द वायर द्वारा प्राप्त किए गए कृषि मंत्रालय के आंतरिक गोपनीय दस्तावेज़ों से पता चलता है कि सरकार ख़ुद ये स्वीकार करती है कि अधिक एमएसपी किसानों को कीमतों में उतार-चढ़ाव की स्थिति से निकालने के लिए ज़रूरी है. हालांकि इसके बावजूद केंद्र पिछले कई सालों से लागत का डेढ़ गुना दाम देने की मांग को दरकिनार करती आ रही है.
नई दिल्ली: किसानों को उनके उपज का सही मूल्य दिलाने वाली दो प्रमुख योजनाओं के बजट में इस साल बड़ी कटौती और राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री द्वारा संसद में लागत का डेढ़ गुना दाम देने के दावों के बाद एक बार फिर से किसानों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने को लेकर बहस शुरु हो गई है.
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में ये दावा किया था कि वे फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम देंगे. लेकिन साल 2015 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि वे लागत का डेढ़ गुना दाम एमएसपी के रूप में नहीं दे सकते हैं क्योंकि इससे ‘बाजार में विकृति’ आ जाएगी.
हालांकि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा कर रहे हैं कि किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जा रहा है. मोदी के दावे को झूठा बताते हुए कई कृषि विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने कहा कि C2 लागत पर डेढ़ गुना एमएसपी तय करने की बात हो रही थी लेकिन सरकार A2+FL लागत के मुकाबले एमएसपी बढ़ाकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक लागत का डेढ़ गुना दाम देने का दावा कर रही है, जो कि गलत है.
A2+FL लागत में सभी कैश लेनदेन और किसान द्वारा किए गए भुगतान समेत परिवार श्रम मूल्य शामिल होता है. इसमें पट्टे पर ली गई भूमि का किराया मूल्य भी शामिल होता है.
वहीं C2 में A2+FL लागत के साथ-साथ खुद की भूमि का किराया मूल्य और खुद की पूंजी पर ब्याज भी शामिल होता है. इस तरह अगर C2 लागत के आधार पर तय की गई एमएसपी A2+FL लागत के मुकाबले काफी अधिक होती है.
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र ने कहा था कि केंद्रीय लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) कई चीजों को ध्यान में रखते हुए एमएसपी की सिफारिश करता है. इसलिए अगर एमएसपी के लिए फसल की लागत पर 50 फीसदी अधिक का मूल्य तय किया जाता है तो यह बाजार को बिल्कुल अस्त-व्यस्त कर देगा.
केंद्र सरकार आमतौर पर C2 लागत पर डेढ़ गुना एमएसपी तय नहीं करने को लेकर यही तर्क देती आई है. हालांकि द वायर द्वारा प्राप्त किए गए कृषि मंत्रालय के आंतरिक गोपनीय दस्तावेजों से पता चलता है कि सरकार खुद ये स्वीकार करती है कि एमएसपी बढ़ाने और बाजार में उथल-पुथल या विकृति को लेकर कोई सीधा संबंध सिद्ध नहीं हो पाया है.
प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने कहा था कि एमएसपी बढ़ाने से निर्यात पर काफी प्रभाव पड़ सकता है और यह विश्व व्यापार संगठन के प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन होगा. हालांकि कृषि मंत्रालय ने इन तर्कों को खारिज कर दिया था.
पिछले साल तीन जुलाई को कैबिनेट ने 2019-20 सीजन के खरीफ फसलों की एमएसपी को मंजूरी दी थी, जिसमें 2018-19 सीजन की तुलना में धान की एमएसपी में 3.7 फीसदी, ज्वार में 4.9 फीसदी, बाजरा में 2.6 फीसदी, मक्का में 3.5 फीसदी, मूंग में 1.1 फीसदी, उड़द में 1.8 फीसदी, कपास में 2.0 फीसदी की मामूली वृद्धि की गई थी.
