सीएए की फाइलों को सार्वजनिक करने से गृह मंत्रालय का इनकार, कहा- विदेशी रिश्ते खराब हो जाएंगे

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने न सिर्फ बोगस आधार पर नागरिकता संशोधन कानून से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से मना किया बल्कि सूचना देने के लिए आरटीआई एक्ट, 2005 में तय की गई समयसीमा का भी उल्लंघन किया.

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नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने न सिर्फ बोगस आधार पर नागरिकता संशोधन कानून से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से मना किया बल्कि सूचना देने के लिए आरटीआई एक्ट, 2005 में तय की गई समयसीमा का भी उल्लंघन किया.

नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: वीकिमीडिया कॉमन्स)
नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: वीकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: अमित शाह की अगुवाई वाला केंद्रीय गृह मंत्रालय विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने और इस कानून पर उठ रहे सवालों का जवाब देने से लगातार इनकार कर रहा है.

द वायर द्वारा इसे लेकर दायर किए गए कई सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदनों पर गृह मंत्रालय ने बोगस आधार पर जवाब देने से मना कर दिया और कुछ मामलों में सूचना देने के लिए आरटीआई एक्ट, 2005 में तय की गई समयसीमा का भी उल्लंघन किया.

उदाहरण के तौर पर, 25 दिसंबर 2019 को दायर किए गए आरटीआई आवेदन में हमने नागरिकता संशोधन विधेयक को कैबिनेट से पास कराने से जुड़ी फाइलों के बारे में जानकारी मांगी थी. विशेष रूप से हमने उन सभी दस्तावेजों, रिकॉर्ड्स, फाइल नोटिंग्स, पत्राचार की प्रति मांगी थी जिसके आधार पर इस विधेयक को तैयार किया था.

हालांकि गृह मंत्रालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने 29 फरवरी को भेजे अपने जवाब में जानकारी देने से मना कर दिया. जोशी ने दलील दी कि अगर ये जानकारी सार्वजनिक की जाती है तो इससे विदेशी राज्यों के साथ भारत के संबंध खराब हो सकते हैं.

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गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में लिखा, ‘ये फाइलें विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने की नीतियों से जुड़ी हुई हैं. ऐसी जानकारी का खुलासा करने से विदेशी राज्यों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं. इसलिए आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 8(1)(अ) के तहत इस जानकारी का खुलासा करने से छूट प्राप्त है.’

द वायर द्वारा एक अन्य आरटीआई दायर कर नागरिकता संशोधन बिल को कैबिनेट से पास कराने से जुड़ी सभी फाइलों का निरीक्षण (इंस्पेक्शन) करने की मांग पर भी गृह मंत्रालय ने यही जवाब दिया. हफपोस्ट इंडिया ने भी रिपोर्ट कर बताया है कि उन्होंने आरटीआई दायर कर ये जानकारी मांगी थी लेकिन उन्हें हूबहू इसी तरह के शब्दों में जवाब दिया गया.

आरटीआई कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी का कहना है कि जनसूचना अधिकारी को विस्तार से ये जरूर बताया चाहिए कि किस तरह ऐसी जानकारी का खुलासा करने से विदेशों के साथ रिश्ते खराब होंगे.

गांधी ने कहा, ‘जन सूचना अधिकारी ने कोई उचित कारण नहीं बताया है कि किस तरह से ये जानकारी किसी को नुकसान पहुंचा सकती है. दूसरी तरफ ये स्पष्ट है कि अगर जनता को ये जानकारी मिलती है कि किस आधार पर कैबिनेट ने इस विधेयक को पारित करने का फैसला लिया था, तो यह एक बेहतर और सार्थक लोकतंत्र का निर्माण करने में मदद करेगा और अंतत: आम जनता की जरूरतें पूरी होंगी.’

इसी तरह साल 2019 में केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने एक आदेश में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा सूचना न देने के लिए धारा 8 का उल्लेख करने के फैसले को इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि सीपीआईओ ने ऐसा करने का कोई कारण नहीं बताया था.

सूचना आयुक्त दिव्य प्रकाश सिन्हा ने अपने फैसले में लिखा, ‘सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत सूचना देने से छूट प्राप्त धाराओं का मनमाने तरीके से उल्लेख करना गलत प्रचलन को बढ़ावा देता है.’

यदि सीपीआईओ धारा 8(1)(अ) का सहारा लेकर जानकारी देने से मना करता है तो उसकी जिम्मेदारी बनती है वे फाइलों के उस हिस्से को सार्वजनिक करें जो किसी छूट के दायरे में नहीं आता है. ये काम फाइल के उस हिस्से को ‘काला करके’ किया जा सकता है जो छूट के दायरे में है.

जाने-माने पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और मौजूदा समय में बेनेट यूनिवर्सिटी के डीन एम. श्रीधर आचार्युलु का कहना है कि जनसूचना अधिकारी को ‘पृथक्करण का सिद्धांत’ को अपनाना चाहिए था और ऐसी जानकारी दी जानी चाहिए थी जो कि धारा 8(1)(a) के तहत नहीं आती है.

