आजकल रोज़गार उपलब्ध कराना एक शिगूफ़ा बन गया है. कोई भी बड़ा निवेशक जब कहीं निवेश करता है तो सबसे पहले यही बात करता है कि वो रोज़गार उपलब्ध कराएगा. होता कितना है ये पलट कर कभी नहीं देखा जाता.
भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘अच्छे दिनों’ के आने का दावा हवाई होकर रह गया. टेलीकॉम, ऑटोमोबाइल, निर्माण, कपड़ा उद्योग के बाद अब रिटेल सेक्टर पर भी रोज़गार का संकट पैदा होने लग गया है.
चंद दिन पहले दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेल कंपनी अमेज़न के मालिक जेफ़ बेज़ोस भारत आए थे और बड़े-बड़े दावे कर गए हैं कि छोटे और मंझोले उद्योगों के बढ़ावा देने के लिए भारत में 70 हज़ार करोड़ का निवेश करेंगे और जाते-जाते ये भी कह गए 2025 तक अमेज़न देश में 10 लाख रोज़गार के अवसर प्रदान करेगी.
आजकल रोज़गार उपलब्ध कराना एक शिगूफ़ा बन गया है. कोई भी बड़ा निवेशक-देशी या विदेशी जब कहीं निवेश करता है तो सबसे पहले यही बात करता है कि वो रोज़गार उपलब्ध कराएगा. होता कितना है ये पलट कर कभी नहीं देखा जाता. पर यहां तो क़िस्सा ही उल्टा हो गया.
इधर, बेज़ोस रोज़गार देने के वादे कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ़ किशोर बियानी का फ्यूचर ग्रुप, जिसके साथ अमेज़न ने क़रार किया है, ने लगभग 400 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया.
पिछले साल अमेज़न ने फ्यूचर ग्रुप में 7.3 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली फ्यूचर कूपंस को ख़रीदकर भारत में प्रवेश किया था. 6 जनवरी 2020 को दोनों कंपनियों के बीच एक और करार हुआ है.
समझौतों के तहत अमेज़न इंडिया एफआरएल (फ्यूचर रिटेल स्टोर लिमिटेड) स्टोरों के लिए अधिकृत ऑनलाइन बिक्री चैनल बन जाएगा और एफआरएल अमेज़न इंडिया मार्केटप्लेस और इसके कार्यक्रमों पर प्रासंगिक एफआरएल स्टोरों की भागीदारी सुनिश्चित करेगा.
कहा ये भी गया है कि समझौते से अमेज़न भारतीय ग्राहकों के लिए विकल्प और सुविधा को बढ़ाएगा और एफआरएल को पूरे चैनल में ग्राहकों के साथ जुड़ने में मदद करेगा.
दोनों संगठन ऑनलाइन बिक्री के संबंध में दक्षता की दिशा में काम करेंगे, परिचालन क्षमता प्राप्त करेंगे, और तकनीकी उत्कृष्टता पर सहयोग करेंगे. दोनों संगठन एक समर्पित टीम के माध्यम से काम करेंगे और वितरण, ग्राहक अधिग्रहण और विपणन के क्षेत्र में तालमेल का पता लगाएंगे.
किशोर बियानी इन दिनों विरोधाभास की स्थिति से गुज़र रहे हैं. फ़रवरी 2019 में बियानी कहते फिर रहे थे कि वो 1000 नए ईज़ी डे स्टोर खोलेंगे और वहीं नवंबर में उन्होंने फ्यूचर समूह की ईज़ी डे चेन के लगभग 160 स्टोर्स बंद कर दिए.
एक समय पर वो ऑनलाइन मॉडल को ये कहकर नकार रहे थे कि यहां हिंदुस्तान में ये मॉडल कम मर्गिन होने की वजह से सफल नहीं होगा और फिर अमेज़न को हिस्सेदारी बेच दी.
फ्यूचर समूह के एक अधिकारी ने बताया कि लोगों को नौकरी से निकाला जाना समूह के लिए अप्रत्याशित है. इसके पहले भी कंपनी पर संकट आए हैं पर तब भी कर्मचारियों को नहीं निकाला गया था.
वहीं, दूसरी तरफ़ कंपनी के अधिकारी कह रहे हैं कि रिस्ट्रक्चरिंग के तहत ऐसे पद जहां एक से अधिक कर्मचारी काम रहे थे, उन्हें निकाला गया है.
दरअसल बात ये भी है कि पूरे रिटेल सेक्टर में नौकरियां का संकट आने वाला है. वॉलमार्ट ने कुछ दिन पहले ही 100 उच्च अधिकारियों को चलता किया है. कंपनी ने घोषणा की है कि वो मुंबई के ऑपरेशंस भी बंद करने जा रही है.
ऑफ़लाइन रिटेल सेक्टर में हालात कुछ ठीक नहीं हैं. ऑफ़लाइन रिटेल सेक्टर को हम दो हिस्सों में बांट सकते हैं- किराना दुकानें और मॉडर्न ट्रेड. मॉडर्न ट्रेड की मुख्य कंपनियां हैं- रिलायंस रिटेल, फ्यूचर ग्रुप, लाइफस्टाइल, शॉपर्स स्टॉप आदि.
