सीबीआई एनडीटीवी के संस्थापकों के घर छापे मार रही है जबकि अडानी, अंबानी और दूसरे ताकतवर व्यापारिक घरानों के लिए ख़िलाफ़ पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद कार्रवाई नहीं कर रही है.
भारत की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई ने सोमवार को एनडीटीवी के सह-संस्थापकों, प्रणय रॉय और और राधिका रॉय के आवास पर छापा मारा.
रॉय दंपति पर आरोप है कि करीब 8 साल पहले एक प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई ने उनके एक क़र्ज़ का निपटारा बाज़ार दर से काफी कम ब्याज पर कर लिया जिससे बैंक को 48 करोड़ रुपये का नुकसान सहना पड़ा.
एनडीए सरकार में मंत्री वेंकैया नायडू ने दावा किया कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. लेकिन क्या सच्चाई वही है, जो नायडू कह रहे हैं?
क्या नरेंद्र मोदी के राज में सीबीआई वाकई ताकतवर लोगों के भ्रष्टाचार और आपराधिक कारगुजारियों पर कार्रवाई करने के मामले में किसी के साथ कोई रियायत नहीं करती है?
हकीकत यह है कि रॉय के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की तुलना में भ्रष्टाचार के कहीं ज़्यादा गंभीर मामले सीबीआई के पास सालों से लंबित पड़े हैं.
पिछले साल डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) ने आयातित कोयले की ओवर इनवॉयसिंग (बढ़ा कर बिल बनाने) और इस तरह देश की जनता का हज़ारों करोड़ धन अवैध तरीके से विदेशों में भेजने के मामले में देश की 40 सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनियों की जांच की थी.
मार्च, 2016 में डीआरआई ने एक साल लंबी जांच के बाद ने देशभर के करीब 45 कस्टम संस्थानों को अलर्ट भेज कर इंडोनेशिया की ऊर्जा कंपनियों से आयातित कोयले की ओवर इनवॉयसिंग के पूरे गोरखधंधे के बारे में जानकारी दी थी.
डीआरआई ने दावा किया कि बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों ने आयातित कोयले की कीमत को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाकर उसके आधार पर बिजली टैरिफ पर ज़्यादा मुआवज़ा हासिल किया. अनुमानों के मुताबिक यह 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला था.
जांच की जद में आने वाली कंपनियों में अडाणी समूह की छह कंपनियां (अडाणी इंटरप्राइजेज़ लिमिटेड, अडाणी पावर लिमिटेड, अडाणी पावर राजस्थान लिमिटेड, अडाणी पावर महाराष्ट्र लिमिटेड, अडाणी विल्मार लिमिटेड, व्योम ट्रेड लिंक), अनिल अंबानी के नियंत्रण वाले अनिल धीरुभाई अंबानी समूह से जुड़ी दो कंपनियां (रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और रोज़ा पावर सप्लाई कंपनी लिमिटेड), रुइया परिवार और जेएसडब्लू से जुड़े एस्सार समूह की दो कंपनियां और सज्जन जिंदल द्वारा समर्थित एक कंपनी का नाम शामिल था.
डीआरआई ने दावा किया था कि उसके पास इस बात के काफी पुख़्ता सबूत हैं कि किस तरह से इन कंपनियों ने इंडोनेशिया और भारत के बीच इनवॉयसिंग की कई परतें बना रखी थीं और कैसे आधिकारिक रसीदों में कोयले की कीमत को बढ़ाकर दिखाने के लिए सिंगापुर, हांगकांग, दुबई और दूसरी जगहों पर बिचौलिए फर्म स्थापित किए गए थे.
इंडोनेशिया से कोयला भेजने वाली कंपनी को कोयले की वास्तविक कीमत चुका देने के बाद, बाकी बचा हिस्सा विदेशों में ठिकाने लगा दिया जाता था. इस तरह से 2010 और 2015 के बीच देश से बाहर भेजी गई अनुमानित रकम 30,000 रुपये के करीब थी.
यह आम जनता पर दोहरी मार थी. इस तरह की ज़्यादातर बिजली कंपनियां बाज़ार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लिए गए क़र्ज़ के पैसे के बल पर चलती हैं. इस तरह से देखें, तो विदेशों में जमा धन वास्तव में जनता का पैसा है.
इतना ही नहीं, बढ़ाकर दिखाई गई लागत का बोझ भी बढ़े हुए बिल के रूप में बिजली उपभोक्ताओं पर ही डाल दिया जाता है. इस तरह हर महीने उपभोक्ता बिजली बिलों के लिए कहीं ज़्यादा पैसे चुकाता है. जबकि अगर ये गोरखधंधा नहीं होता, तो उपभोक्ताओं का बिल काफी कम आता.
क्या सीबीआई की जांच शुरू करने के लिए यह पर्याप्त सबूत नहीं था? आख़िर कौन सा मसला जनहित से जुड़ा है- रॉय द्वारा लिया गया क़र्ज़, जिसका निपटारा वे पहले ही कर चुके हैं या जनता के हज़ारों करोड़ रुपये, जिसे अवैध तरीके से विदेश भेजा जा रहा है.
डीआरआई ने दो और घोटालों को उजागर किया था.
इसमें से एक घोटाला अडाणी समूह से जुड़े एक कंपनी द्वारा पावर प्लांट के लिए साज़ो-सामान की ख़रीद के लिए ओवर इनवॉयसिंग का था. दूसरे का संबंध एस्सार समूह द्वारा पावर प्लांट के साज़ो-सामान का बिल बढ़ाकर बनाने से था.
