पीएम किसान योजना: क़रीब 75 फीसदी किसानों को तीनों किस्त नहीं मिली

पीएम किसान योजना के तहत किसानों को एक साल में 2000 रुपये की तीन किस्त के ज़रिये कुल 6000 रुपये देने का प्रावधान है. हालांकि आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, सिर्फ़ 25 फीसदी किसानों को ही इसका पूरा लाभ मिल पाया है.

/
Nagaon: A farmer ploughs his field using bullocks at Bamuni village, in Nagaon, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo) (PTI7_2_2019_000076B)
Nagaon: A farmer ploughs his field using bullocks at Bamuni village, in Nagaon, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo) (PTI7_2_2019_000076B)

पीएम किसान योजना के तहत किसानों को एक साल में 2000 रुपये की तीन किस्त के ज़रिये कुल 6000 रुपये देने का प्रावधान है. हालांकि आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, सिर्फ़ 25 फीसदी किसानों को ही इसका पूरा लाभ मिल पाया है.

Nagaon: A farmer ploughs his field using bullocks at Bamuni village, in Nagaon, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo) (PTI7_2_2019_000076B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी पीएम किसान योजना के लागू होने के पहले साल के दौरान 10 में तीन से भी कम किसानों को योजना की तीनों किस्त मिली है. करीब 75 फीसदी किसानों को इस योजना का पूर्णत: लाभ नहीं मिला है. द वायर द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त जानकारी से इसका खुलासा हुआ है.

पीएम किसान योजना के तहत किसानों को एक साल में 2000 रुपये की तीन किस्त के जरिए कुल 6000 रुपये देने थे. लेकिन आलम ये है कि इस योजना के लागू होने के पहले साल (1 दिसंबर 2018 से 30 नवंबर 2019 तक में ) के दौरान मोदी सरकार 41 फीसदी ही आवंटन खर्च कर पाई है और सिर्फ करीब 25 फीसदी किसानों को ही तीनों किस्त मिली है.

द वायर द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के आधार पर ये निष्कर्ष निकला है.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पीएम किसान योजना के लागू होने की गति साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से काफी धीमी हो गई है.

इस योजना के तहत पंजीकृत नौ करोड़ किसानों में से आधे से अधिक लोगों का पंजीकरण पहले फेज में हुआ था, जो कि लोकसभा चुनाव से पहले समाप्त हो गया था. इसके बाद से पंजीकरण की गति में गिरावट आई है.

75 फीसदी किसानों को नहीं मिला तीनों किस्त

दिसंबर 2018 से लेकर दिसंबर 2019 के बीच सिर्फ 3.85 करोड़ किसानों को 2000 रुपये की तीनों किस्त मिली है. जब पीएम किसान योजना को लॉन्च किया गया था तो उस समय सरकार ने अनुमान लगाया था कि करीब 14.5 करोड़ किसान इसके लाभार्थी होंगे और इन्हें तीन किस्त में 6,000 रुपये दिए जाएंगे.

हालांकि आरटीआई के तहत प्राप्त नवंबर 2019 तक के आंकड़ों से ये हकीकत सामने आती है कि योजना लागू होने के पहले साल के दौरान सिर्फ 26.6 फीसदी किसानों को ही तीनों किस्त मिली है. योजना का तीसरी फेज नवंबर 2019 में समाप्त हुआ था.

इसकी वजह खराब नौकरशाही या किसानों की ओर से उपयुक्त दस्तावेजों की कमी सहित विभिन्न कारण हो सकते हैं.

आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के 44 फीसदी किसानों को एक साल में इस योजना के तहत दो किस्त यानी कि 4,000 रुपये और 52 फीसदी किसानों को दिसंबर 2018 और दिसंबर 2019 के बीच केवल एक किस्त यानी कि 2,000 रुपये मिले हैं.

वहीं करीब 48 फीसदी किसानों को पीएम किसान योजना के पहले साल में एक भी किस्त नहीं मिली है.

मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 7.6 करोड़ किसानों को एक साल की अवधि में 2,000 रुपये की एक किस्त मिली. जैसा कि सरकार ने अनुमान लगाया था कि 14.5 करोड़ किसान इस योजना के तहत लाभान्वित होंगे, इसका मतलब है कि 6.8 करोड़ किसानों को इसके लागू होने के पहले वर्ष में पीएम किसान योजना के तहत एक भी किस्त नहीं मिली है.

यदि सभी 14.5 करोड़ किसानों को पहले वर्ष में पीएम किसान का पूरा लाभ मिला होता, जैसा कि सरकार ने परिकल्पना की थी, तो योजना पर 87,000 करोड़ रुपये खर्च होते. लेकिन वास्तविक खर्च केवल 41 फीसदी रहा है, जो कि नवंबर 2019 के अंत तक 36,000 करोड़ रुपये था.