दुबई स्थित लैंडमार्क समूह, जो भारत में लाइफस्टाइल और मैक्स नाम से रिटेल स्टोर्स संचालित करता है, के एक दिल्ली ऑफिस के अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि रिटेल सेक्टर ‘डोमिनो प्रभाव’ से ग्रसित है जिसकी शुरुआत सउदी अरब में हुई थी. ये उस प्रक्रिया का नाम है जिसमें एक छोटी सी हलचल बढ़ते-बढ़ते विशाल रूप ले लेती है.
उदाहरण के लिए ताश के पत्तों की एक श्रृंखला में पत्तों को एक निश्चित नज़दीकी पर रखा जाए और फिर पहले पत्ते को हल्का सा धक्का मारकर गिरा दें, तो वो आगे वाले पत्तों के गिरने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा हर बार बढ़ती जाती है जिससे श्रृंखला ढह जाती है.
वो बताते हैं कि 2017-18 में सउदी अरब में बेरोज़गारी की दर 12 प्रतिशत हो गई थी. सउदी सरकार ने स्थानीय नौकरियों में देश के लोगों को प्राथमिकता देने के लिहाज़ से कुछ सेक्टर्स में विदेशी बनाम देशी कर्मचारियों पर 25-75 का अनुपात लागू कर दिया. रिटेल सेक्टर भी उनमें से एक था. इसका नतीजा ये हुआ कि बड़ी संख्या में वहां काम करने वाले भारतीयों को देश वापस आना पड़ा.
इस वजह से भारत के रिटेल सेक्टर में कर्मचारियों की ओवर-कैपेसिटी हो गई. दूसरी तरफ़ भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी का सबसे बड़ा कारण कंज़्यूमर डिमांड का कम होना है. इसका सीधा-सीधा असर सबसे पहले रिटेल सेक्टर पर पड़ा है. तीसरा सबसे बड़ा कारण है ऑनलाइन बिज़नेस मॉडल जो ऑफ़लाइन पर भारी पड़ रहा है.
देश में इस वक़्त रिटेल का बाज़ार अपने शैशवावस्था से बाहर निकल चुका है. नई रिटेल एफडीआई नीति ने आग में घी का काम किया है. नई नीति के तहत अब कोई विदेशी कंपनी अपना स्टोर खोलने के लिए 100 फीसदी पूंजी लगा सकती है पर उसे सिर्फ अपना ही ब्रांड बेचने की इजाज़त है.
वहीं मल्टीब्रांड रिटेल स्टोर्स की चेन के लिए अब भी 51 फीसदी तक ही विदेशी भागीदारी संभव है. हां, पर ई-कॉमर्स की कंपनियों के व्यवसाय में ऐसा कोई नियम नहीं था. इसलिए वॉलमार्ट और अमेज़न भारत में बड़े स्तर आ रही हैं.
माना जा रहा है कि वॉलमार्ट, अमेज़न, अलीबाबा जैसी कंपनियों का अब बाज़ार पर काबिज़ होना महज़ कुछ सालों की बात है.
दूसरी तरफ़ रिटेल का बाज़ार बदल रहा है. अब ऑनलाइन या ऑफ़लाइन रिटेल नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई है. अब सिर्फ रिटेलिंग और ग्राहक है. हर बड़ी कंपनी जो ऑफ़लाइन थी, अब ऑनलाइन है. वॉलमार्ट इसकी बानगी है. दूसरी तरफ़ ऑनलाइन कंपनियां शटर वाली (ब्रिक एंड मोर्टार) दुकानें खोल रहीं हैं. अमेज़न ने ये कर दिखाया है.
बियानी भी ‘फ़ीजीटल’ की बात कर रहे हैं, जहां वो ऑफ़लाइन और ऑनलाइन बिज़नस मॉडल को एकीकृत कर रहे हैं. पर शटर वाली दुकानों पर ग्राहक कम आ रहे हैं, वो ज़्यादातर समय ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं.
यही कारण है कि वॉलमार्ट या फ्यूचर ग्रुप अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रही हैं और आशंका ये है कि अन्य मॉडर्न ट्रेड वाली कंपनियां भी ऐसा कर सकती हैं.
अब रही बात कि अमेज़न तो भारत के छोटे और मंझोले व्यापारियों के लिए 70 करोड़ निवेश कर रही है. इसके तहत कंपनियां अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों तक पहुंचा पाएंगी. इसका सीधा-सीधा प्रभाव छोटी दुकानों पर पड़ेगा. हालांकि जानकर कह रहे हैं भारतीय रिटेल बाज़ार का आकार बहुत बड़ा है.
जानकारों का मानना है कि आने वाले आठ सालों में भारतीय रिटेल बाज़ार का आकार लगभग 13 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. यानी वह दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक होगा.
इसमें ऑनलाइन मॉडल किराना दुकानों पर असर नहीं डाल पाएंगी क्योंकि फ़िलहाल मॉडर्न ट्रेड और ऑनलाइन व्यापार कुल रिटेल व्यापार का सिर्फ़ 12 प्रतिशत ही है. उनके मुताबिक इस सेक्टर पर मंदी के बादल हटते ही बहार आ जाएगी. फ़िलहाल तो ऐसा होता नहीं लग रहा है और आशंका ये है कि नौकरियों का संकट आने वाले दिनों में गहराने वाला है.