द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कृषि मंत्रालय ने कहा था कि चूंकि पीएम-किसान योजना के तहत पूरी राशि ख़र्च नहीं हो पा रही है, इसलिए जो राशि बच गई है उसे अन्य योजनाओं के इस्तेमाल में लाया जा सकता है. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया था.
नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में केंद्र की मोदी सरकार ने कई बार दावा किया कि उनकी सरकार में किसानों को उत्पाद का उचित दाम मिल रहा है और केंद्र इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कृषि मंत्रियों, केंद्रीय वित्त मंत्री एवं भाजपा नेताओं ने राजनीतिक रैलियों से लेकर संसद तक में ये बात कही.
हालांकि मोदी सरकार का ये दावा आधिकारिक फाइलों में दर्ज केंद्र की वास्तिक कोशिशों पर खरा नहीं उतरता है. हकीकत ये है कि किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के लाई गईं दो प्रमुख योजनाओं का बजट बढ़ाने की सिफारिश की गई थी लेकिन वित्त मंत्रालय ने इन योजनाओं का बजट पिछले साल के बजट से भी कम रखा.
वहीं कृषि मंत्रालय ने पीएम-किसान जैसी योजना का बजट कम करने को कहा था क्योंकि इसके तहत पूरे पैसे खर्च नहीं हो पा रहे थे, लेकिन वित्त मंत्रालय ने सिफारिश की गई राशि से काफी ज्यादा का बजट इसके लिए तय किया.
इसके अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कृषि लोन पर ब्याज सब्सिडी, कल्याणकारी योजनाओं के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को दालों का वितरण का भी बजट बढ़ाने की मांग की गई थी, लेकिन सरकार ने इनका बजट कम रखना जरूरी समझा.
द वायर द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त दस्तावेजों से इसका खुलासा हुआ है.
गेहूं, धान और मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा और मक्का) के अलावा अन्य कृषि उत्पादों क्रमश: दालें, तिलहन और कोपरा की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदी और उसके भंडारण के लिए दो प्रमुख योजनाओं- बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन प्रणाली (एमआईएस-पीएसएस) तथा प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) के बजट में इस बार भारी कटौती की गई है.
आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए एमआईएस-पीएसएस योजना का बजट 14,337 करोड़ रुपये तय करने की सिफारिश की थी, जो कि पिछले साल के 3,000 करोड़ रुपये के बजट के मुकाबले 11,337 करोड़ रुपये अधिक है. साथ ही वित्त वर्ष 2019-20 के लिए योजना के बजट को बढ़ाकर 8301.55 करोड़ रुपये करने की मांग थी. इसके अलावा पीएम-आशा योजना का बजट 1,500 करोड़ रुपये तय करने की मांग की गई थी.
हालांकि वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग ने इन मांगों को खारिज कर दिया और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए एमआईएस-पीएसएस योजना का बजट मात्र 2000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा का बजट सिर्फ 500 करोड़ रुपये ही रखा. इसके अलावा एमआईएस-पीएसएस के लिए मौजूदा वित्त वर्ष का संशोधित बजट भी कृषि विभाग की मांग के उलट 2010.20 करोड़ रुपये ही रखा.
ये बजट पिछले साल दी गई राशि से भी काफी कम है. वित्त वर्ष 2019-20 में एमआईएस-पीएसएस के तहत 3,000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा के तहत 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
खास बात ये है कि कृषि मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कहा था कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत आवंटित 75,000 करोड़ रुपये में से काफी राशि बच गई है, जिसे अन्य जरूरी योजनाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया.
दस्तावेजों से पता चलता है कि पूरी राशि खर्च न होने के चलते कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पीएम-किसान योजना का बजट घटाकर 60,180 करोड़ रुपये करने की सिफारिश की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने कृषि विभाग की सिफारिशों को खारिज करते हुए बजट पिछले साल के बराबर 75,000 करोड़ रुपये रखा.
मालूम हो कि द वायर ने अपनी पिछली कई रिपोर्टों में बताया है कि किस तरह पीएम-किसान योजना का इतना बजट एक साल के भीतर खर्च कर पाना संभव नहीं है.