इस संबंध में कैबिनेट की बैठक से पहले एमएसपी बढ़ाने के इस प्रस्ताव को केंद्र के कई विभागों और राज्य सरकारों के पास भेजा गया था.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा तीन जून 2019 को भेजे गए पत्र का जवाब देते हुए उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने लिखा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के बढ़ते स्तर की वजह से अंतरराष्ट्रीय मूल्य बढ़ने से निर्यात काफी प्रभावित हो सकता है.
मंत्रालय के उपभोक्ता मामले विभाग ने लिखा, ‘एमएसपी के बढ़ते स्तर की वजह से अधिक उत्पादन के मामले में अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में निर्यात प्रभावित हो सकता है. इसकी वजह से सरकार के पास भारी मात्रा में कृषि उत्पाद जमा हो सकते हैं, जिसका निपटारा करना काफी मुश्किल हो सकता है.’
हालांकि इसका जवाब देते हुए कृषि मंत्रालय ने इस तर्क से सहमति नहीं जताई और कहा कि अधिक एमएसपी किसान को ‘मकड़जाल’ यानी कीमतों में उतार-चढ़ाव की स्थिति से निकालने के लिए जरूरी है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा, ‘थोक मूल्य मांग और आपूर्ति की स्थिति से निर्धारित होते हैं. किसानों द्वारा सामना की जाने वाली ‘मकड़जाल’ (कॉब-वेब) की समस्या यानी कि कीमतों में उतार-चढ़ाव को कम करने और उपभोक्ताओं के लिए कीमतों को स्थिर करने के लिए उच्चतर एमएसपी और पर्याप्त खरीद आवश्यक है.’
मंत्रालय ने आगे कहा, ‘कुछ फसलों का थोक मूल्य एमएसपी के नीचे रहता है जो ये दर्शाता है कि हाल के सालों में खाद्यान का बंपर उत्पादन हुआ है. इसके लिए किसानों को प्रोत्साहन के रूप में अधिक एमएसपी दी जानी चाहिए और दलहन जैसी फसलों के लिए बोनस दिया जाना चाहिए, जिसके उपभोक्ता मांग में काफी कमी आई थी जब खाद्य मुद्रास्फीति दोहरे अंक में थी और कुल मिलाकर मुद्रास्फीति कंफर्ट जोन में थी.’
मालूम हो कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों से हमेंशा कहती रही है कि वे किसी भी कृषि उत्पाद पर एमएसपी से ऊपर बोनस न दें, लेकिन खुद केंद्रीय मंत्रालय का ये कहना है कि बोनस दिया जाना चाहिए.
मंत्रालय ने कहा कि मात्र सरकार द्वारा खरीफ फसलों के लिए प्रस्तावित बढ़ी हुई एमएसपी से उपभोक्ता मूल्य पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा. कुल मुद्रास्फीति को टार्गेट के अंदर रखने में खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में कृषि मूल्य नीतियों का महत्वपूर्ण योगदान है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा, ‘अगर पर्याप्त या अधिक उत्पादन के बाद भी मुद्रास्फीति बढ़ती है तो इसके लिए कृषि उत्पादों के बाजार के नियामकीय तंत्र जिम्मेदार हैं.’
वहीं केंद्र के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 14 जून 2019 की तारीख में भेजे अपने पत्र में कृषि मंत्रालय से कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते समय विश्व व्यापार संगठन से किए गए वादों का जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि भारत जैसे विकासशील देशों में किसी फसल के लिए बाजार मूल्य समर्थन इसके उत्पादन के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है.
मंत्रालय ने कहा, ‘एमएसपी के तहत किसी भी तरह की खरीद पर घरेलू समर्थन पर विश्व व्यापार संगठन की नियमें लागू होती हैं. ये समर्थन उत्पाद विशेष होता है और इसे व्यापार-विकृत माना जाता है.’