चुनाव के बाद योजना लागू होने की गति धीमी हुई

लोकसभा चुनाव में मतदान शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 फरवरी, 2019 को पीएम किसान योजना की शुरुआत की गई थी.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान शुरु होने से पहले भुगतान की पहली किस्त किसानों तक पहुंचे, इस योजना को इसी उद्देश्य के साथ लागू किया गया और पहली किस्त दिसंबर 2018 से मार्च 2019 के बीच किसानों के खाते में भेजी गई.

इसका मतलब यह है कि योजना का पहला फेज लागू करने के लिए सरकार के पास सिर्फ पांच हफ्ते ही थे. लेकिन विडंबना यह है कि इसी अवधि में अधिकांश किसान पीएम किसान योजना के तहत पंजीकृत किए गए थे.

आलम ये है कि चुनाव के बाद के आठ महीनों में जितने किसान पंजीकृत नहीं किए गए उससे कहीं ज्यादा किसान लोकसभा चुनावों से पहले के पांच सप्ताह में पंजीकृत किए गए थे.

लोकसभा चुनावों को देखते हुए कृषि मंत्रालय ने इस तेजी से काम किया था कि योजना की परिकल्पना करने और इसके लिए नियम बनाने के साथ-साथ 24 फरवरी से 31 मार्च 2019 के बीच 4.74 करोड़ किसानों को पीएम किसान योजना के तहत जोड़ लिया था.

हालांकि चुनाव के बाद इस गति में काफी धीमापन आ गया. पहले फेज के पांच हफ्तों के मुकाबले योजना के दूसरे फेज के दौरान सरकार के पास चार महीने थे. लेकिन इस दौरान सिर्फ 3.08 करोड़ किसान जोड़े गए. वहीं तीसरे फेज में 1.19 करोड़ किसान ही पंजीकृत किए जा सके, जो कि पहले फेज के 4.74 करोड़ किसानों के मुकाबले इसका सिर्फ एक चौथाई है.

इस तरह चुनाव के बाद के आठ महीनों में जितने किसान पंजीकृत नहीं किए गए उससे कहीं ज्यादा किसान लोकसभा चुनावों से पहले के पांच सप्ताह में पंजीकृत किए गए थे.

सरकार ने दावा किया है कि योजना के लागू होने की धीमी गति का एक कारण आधार सत्यापन की बोझिल और अक्सर त्रुटि-रहित प्रक्रिया है, जिसे चुनाव के बाद योजना के दूसरे फेज की शुरुआत में अनिवार्य कर दिया गया था. आधार लिंकिंग को चुनाव से पहले वैकल्पिक रखा गया था.

हालांकि बाद में अक्टूबर महीने में इन शर्तों को हल्का कर दिया गया और लागू करने की तीसरी अवधि के लिए आधार लिंकिंग की आवश्यकता नहीं होने की बात कही गई.

लेकिन इसके बावजूद तीसरी अवधि में किसानों का पंजीकरण नहीं बढ़ा और अंत में तीसरी अवधि में केवल 1.19 करोड़ पंजीकृत हुए, जो कि पहले फेज के पांच हफ्तों में जोड़े गए किसानों के मुकाबले केवल एक चौथाई है.

कृषि मंत्रालय द्वारा धीमी प्रगति के लिए एक और कारण यह दिया गया है कि हो सकता है कि सरकार ने शुरुआत में देश में किसानों की संख्या का अधिक अनुमान लगा लिया हो. जनगणना के आंकड़ों और कृषि मंत्रालय की ‘किसान’ की परिभाषा के आधार पर द वायर के पहले के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में किसानों की संख्या सरकार के अनुमान के मुकाबले ज्यादा हो सकती है.

धीमी प्रगति के लिए कुछ राज्य सरकारें भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने केंद्र को आवश्यक आंकड़ा मुहैया कराने में बहुत खराब रवैया अपनाया है. उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल ने आज तक एक भी किसान का विवरण नहीं दिया है क्योंकि उन्होंने केंद्र की योजना में भाग लेने से इनकार कर दिया था.

इसलिए भले ही सरकार के अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 68 लाख किसान हों, लेकिन राज्य से अभी तक एक भी किसान को पीएम किसान योजना का लाभ नहीं मिला है. जब तक राज्य सरकारें आंकड़ें मुहैया नहीं कराएंगे तब तक केंद्र पैसे नहीं भेज सकता है.

भाजपा शासित राज्य भी इसके लिए दोषी हैं. किसान पंजीकरण में पांच करोड़ की कमी में से लगभग 2.5 करोड़ किसान कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र राज्यों के हैं. अकेला बिहार ही किसान पंजीकर में 1.13 करोड़ की कमी के लिए जिम्मेदार है. राज्य में अनुमानित 1.5 करोड़ किसानों में से केवल 44 लाख पंजीकृत हैं.