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पास ये स्पष्ट आंकड़ा नहीं है कि भारत में कुल कितने किसान हैं. पीएम-किसान योजना के तहत एक साल में 2000-2000 रुपये की तीन किस्त में किसानों के खाते में 6000 रुपये डालने का प्रावधान है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बजट विभाग के सीनियर सांख्यिकी अधिकारी श्याम लाल द्वारा 25 अक्टूबर 2019 को वित्त मंत्रालय को भेजे गए पत्र में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 1,55,325.70 करोड़ रुपये की मांग की गई थी, जो कि पिछले साल के मुकाबले 25,465.15 करोड़ रुपये अधिक है. इसके अलावा मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2019-20 का बजट संशोधित करके 1,29,860.55 करोड़ रुपये करने की मांग की गई थी.
हालांकि कृषि मंत्रालय के इन मांगों की विपरीत काफी कम बजट स्वीकृत हुआ.
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के तत्कालीन सचिव अतनु चक्रवर्ती की अध्यक्षता में आठ नवंबर 2019 को एक बैठक हुई थी, जिसमें कृषि मंत्रालय के बजट निर्धारण का फैसला किया गया था. इस बैठक में कृषि मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एवं वित्तीय सलाहकार ने कुछ विशेष योजनाओं का बजट बढ़ाने की मांग पर विस्तार से पावर पॉइंट प्रजेंटेशन दिया था.
इस मीटिंग की एक फाइल नोटिंग के मुताबिक, कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने कहा था कि एमआईएस-पीएसएस योजना के तहत नैफेड को सब्सिडी जारी करने के लिए अतिरिक्त फंड की जरूरत है, ताकि वो सरकारी गारंटीड लोन पर ब्याज का भुगतान कर सके.
इसके लिए मंत्रालय ने प्रस्ताव रखा था कि पीएम-किसान और अन्य योजनाओं के तहत जो पैसे बच गए हैं उसे इन योजनाओं के बजट को बढ़ाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.
हालांकि व्यय विभाग के सचिव चक्रवर्ती ने उलटे सवाल किया कि पीएम-किसान के तहत अधिक लाभार्थियों को क्यों नहीं जोड़ा जा सका है. उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय को आवंटित की गई राशि का भारी हिस्सा खर्च नहीं किया गया है और सितंबर, 2019 तक में कुल व्यय 39 फीसदी ही है. इन तर्कों के आधार पर किसानों को एमएसपी दिलाने वाली योजनाओं के बजट में बढोतरी नहीं की गई.
18 अक्टूबर 2019 की तारीख में सचिव (व्यय) के हस्ताक्षर वाली नोटिंग में लिखा गया, ‘ये ध्यान रखते हुए कि व्यय की रफ्तार काफी धीमी है और 30/09/2019 तक में 39 फीसदी राशि ही खर्च की गई है, वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कृषि योजनाओं का बजट अनुमान 117070.50 करोड़ रुपये तय किया जाता है.’ इसके साथ ही वित्त वर्ष 2019-20 का संशोधित बजट कृषि विभाग की सिफारिश से काफी कम 106175.00 करोड़ रुपये तय किया गया.
खास बात ये है कि वित्त मंत्रालय ने बजट निर्धारित करने के बाद कृषि मंत्रालय को एक पत्र लिखकर कहा कि वे किसी भी योजना के बजट से बची हुई राशि को किसी अन्य योजना में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. मंत्रालय ने कहा कि अगर विभाग ऐसा करना चाहता है तो उसे वित्त मंत्रालय की अनुमति लेनी होगी.
वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में बजट डिवीजन के संयुक्त सचिव रजत कुमार मिश्रा ने चार जनवरी 2020 की तारीख में कृषि मंत्रालय के वित्तीय सलाहकार को लिखे एक गोपनीय पत्र में कहा कि सरकार की कुल प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय विभिन्न मांगों में से बड़ी योजनाओं के लिए ज्यादा बजट का आवंटन करता है.
