राजस्थान में टिड्डियों के हमले के बाद किसान सरकार की उदासीनता के शिकार

इन दिनों उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के 11 ज़िले और गुजरात के कुछ क्षेत्रों के किसान टिड्डियों के हमले से प्रभावित हैं. सरकारी अधिकारियों के अनुसार टिड्डियों के हमले से तक़रीबन 3.70 लाख हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो चुकी है.

खेतों में उड़ती टिड्डियों के बीच किसान. (सभी फोटो: माधव शर्मा)

इन दिनों उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के 11 ज़िले और गुजरात के कुछ क्षेत्रों के किसान टिड्डियों के हमले से प्रभावित हैं. सरकारी अधिकारियों के अनुसार टिड्डियों के हमले से तक़रीबन 3.70 लाख हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो चुकी है.

खेतों में उड़ती टिड्डियों के बीच किसान. (सभी फोटो: माधव शर्मा)
खेतों में उड़ती टिड्डियों के बीच किसान. (सभी फोटो: माधव शर्मा)

जयपुर: राजस्थान के बाड़मेर से करीब 70 किमी दूर धनाऊ गांव के रमज़ान खान ने पांच हेक्टेयर में जीरा और ईसबगोल की फसल बोयी हुई थी हालांकि वह इस फसल को काट नहीं पाए.

बीते दिसंबर महीने में टिड्डियों ने रमजान के खेत पर हमला किया और कुछ घंटों में ही उनके खेत की पूरी फसल चट कर गए. इसके बाद जनवरी में भी एक बार और टिड्डियों का हमला हुआ. इसमें रमजान की बची खुची-फसल भी नष्ट हो गई.

सरकार ने नुकसान का आकलन किया और 58 साल के रमज़ान को दो हेक्टेयर के नुकसान का 27 हजार रुपये मुआवजा दे दिया गया.

रमज़ान इस मुआवजा राशि से संतुष्ट नहीं हैं. कहते हैं, ‘मेरी पांच हेक्टेयर की खेती खराब हुई है. सरकार कहती है कि सिर्फ दो हेक्टेयर नुकसान का ही मुआवजा देने का प्रावधान है. इस हिसाब से मुझे सिर्फ 27 हजार रुपये मिले हैं. जो काफी नहीं है. मैंने फसल के लिए साहूकार से तीन रुपये सैकड़ा के हिसाब से एक लाख रुपये कर्ज लिया था. 27 हजार रुपये में तो हमारी मजदूरी भी नहीं निकल पाएगी.’

रमज़ान का कहना है, ‘पांच हेक्टेयर फसल का खर्च ही 70 हजार रुपये तक आता है. सरकार ने बहुत ही कम मुआवजा दिया है. इससे हम किसानों के बीज तक का खर्च नहीं निकल पा रहा.’

मुआवजे को लेकर शिकायत करने वाले रमज़ान अकेले किसान नहीं हैं. टिड्डों के हमले से प्रभावित उत्तर पश्चिम राजस्थान के सभी 11 जिलों के किसानों की यही पीड़ा है.

टिड्डियों के हमले से रबी की बुवाई कर चुके किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. खेतों में जीरा, इसबगोल, सरसों व गेहूं की खड़ी फसल की पत्तियों को टिड्डियों ने पत्तियों को चट कर दिया है.

हालत ये है कि टिड्डियों के हमले से फसल खराब होने के कथित सदमे की वजह से कम से कम दो किसानों की मौत भी हो चुकी है.

इतना ही नहीं सरकार की ओर से मिल रहा मुआवजा भी उनके लिए नाकाफी साबित हो रहा है.

आपदा राहत के नियमों के अनुसार सरकार किसानों को सिर्फ दो हेक्टेयर के नुकसान का मुआवजा दे रही है जबकि किसानों का कहना है कि इस सीमा को बढ़ाकर कम से कम पांच हेक्टेयर किया जाना चाहिए.

प्रदेश के आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग की ओर से 23 जनवरी तक 45 हजार किसानों को 75.98 करोड़ रुपये की सहायता राशि आपदा प्रभावित छह जिलों में भेजी है.

इसमें जालौर जिले को सबसे ज्यादा 28.96 करोड़ रुपये, जैसलमेर को 25.25 करोड़, बाड़मेर को 18.62 करोड़, बीकानेर को 2.16 करोड़, जोधपुर को 82 लाख रुपये और पाली जिले को 17 लाख रुपये की मुआवजा राशि भेजी गई है.

हालांकि टिड्डियों से उत्तर पश्चिम राजस्थान के प्रभावित जिलों की संख्या 11 है, लेकिन अब तक नुकसान के आकलन संबंधी रिपोर्ट नहीं आने के कारण सभी प्रभावित जिलों में मुआवजा नहीं भेजा जा सका है.

टिड्डियों से खेतों की रोकथाम के लिए खेतों में स्प्रे का छिड़काव किया जा रहा है.
टिड्डियों से खेतों की रोकथाम के लिए खेतों में स्प्रे का छिड़काव किया जा रहा है.

आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग के सचिव सिद्धार्थ महाजन ने बताया, ‘जिला कलक्टरों की ओर से अब तक की गिरदावरी (नुकसान आकलन) रिपोर्ट के अनुसार छह प्रभावित जिलों को यह राशि भेजी जा चुकी है. प्रति किसान दो हेक्टेयर का मुआवजा देने का ही प्रावधान है. हमारे पास जितनी भी राशि की डिमांड आई, हमने भेज दी है. यह राशि राज्य आपदा प्रबंधन फंड में से दी जा रही है.’

गौरतलब है कि राज्य आपदा प्रबंधन फंड में केंद्र का 75 प्रतिशत और राज्य का 25 प्रतिशत हिस्सा होता है. हालांकि इस राशि पर राज्यों को अधिकार होता है और भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार इसे खर्च किया जाता है.

बता दें कि इन दिनों उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के 11 जिले और गुजरात के कुछ क्षेत्र रेगिस्तानी टिड्डियों के हमले से गुजर रहे हैं. सरकारी अधिकारियों के अनुसार टिड्डी प्रभावित करीब 3.70 लाख हेक्टेयर खेती है, जबकि किसान संगठन यह आंकड़ा कहीं ज्यादा बता रहे हैं.

किसान कल्याण कोष की राशि से मुआवजा दे सरकार

राजस्थान के पूर्व कृषि मंत्री और भाजपा नेता प्रभूलाल सैनी राज्य की गहलोत सरकार पर किसानों के साथ धोखा देने का आरोप लगाते हैं.

सैनी कहते हैं, ‘जिस जगह पर खेती होती है वह राज्य सरकार की जिम्मेदारी में होती है. राज्य सरकार ने 2019-20 के बजट में एक हजार करोड़ रुपये के किसान कल्याण कोष की घोषणा की थी. उस कोष में से राज्य सरकार को किसानों को राहत देनी चाहिए.’

उनका कहना है, ‘जिन किसानों ने फसलों का बीमा कराया है उन्हें तत्काल प्रभाव से 25 प्रतिशत राशि का भुगतान करना चाहिए. अभी राज्य आपदा सहायता राशि में से मुआवजा दिया जा रहा है जो नाकाफी है. इसमें केंद्र का हिस्सा भी शामिल होता है. राज्य सरकार को भी अपनी तरफ से मुआवजा देना चाहिए तभी किसानों के नुकसान की भरपाई हो सकती है.’

राजस्थान के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया से किसानों के मुआवजे की समस्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा.

दूसरी ओर कृषि राज्य मंत्री भजनलाल जाटव ने पूरी जिम्मेदारी कटारिया पर डाल दी.

उन्होंने कहा, ‘इस मामले से संबंधित सारी बातें लालचंद कटारिया देख रहे हैं. मुआवजे से संबंधित सारी जानकारी वही अच्छे से बता पाएंगे. आप उन से बात कीजिए.’

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वहीं, भारतीय किसान संघ में जोधपुर डिवीजन के आंदोलन व प्रचार प्रमुख तुलछाराम सिंवर ने सरकार पर समय रहते प्रभावी कदम ना उठाने का आरोप लगाया है.

वे कहते हैं, ‘स्प्रे कर रही टीम खेतों में खड़ी फसल पर स्प्रे नहीं करती. उनका कहना है कि इससे फसल टिड्डियों के खाने योग्य नहीं रहेगी. ऐसे में किसानों ने अपने स्तर पर ही केमिकल स्प्रे अपने खेतों में कराया है. इस तरह केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दिया जा रहा मुआवजा किसानों के ट्रैक्टर के डीजल का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है.’

450 ट्रैक्टर, 90 स्प्रे वाहन ग्राउंड पर

टिड्डी नियंत्रण के लिए नोडल अधिकारी एवं राजस्थान कृषि विभाग में संयुक्त निदेशक (पौध संरक्षण) डॉ. सुआलाल जाट ने बताया, ‘अब तक लगभग 3.70 लाख हेक्टेयर जमीन को उपचारित किया चुका है. सबसे अधिक प्रभावित जैसलमेर जिले में दो लाख हेक्टेयर, बाड़मेर और बीकानेर में 1.6 लाख, गंगानगर जिले में पांच हजार हेक्टेयर, जालौर में 1500 हेक्टेयर, हनुमानगढ़ जिले में 800, नागौर जिले में 500, सिरोही और पाली में 400-400 हेक्टेयर और डूंगरपुर जिले में 50 हेक्टेयर जमीन को उपचारित किया जा चुका है.’

विभाग की 54 सर्वे टीम निगरानी व नियंत्रण के काम में लगी हैं और 45 माइक्रोनियर मशीनें नियंत्रण के काम में लगी हैं. 450 ट्रैक्टर स्प्रेयर के साथ काम में लगे हैं.

इसके अलावा प्रभावित जिलों में किसानों के सहयोग से हर दिन 400 से 450 ट्रैक्टरों की मदद से टिड्डी दलों को भगाने की कोशिश की जाती है, ताकि वे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा सकें. अब तक 2.60 लाख लीटर दवा (मेलाथियान) छिड़की जा चुकी है.’