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आरटीआई एक्ट की धारा 10 के मुताबिक अगर किसी फाइल या सूचना का कोई हिस्सा छूट प्राप्त धाराओं की श्रेणी में आता है तो उतने हिस्से को हटाकर या उस हिस्से को ‘काला करके’ बाकी की सारी जानकारी आवेदक को दी जानी चाहिए.

इसके अलावा गृह मंत्रालय का ये तर्क भी सवालों के घेरे में है कि भारत विदेशी राज्यों के साथ रिश्ते खराब करना नहीं चाहेगा. गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद से लेकर अपनी रैलियों में कई बार ये कहा है कि चूंकि पाकिस्तान, अफगानिस्ता और बांग्लादेश में गैर-मुस्लिमों को काफी प्रताड़ना सहना पड़ रहा है इसलिए नागरिकता संशोधन कानून के तहत उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी.

जनवरी में सीएए का बचाव करते हुए मोदी ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित अत्याचारों के खिलाफ न बोलने के लिए विपक्षी दलों को निशाने पर लिया था. उन्होंने कहा, ‘हर देशवासी का एक सवाल है कि लोग पाकिस्तान के खिलाफ क्यों नहीं बोलते हैं, बल्कि रैली निकालते हैं? पाकिस्तान की स्थापना धार्मिक आधार पर की गई है, जिसके कारण अल्पसंख्यकों जैसे कि हिंदू, सिख, जैन और ईसाई पर अत्याचार बढ़े हैं. लेकिन कांग्रेस और उनके सहयोगी पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बोलते.’

नरेंद्र मोदी ने विवादित नागरिकता संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को सलाह दी और इसमें भी उन्होंने पाकिस्तान की आलोचना की. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अगर आपको प्रदर्शन करना है तो पाकिस्तान में पिछले 70 सालों में हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाइए. अब पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब करने की जरूरत है.’

अमित शाह ने भी सीसीए के संबंध में कहा था कि धर्म के आधार पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के आधार पर ‘करोड़ों लोगों की हत्या की गई है.’

यह आरोप लगाते हुए कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों की संख्या में गिरावट आई है, शाह ने कहा, ‘वे कहां गए? वे या तो मारे गए, परिवर्तित हुए या शरणार्थी के रूप में भारत आए. ये अंधे लोग यह नहीं देख सकते हैं कि करोड़ों लोगों पर अत्याचार किया गया था.’

हाल ही में भारत सरकार ने यह भी कहा कि सीएए एक ‘भारत का आंतरिक मामला’ है और ‘किसी भी विदेशी पार्टी के पास भारत की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों पर कोई नियंत्रण नहीं है.’ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख द्वारा नागरिकता संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए आवेदन पर भारत के विदेश मंत्रालय ने ये जवाब दिया था.

संयुक्त राष्ट्र ने कई मौकों पर कहा है कि सीएए मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण है और यह भारत द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत की गई प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करता है.

इस तरह एक तरफ भारत सरकार ने यह कहकर विदेशी हस्तक्षेप से बचने की कोशिश की है कि मामला आंतरिक है, दूसरी ओर विदेशी राज्यों के साथ संबंध खराब होने का हवाला देकर विधेयक से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया.

द वायर द्वारा दायर किए गए दो अन्य आरटीआई आवेदनों पर गृह मंत्रालय ने जानकारी देने के लिए आरटीआई एक्ट में तय की गई समयसीमा का उल्लंघन किया है. हमने पूछा था कि धार्मिक उत्पीड़न की वजह से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बाग्लादेश से आए लोगों की संख्या कितनी है.

एक अन्य सवाल में हमने पूछा था कि इन देशों से आए कितने लोगों को लंबे अवधि वाला वीजा (लॉन्ग टर्म विजा) दिया गया है. इन सवालों के साथ 23 दिसंबर 2019 को आरटीआई आवेदन दायर किया गया था. गृह मंत्रालय ने करीब डेढ़ महीने बाद चार फरवरी 2020 को जवाब दिया और कहा कि ये मामला इमिग्रेशन ब्यूरो से जुड़ा हुआ है और इसे आरटीआई एक्ट की धारा 6(3) के तहत वहां ट्रांसफर किया जाता है.

कानून के मुताबिक अगर जनसूचना अधिकारी को लगता है कि विषय किसी अन्य विभाग से जुड़ा है तो पांच दिन के भीतर धारा 6(3) के तहत उस संबंधित विभाग को आरटीआई ट्रांसफर कर दी जानी चाहिए. हालांकि यहां स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि गृह मंत्रालय ने इसका भी उल्लंघन किया है.

द वायर ने यहां पर उल्लेख किए गए सभी मामलों में प्रथम अपील दायर कर दिया है.