इंदिरा ने गोवध पर रोक के लिए समिति बनाई थी, गोलवरकर की सदस्यता वाली समिति ने नहीं दी रिपोर्ट

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश की नई किताब ‘इंदिरा गांधी: अ लाइफ इन नेचर’ का नई दिल्ली में विमोचन हुआ.

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भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश की नई किताब ‘इंदिरा गांधी: अ लाइफ इन नेचर’ का नई दिल्ली में विमोचन हुआ.

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ज़िंदगी पर आधारित जयराम रमेश की किताब के विमोचन के अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कर्ण सिंह मौजूद रहे.

नई दिल्ली: गोवध का मुद्दा आज ही नहीं बल्कि 50 साल पहले भी विवादास्पद था और भगवाधारी साधुओं द्वारा संसद पर हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गोवध पर रोक के संबंध में एक राष्ट्रीय क़ानून पर विचार करने के लिए एक समिति गठित की थी जिसके सदस्यों में तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवरकर भी थे.

गांधी परिवार के करीबी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित अपनी नई किताब ‘इंदिरा गांधी: अ लाइफ इन नेचर’ में वर्णन किया है कि सात नवंबर 1966 को संसद पर साधुओं के हमले के बाद पैदा संकट को ख़त्म करने के लिए किस प्रकार गोलवरकर को समिति का सदस्य नियुक्त किया गया. गोलवरकर 30 साल से भी अधिक समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च नेता थे.

उस समिति के सदस्यों में शंकराचार्यों सहित कई महत्वपूर्ण हिंदू नेता भी शामिल थे. उस समिति का 12 साल तक अस्तित्व बना रहा लेकिन वह कोई रिपोर्ट नहीं दे सकी.

रमेश ने अपनी किताब में लिखा है, ‘29 जून को इंदिरा गांधी ने गोवध पर प्रतिबंध के एक राष्ट्रीय कानून के संपूर्ण मुद्दे पर गौर करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की. देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एके सरकार समिति के प्रमुख थे और उसके सदस्यों में डॉ. पी. कुरियन जैसे विशेषज्ञ भी थे.

उन्होंने लिखा है, उच्चस्तरीय समिति को रिपोर्ट सौंपने के लिए छह महीने का समय दिया गया था. इसकी बैठक 12 साल तक होती रही और 1979 में इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी ने समिति को भंग कर दिया. समिति ने अपनी रिपोर्ट कभी नहीं सौंपी.

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(फोटो: पीटीआई)

रमेश के अनुसार साधुओं का हमला बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पहला संकट था.

उन्होंने पहले संकट का सामना गाय को लेकर नवंबर 1966 में किया जब साधुओं ने संसद पर हमला किया, लोगों की मौत हुई और गृह मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा.

रमेश की पुस्तक का शनिवार को नई दिल्ली में हुए एक समारोह में विमोचन किया गया. इस मौके पर रमेश ने कहा, ‘इंदिरा गांधी ने गोवध पर राष्ट्रीय प्रतिबंध के मुद्दे पर विचार के लिए एक समिति का गठन किया. संकट को समाप्त करने के लिए, समिति के महत्वपूर्ण सदस्यों में से शंकराचार्यों के अलावा एमएस गोलवरकर भी थे.’

इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राज्यसभा सदस्य कर्ण सिंह भी मौजूद थे. इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी मोरारजी देसाई ने 1979 में समिति को भंग कर दिया था.

कर्ण सिंह उस समय इंदिरा गांधी कैबिनेट में मंत्री थे. उन्होंने घटनाक्रम को स्वीकार करते हुए कहा, यह सही है. समिति ने अपनी रिपोर्ट कभी नहीं सौंपी.

इंदिरा गांधी की जन्मशती पर साइमन एंड चेस्टर द्वारा प्रकाशित किताब के अनुसार सात नवंबर 1966 को संसद पर एक अनोखा हमला हुआ. हज़ारों साधुओं ने गोवध पर तत्काल रोक की मांग करते हुए संसद पर हमला किया. उनमें कई भगवाधारी थे और कई नगा साधु भी थे.

पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी थी और कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी थी। इंदिरा गांधी ने तुरंत ही गृह मंत्री गुलज़ारीलाल नंदा से इस्तीफा ले लिया था, माना जाता था कि नंदा की सहानुभूति आंदोलनकारियों के साथ थी.

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