हालांकि इस पत्र का जवाब देते हुए कृषि मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ने और निर्यात में गिरावट में कोई सीधा संबंध नहीं है. मंत्रालय ने कहा, ‘कृषि उत्पादों का निर्यात जीडीपी के साथ वैश्विक कृषि वृद्धि, उत्पाद की गुणवत्ता, विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) आदि समेत कई चीजों पर निर्भर करता है. ‘
डब्ल्यूटीओ की कार्य प्रणाली के मुताबिक किसी भी उत्पाद को तब व्यापार में विकृत लाने वाला समर्थन प्राप्ति के रूप में माना जाता है जब उसकी एमएसपी निश्चित ‘बाहरी संदर्भ मूल्य’ (ईआरपी) से ज्यादा होता है, जिसे 1986-88 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के औसत के रूप में लिया गया था.
वाणिज्य विभाग ने कहा, ‘ऐसे उत्पादों का समर्थन मूल्य इसके उत्पादन के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है, या इसके अंदर रखा जाना चाहिए.’
इसका जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा कि जहां तक डब्ल्यूटीओ के प्रतिबद्धताओं का सवाल है, इसके लिए समर्थन मूल्य निर्धारित करते वक्त ‘मुद्रास्फीति’ और ‘उत्पादन के मुकाबले की गई खरीदी’ को ध्यान में रखा जाना चाहिए. कृषि मंत्रालय ने कहा, ‘इन मानकों का पालन करते हुए कुल समर्थन उत्पादन के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत से दायरे के भीतर ही होगा.’
इसके अलावा वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने भी 17 जून 2019 को भेजे अपने पत्र में एमएसपी पर लगाम लगाने की वकालत की थी. मंत्रालय ने कहा था कि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एमएसपी का इस्तेमाल करना बंद किया जा सकता है.
हालांकि कृषि मंत्रालय ने यहा भी कहा कि अधिक एमएसपी और पर्याप्त खरीदी किसानों को मूल्य के उतार-चढ़ाव की समस्या से निकालने के लिए जरूरी है.
साल 2011 में स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग वाली याचिका दायर करने वाले कृषि संगठन कंसोर्सियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार चेंगल रेड्डी ने कहा कि इससे पता चलता है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया है.
रेड्डी ने द वायर से कहा, ‘अगर कृषि मंत्रालय का खुद ये मानना है कि एमएसपी में बढ़ोतरी और निर्यात में कमी के बीच सीधा संबंध नहीं है तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दायर क्यों कहा कि एमएसपी लागत का 50 फीसदी करने पर बाजार में विकृति है. ये पूरी तरह से न्यायालय को गुमराह करना है.’
C2 लागत के मुकाबले एमएसपी तय नहीं करने को लेकर कृषि विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने भी चिंता जाहिर की है. स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय हमेशा से किसान विरोधी नीति अपनाते आई है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार कहती है कि उन्होंने एमएसपी डेढ़ गुना कर दिया है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. लेकिन इससे बड़ा स्कैंडल ये है कि इन्होंने जितनी भी एमएसपी तय की है, वो हकीकत में मिलती ही नहीं है. सरकार के खुद का आंकड़ा ये कहता है.’
मालूम हो कि इस बार के बजट में एमएसपी दिलाने वाली दो प्रमुख योजनाओं पीएम-आशा और एमआईएस-पीएसएस के बजट में बड़ी कटौती की गई है.
वहीं कृषि मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने कहा कि सरकार द्वारा ये कहना कि एमएसपी बढ़ाने से बाजार में विकृति आएगी, ये बिल्कुल बकवास बात है. कॉर्पोरेट सेक्टर को इतनी सब्सिडी दी जा रही है तो क्या किसानों की थोड़ी भी मदद नहीं की जा सकती है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने जनता से वादा किया था, उसे पूरा करने के लिए आपको रास्ता निकालना चाहिए. सरकार बुलेट ट्रेन में लाखों करोड़ों रुपये खर्च करने में दिक्कत नहीं देखती है लेकिन किसानों को एमएसपी देने में उन्हें परेशानी है.’