार्यक्रम है विधानसभा में, उनके ही साथ हैं. अमृतपुर विधानसभा में लोध मतों की अच्छी संख्या है. जबकि शाक्य भी ठीक तादाद में हैं. भाजपा प्रत्याशी सुशील शाक्य पुराने नेता हैं. अपनी बिरादरी का मत तो पाएंगे पर लोध मतों का मिलना ज़रूरी है. इसीलिए कल्याण सिंह के करीबी मुकेश राजपूत का जनसंपर्क कार्यक्रम रखा गया है, ताकि वे अपनी बिरादरी के मतों को पार्टी के पक्ष में जुटाकर रखें.
वे आगे कहते हैं, ‘जिले में उमा भारती की एक रैली भी इसीलिए रखी गई है ताकि अन्य उम्मीदवारों को भी फायदा हो. इसके अलावा राजेपुर में ठाकुरों की संख्या ठीक होने के चलते मंडल अध्यक्ष और बूथ सेक्टर अध्यक्ष के पदों पर अधिकाश ठाकुरों को बैठाया गया है.’
कुलदीप दुबे लगातार दूसरी बार विधानसभा प्रभारी हैं, क्योंकि लगभग 15 हज़ार ब्राह्मण मतदाता भी इस सीट पर हैं. उन्हें साध के रखने के लिए एक ब्राह्मण चेहरा ज़रूरी है. कुल मिलाकर जातीय कैलकुलेशन कभी नज़र से ओझल नहीं होता.
कुलदीप और विभवेश को अगले दिन आने वाले बूथ सदस्यों के लिए मुफ्त पेट्रोल जुटाने और बूथ अध्यक्षों का फोन रिचार्ज की तैयारी करता छोड़कर मैं निकल लेता हूं भटौली गांव. जहां भाजपा प्रत्याशी सुशील शाक्य और सांसद मुकेश राजपूत जनसंपर्क के लिए पहुंचने वाले हैं.
कच्चे-पक्के और फिर निपट कच्चे रास्ते पर उछलते भटौली पहुंचता हूं तो गाड़ियों का एक काफिला पहले ही खड़ा मिलता है. पास के एक बुजुर्ग से पूछता हूं कौन बिरादरी का गांव है तो जवाब मिलता है ‘वर्मा लोगन को है.’
‘जा बार वोट मिलिये भाजपा कौ’, पूछने पर बोलते हैं, ‘जादांय तौ मिलिये.’ 2012 के चुनाव में यही मुकेश राजपूत कल्याण सिंह की जनक्रांति पार्टी से जिले की एक दूसरी सीट पर उम्मीदवार थे जबकि यहां के लोधियों ने सुशील शाक्य को छोड़कर जनक्रांति पार्टी के ही उम्मीदवार का समर्थन किया था, जिससे भाजपा यहां तीसरे स्थान पर चली गई थी.
पिछले पांच सालों में सिर्फ समीकरण ही नहीं बल्कि संगठन की सूरत भी बदली है. पर इसका फायदा चुनाव में भाजपा को कितना होगा, ये समय ही बताएगा.