2014 में तैयार की गई एक भारी-भरकम रिपोर्ट में डीआरआई ने आरोप लगाया कि अडाणी समूह से जुड़ी कई कंपनियों ने आपस में साजिश रचते हुए 6,000 करोड़ रुपये विदेश भेजा था.
इसमें से अधिकांश धन इन कंपनियों ने सार्वजनिक बैंकों से क़र्ज़ के तौर पर जुटाया था. कोयला आयात की ओवर इनवॉयसिंग की ही तरह आयातित पावर प्लांटों के मूल्य को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया.
2014 के लोकसभा चुनाव से चंद हफ्ते पहले डीआरआई की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए सीबीआई ने अडाणी समूह की तीन कंपनियों के ख़िलाफ़ प्राथमिक जांच शुरू की थी.
पिछले साल, 17 मई को मैंने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को खत लिख कर इस लंबित जांच की प्रगति के बारे में जानकारी मांगी थी.
मैंने सीबीआई, ईडी और प्रधानमंत्री कार्यालय को एस्सार, अडाणी और अंबानी व दूसरी ऊर्जा कंपनियों के कथित घोटाले के बारे में लिखा था. मेरी चिट्ठी के साथ डीआरआई की पूरी रिपोर्ट संलग्न थी.
प्रणय रॉय के मामले में सीबीआई ने एक निजी व्यक्ति की शिकायत पर कार्रवाई की है. जबकि इस मामले में शिकायत ख़ुद सरकार की एजेंसी- डीआरआई ने की थी.
जैसी उम्मीद थी, प्रधानमंत्री कार्यालय, सीबीआई या ईडी में से किसी ने चिट्ठी का जवाब नहीं दिया. लेकिन, मुझे 23 जून, 2016 की तारीख़ से वित्त मंत्रालय का एक ख़त मिला, जिसमें यह कहा गया था कि पीएमओ को भेजी गई मेरी शिकायत सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स और ईडी के पास विचार के लिए भेज दी गई है.
यह ज़िम्मेदारी को किसी और टालने का पुराना और आज़माया हुआ नुस्खा है, जिसमें एक विभाग किसी शिकायत को दूसरे विभाग को भेज देता है.
इस जवाब से संतुष्ट नहीं होने के कारण मैंने 25 जुलाई, 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय को फिर एक चिट्ठी लिखी और उससे पूछा कि आख़िर उसने सीबीआई से एक्शन टेकन रिपोर्ट जमा करने को क्यों नहीं कहा?
मेरा तर्क था कि भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशों में सार्वजनिक धन भेजने के सबूत किसी और ने नहीं, डीआरआई ने इकट्ठा किए हैं, जो भारतीय कस्टम की शीर्ष जांच शाखा है.
इस रिपोर्ट के तैयार होने के दो वर्ष बीत जाने के बाद भी सीबीआई ने इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. मैंने फिर चिट्ठी लिखी, लेकिन वहां से खामोशी के सिवा और कुछ नहीं मिला.
ललित-गेट, व्यापमं घोटाला, माल्या-गेट और बैंकों की गैर-निष्पादन परिसंपत्तियां (एनपीए) सीबीआई द्वारा रसूख़दारों का बचाव करने की कुख्यात मिसालें हैं.
मोदी का सबसे कट्टर समर्थक भी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के क्रियाकलाप को लेकर असहज महसूस करेगा. क्या सीबीआई में जनता का यकीन फिर से बहाल किया गया है?
क्या मोदी की सीबीआई ने बड़े भ्रष्टाचारों पर लगाम लगाया है? निजी न्यूज़ ब्रॉडकास्टर एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय पर हालिया छापे के बाद ये सवाल और मौजूं हो गए हैं.
साक्ष्य बताते हैं कि मोदी राज में सीबीआई पिंजड़े में बंद तोते से बदलकर भाजपा का सिखाया रॉटवाइलर (कुत्ते की एक जर्मन नस्ल) हो गई है.
मोदी की सीबीआई न सिर्फ़ अपने आकाओं का बचाव करती है, बल्कि अपने आकाओं के विरोधियों को निर्ममतापूर्वक ठिकाने लगाने के लिए भी किसी नही हद तक जाने को तैयार है.
भारत के लोकतंत्र के लिए इसके नतीजे दूरगामी होंगे. रॉय दंपति पर के ख़िलाफ़ एफआईआर और तलाशी जैसी प्रायोजित और मनमानी कार्रवाई बेमतलब नहीं है.
इनका मकसद वर्तमान सत्ता के करीब माने जाने वाले अडाणी और अंबानी जैसे लोगों के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों जैसे जनहित से जुड़े ज़्यादा महत्वपूर्ण मुद्दों की तरफ से जनता का ध्यान भटकाना है.
रॉय के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रहपूर्ण कार्रवाई का एक और मकसद विरोधियों और असहमति दर्ज करने वालों के दिलों में खौफ़ भरना है.
न्यायपालिका, कार्यपालिका, मीडिया, सिविल सोसाइटी सभी को एक संदेश दे दिया गया है: आपको आवाज़ उठाने की कीमत एफआईआर, तलाशी, पूछताछ, मीडिया ट्रायल, पुलिस हिरासत और यहां तक कि जेल के तौर पर चुकानी पड़ेगी.
इस सबकी प्रक्रिया भी किसी सज़ा से कम नहीं है. इसलिए अच्छा है कि सब मोदी की प्रभुता स्वीकार कर लें, आपको चोरी करने की छूट भी मिल जाएगी. अगर आप ऐसा नहीं करते तो सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग, सब आपका शिकार करने निकल जाएंगे.
(आशीष खेतान, दिल्ली सरकार के डायलॉग एंड डेवेलपमेंट कमीशन के अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी के नेता हैं.)
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