Ministry of Finance letter … by The Wire on Scribd
उन्होंने लिखा, ‘पूर्व में ये देखा गया है कि बिना वित्त मंत्रालय की मंजूरी लिए मंत्रालयों ने इन आवंटनों को अन्य योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया है.’ ऐसा न करने की बात पर जोर देते हुए मिश्रा ने लिखा, ‘यह फिर से कहा जाता है कि महत्वपूर्ण योजनाओं का आवंटन चिह्नित स्तर से नीचे नहीं लाया जा सकता है. बिना वित्त मंत्रालय की मंजूरी के ऐसे किसी भी परिवर्तन की इजाजत नहीं है.’
इस ऑफिस मेमो (ओएम) के साथ संलग्न पत्र में दर्शाया गया है कि कृषि मंत्रालय की महत्वपूर्ण योजना पीएम किसान है और उसके बजट में कटौती नहीं हो सकती है.
पत्र में यह भी कहा गया है कि मौजूदा वित्त वर्ष के बाकी महीनों में होने वाला खर्च संशोधित अनुमान 2019-20 के भीतर ही रहना चाहिए. वित्त वर्ष के आखिरी महीनों में जल्दबाजी में खर्च करना वित्तीय औचित्य का उल्लंघन है और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.
मंत्रालय ने कहा कि जिन योजनाओं के बजट का पैसा बच जाता है उसे तुरंत वापस किया जाना चाहिए.
बजट में कटौती के चलते न्यूनतम मूल्य समर्थन पर खरीदी प्रक्रिया पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए द वायर ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और नैफेड को सवालों की सूची भेजी है. अक तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है. अगर कोई जवाब आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.
‘बजट आवंटन में कमी के चलते एमएसपी पर खरीदी पर पड़ रहा प्रभाव’
दालें, तिलहन और कोपरा उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए बड़ी लंबी मांग के बाद कृषि मंत्रालय ने अक्टूबर, 2018 में पीएम-आशा योजना को लॉन्च किया था. इस योजना में पहले से ही चली आ रही मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को भी शामिल किया गया है.
वहीं बंपर उत्पादन के समय किसानों को औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेचने से बचाने के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) है. यह योजना आम-तौर पर आलू, टमाटर, प्याज जैसे उत्पादों पर लागू होती है.
हालांकि इन योजनाओं के तहत वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के दौरान हुई खरीदी का तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि कुल उत्पादन के मुकाबले काफी कम खरीदी हो रही है. कृषि जानकार बताते हैं कि इसका एक प्रमुख कारण इन योजनाओं के बजट आवंटन में कमी है.
द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों में कृषि मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि पीएम-आशा योजना के तहत काफी कम दावे हैं. आलम ये है कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2019-20 के पहले छह महीनों में एक रुपये की भी राशि खर्च नहीं हो पाई थी.
स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का कहना है कि इन योजनाओं का उद्देश्य था कि जो भी घोषणा सरकार कर रही है कम से कम उतनी एमएसपी तो किसानों को मिलनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘सरकार का असली घोटाला ये है कि जितनी भी एमएसपी तय की जा रही है, उतनी भी किसानों को नहीं मिल रही है. हैरानी है कि इन योजनाओं के बजट को कम किया जा रहा है.’
हालांकि पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन इन योजनाओं की बजट राशि में कटौती को बड़ा मुद्दा नहीं मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार की मंशा एमएसपी पर खरीदी करने की है तो वे किसी न किसी तरह से खरीदी कर लेंगे. फंड मुद्दा नहीं है, सरकार की मंशा सही होना मुद्दा है.’
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 के दौरान दालों (चना, मसूर, मूंग, तूअर और उरद) का कुल अनुमानित उत्पादन 220.80 लाख टन था. इसमें से खरीफ सीजन में 80.90 लाख टन और रबी सीजन में 139.80 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ. वहीं इसी दौरान तिलहन (मूंगफली, सरसों, काला तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी) का उत्पादन 315.22 लाख टन था.
हालांकि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत 2018-19 के दौरान दालों और तिलहन को मिलाकर सिर्फ 37.73 लाख टन की ही खरीदी की गई. ये कुल उत्पादन का सिर्फ 7.4 फीसदी है.
साल 2018-19 में चने का अनुमानित उत्पादन 99.40 लाख टन था. हालांकि इसमें से 7.76 लाख टन की ही खरीदी की गई. वहीं मूंगफली का कुल उत्पादन करीब 67.27 लाख टन था, लेकिन सिर्फ 7.17 लाख टन की ही सरकारी खरीद हुई.