वहीं, टिड्डी नियंत्रण संगठन (एलडब्ल्यूओ) के जोधपुर स्थित मुख्यालय में उपनिदेशक केएल गुर्जर ने कहा कि राजस्थान में टिड्डी दलों का यह हमला अपनी तरह का अब तक का सबसे बड़ा है. इससे पहले राजस्थान में 1993 में इस तरह का हमला हुआ था लेकिन प्रभावित इलाके के हिसाब से आंकड़ा इस बार पहले ज्यादा हो चुका है.

उन्होंने कहा कि ईरान सहित खाड़ी के अन्य देशों और पाकिस्तान में टिड्डी दल अब भी बड़ी संख्या में सक्रिय हैं. इनका ग्रीष्म प्रजनन सीजन शुरू होने वाला है, इसलिए खतरा बरकरार है.

64 देशों के तीन करोड़ वर्ग किमी क्षेत्र में रेगिस्तानी टिड्डियों का आक्रमण

रेगिस्तानी टिड्डियों का सबसे पहला हमला राजस्थान के जैसलमेर में 16 मई 2019 के बाद देखा गया. उस समय ये छितरी हुई अवस्था में थे. भारत सरकार के टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के अनुसार, मई 2019 में 246 जगहों पर सर्वे किया गया था, जिनमें से 46 स्थानों पर टिड्डी पाए गए थे. बीकानेर जिले के कुछ इलाकों में भी टिड्डी दल देखे गए थे.

बताया जा रहा है कि इससे पहले टिड्डियों का राजस्थान में इतना बड़ा हमला वर्ष 1993 में हुआ था.
बताया जा रहा है कि इससे पहले टिड्डियों का राजस्थान में इतना बड़ा हमला वर्ष 1993 में हुआ था.

पूरी दुनिया में रेगिस्तानी टिड्डी के प्रकोप से लगभग तीन करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित है. इतने क्षेत्र में उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीकन देश, अरब देशों, अरेबियन पेनिनसुला, दक्षिणी सोवियत रूस, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत सहित करीब 64 देश शामिल हैं.
सामान्य दिनों में जब इनका प्रभाव कम होता है तब भी ये 30 देशों के एक करोड़ 60 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाई जाती हैं.

भुखमरी की कगार तक पहुंचा सकते हैं टिड्डी

टिड्डी हमेशा से इंसानों के लिए अभिशाप की तरह ही रहे हैं. लाखों की संख्या में एक दल में रहने के कारण इनके खाने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है. कई हेक्टेयर फसलों को टिड्डी दल एक दिन में ही खत्म कर देते हैं.

औसतन टिड्डियों का एक छोटा झुंड एक दिन में दस हाथियों, 25 ऊंट या 2500 व्यक्तियों के बराबर खा सकता है. टिड्डी पत्ते, फूल, बीज, तने और उगते हुए पौधों को खाती हैं. टिड्डियों का प्रकोप कई साल तक भी रहता है.

ज्यादा मात्रा में खाने के कारण टिड्डी पूरे फसल चक्र को ही बर्बाद कर देते हैं. जिसके कारण उत्पादन कम होता है और भुखमरी तक की स्थिति आ जाती है.

1993 के बाद सबसे बड़ा टिड्डी हमला

भारत सरकार के टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के अनुसार, टिड्डियों का अब तक का सबसे बड़ा हमला 1993 में हुआ था. इस साल करीब 172 बार टिड्डियों के झुंडों ने फसलों और वनस्पति को नुकसान पहुंचाया.

विभाग ने 1993 में करीब 3.10 लाख हेक्टेयर भूमि का उपचारित किया था. इससे पहले 1964 से लेकर 1989 तक अलग-अलग साल में 270 बार टिड्डी दलों ने भारत का रुख किया था. इसमें 1968 में 167 बार टिड्डी दल राजस्थान और गुजरात में आए थे. हालांकि इस बार अब तक टिड्डियों को आना जारी है इसीलिए सही आंकड़ा अभी मौजूद नहीं है.

इस बार आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा नुकसान

टिड्डी प्रभावित क्षेत्रों में राजस्थान सरकार अब तक करीब 76 करोड़ रुपये का मुआवजा किसानों को दे चुकी है. हालांकि अभी नुकसान के आकलन की प्रक्रिया चालू है, इसीलिए मुआवजा राशि का आंकड़ा बढ़ेगा.

जाहिर है अब तक हुए टिड्डी हमलों में इस बार का हमला आर्थिक रूप से सबसे महंगा साबित होने जा रहा है.

केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1926-31 के टिड्डी चक्र के दौरान 10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. 1940-46 और 1949-55 के टिड्डी दलों के हमले के दौरान यह नुकसान दो करोड़ रुपये हुआ था.

1959-62 के आखिरी टिड्डी प्लेग चक्र पर 50 लाख रुपये का नुकसान हुआ था. इसके बाद 1978 में दो लाख और 1993 में करीब 7.18 लाख रुपये का नुकसान टिड्डियों के हमले से हुआ था.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)