इसी तरह मसूर, मूंग, तूअर और उरद का उत्पादन साल 2018-19 में 12.30 लाख टन, 24.60 लाख टन, 33.20 लाख टन और 30.60 लाख टन था, लेकिन इसमें से सिर्फ 0.56 लाख टन, 3.28 लाख टन, 2.91 लाख टन और 4.92 टन की ही खरीदी हुई. दालों में सबसे कम मसूर की 4.55 फीसदी खरीदी हुई है.
यही हाल तिलहन का भी है. साल 2018-19 में सरसों का अनुमानित उत्पादन 92.56 लाख टन और सोयाबीन का अनुमानित उत्पादन 132.68 लाख टन था. लेकिन इसमें से सरसों सिर्फ 10.88 लाख टन और सोयाबीन 0.19 लाख टन ही खरीदा गया.
कृषि मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए जवाब के मुताबिक सोयाबीन उत्पादन वाला बड़ा राज्य मध्य प्रदेश से पीएसएस के तहत बिल्कुल भी खरीदी नहीं हुई है.
इसी तरह 18 फरवरी 2020 को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किए गए 2019-20 के लिए फसल उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 2019-20 में दालों का अुमानित उत्पादन 230.20 लाख टन और तिलहन का अनुमानित उत्पादन 341.88 लाख टन है.
हालांकि इसमें से 27 फरवरी 2020 तक में सिर्फ 12.14 लाख टन दालों और 28 जनवरी 2020 तक में 17.34 लाख टन तिलहन की खरीदी हुई है. सरकारी खरीद के ये आंकड़े कुल उत्पादन का सिर्फ 5.30 फीसदी है, यानी की जितना उत्पादन हुआ है उसमें से सिर्फ 5.30 फीसदी की खरीददारी हुई है.
साल 2019-20 के दौरान चना का अनुमानित उत्पादन 112.20 लाख टन है. लेकिन इसमें से अभी तक सिर्फ 7.88 लाख टन यानी कि 7.02 फीसदी की खरीदी हुई है. इसी तरह मसूर का अनुमानित उत्पादन 13.90 लाख टन, मूंग का 16.60 लाख टन, तूअर का 36.90 लाख टन और उरद का 22.50 लाख टन है.
हालांकि अभी तक में मसूर की खरीदी 0.56 लाख टन, मूंग की 1.66 लाख टन, तूअर की 1.86 लाख टन और उरद की सिर्फ 0.18 लाख टन खरीदी हुई है. इस बार दालों में सबसे कम उरद की खरीदी हुई है.
इसी तरह तिलहन की भी काफी कम सरकारी खरीद हुई है.
साल 2019-20 में मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी का अनुमानित उत्पादन 82.44 लाख टन, 91.13 लाख टन, 136.28 लाख टन और 2.56 लाख टन है. लेकिन इसमें से 28 जनवरी 2020 तक में मूंगफली 6.33 लाख टन, सरसों 10.88 लाख टन, सोयाबीन 0.10 लाख टन और सूरजमुखी 0.03 लाख टन ही खरीदा गया है.
मालूम हो कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की भारत सरकार की नीति के तहत किसानों को उनके उत्पाद का उचित दाम देना एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है.
एमएसपी की सिफारिश करने वाला कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) अपनी खरीफ और रबी की रिपोर्ट में बार-बार ये कहा है कि सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए ज्यादा से ज्यादा खरीद केंद्र खोले और एमएसपी के बारे में गांव, दूरदराज के क्षेत्रों में प्रचार किया जाए.
आयोग ने खास तौर पर भारतीय खाद्य निगम को कहा है कि वे दालें और तिलहन की खरीदी के लिए अस्थायी या अल्पकालिक खरीद केंद्र खोल सकते हैं. ज्यादातर दालें और तिलहन की खरीदी पीएसएस योजना के तहत नैफेड करता है.
बता दें कि भारत सरकार हर साल कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश पर कुल 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग अपनी पिछली योजनाओं के तहत ही गेंहूं, धान और मोटे अनाज का भंडारण करता है. वस्त्र मंत्रालय कपास की खरीदी करता है.