फंड की कमी से जूझ रही कृषि योजनाओं के लिए हुई थी बजट बढ़ाने की मांग, वित्त मंत्रालय ने नकारा

विशेष रिपोर्ट: कृषि मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अलावा कृषि लोन पर ब्याज सब्सिडी, राज्यों को दाल वितरण, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी कई महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट को बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय द्वारा इन मांगों को ख़ारिज कर दिया गया.

Amritsar: Despondent farmer inspects his flattened paddy crop following monsoon rainfall, on the outskirts of Amritsar, Sunday, Sept. 29, 2019. (PTI Photo) (PTI9_29_2019_000141B)

विशेष रिपोर्ट: कृषि मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अलावा कृषि लोन पर ब्याज सब्सिडी, राज्यों को दाल वितरण, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी कई महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट को बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय द्वारा इन मांगों को ख़ारिज कर दिया गया.

Amritsar: Despondent farmer inspects his flattened paddy crop following monsoon rainfall, on the outskirts of Amritsar, Sunday, Sept. 29, 2019. (PTI Photo) (PTI9_29_2019_000141B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: देश की कई प्रमुख कृषि योजनाएं फंड की कमी से जूझ रही हैं और उचित बजट आवंटन नहीं होने के कारण ये योजनाओं किसानों तक सही से नहीं पहुंच पा रही हैं.

इन दलीलों का हवाला देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट में इस साल बढ़ोतरी की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इन सभी मांगों को खारिज कर दिया था.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से इसका खुलासा हुआ है.

मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कृषि लोन पर ब्याज सब्सिडी, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सब्सिडी पर दालों का वितरण वाली योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, बागवानी जैसी कई योजनाओं के बजट में बढ़ोतरी की मांग की थी.

हालांकि वित्त मंत्रालय ने कृषि मंत्रालय की दलील मानने से इनकार कर दिया था.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बजट विभाग के सीनियर सांख्यिकी अधिकारी श्याम लाल द्वारा 25 अक्टूबर 2019 को वित्त मंत्रालय को भेजे गए पत्र में कहा गया था कि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए फसल बीमा योजना का बजट 19,690.19 करोड़ रुपये तय करने की जरूरत है.

अधिकारी ने अपने पत्र में कहा कि किसानों को प्रीमियम सब्सिडी देने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता के लिए इसका बजट बढ़ाने की जरूरत है.

दस्तावेजों के मुताबिक, बजट बढ़ाने की मांग को सही ठहराते हुए आठ नवंबर 2019 को वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कृषि मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत स्वैच्छिक बीमा कराने वालों की संख्या बढ़ी है और करीब 30 फीसदी कृषि क्षेत्र का इसके तहत बीमा हुआ है.

अग्रवाल ने इस योजना की सबसे बड़ी समस्या- समय पर किसानों को उनके दावे का भुगतान न किया जाना- की ओर ध्यान दिलाया और तत्कालीन सचिव (व्यय) अतनु चक्रवर्ती के साथ बैठक में कहा, ‘इस योजना के तहत कई दावों का भुगतान किया जाना लंबित है.’

हालांकि कृषि मंत्रालय की इस मांग को खारिज कर दिया गया और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पीएमएफबीवाई का बजट 15,695 करोड़ रुपये रखा गया.

मालूम हो कि हाल ही में द वायर  ने एक रिपोर्ट में बताया था कि रबी 2019-20 सीजन में दावा भुगतान की समयसीमा पूरी होने के करीब डेढ़ महीने बाद भी किसानों के 80 फीसदी दावों का भुगतान नहीं किया गया है.

इस सीजन में कुल 3,750 करोड़ रुपये का दावा किया गया था, जिसमें से किसानों को सिर्फ 775 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है.

द वायर  ने पिछले दो सालों में कई रिपोर्ट्स के जरिये बताया है कि किस तरह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को दावा भुगतान में देरी होना इसका एक अभिन्न अंग बना हुआ है.

समय पर दावों का भुगतान न होने पर किसानों को दोहरी मार पड़ती है. प्राकृतिक कारणों के चलते पिछली फसल तो बर्बाद होती ही है और दावा भुगतान न होने के कारण पैसे की कमी के चलते किसान अपनी अगली फसल सही से नहीं लगा पाता है.

कृषि बजट निर्धारण के संबंध में सचिव (व्यय) की अगुवाई में वित्त मंत्रालय में आठ नवंबर 2019 को एक बैठक हुई थी.

द वायर  ने इस संबंध में व्यय विभाग के तत्कालीन सचिव अतनु चक्रवर्ती की 18 नवंबर 2019 की तारीख में की गई हस्ताक्षर वाली फाइल नोटिंग प्राप्त की है.


Ministry of Agriculture Budget by The Wire

नोटिंग के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने कहा है कि पिछले बजट में आवंटित राशि को खर्च करने में देरी और काफी ज्यादा राशि के खर्च न होने के चलते कृषि मंत्रालय द्वारा बजट बढ़ाने की मांग को ठुकराया गया है.

हालांकि दस्तावेज स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि फसल बीमा योजना का बजट काफी तेजी से खर्च किया गया था.

वित्त वर्ष 2019-20 के लिए पीएमएफबीवाई के तहत 14,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. इसमें से पहले छह महीने में सितंबर, 2019 तक में 9,620.53 करोड़ रुपये यानी कि 69 फीसदी धनराशि खर्च की जा चुकी थी.

इसी आधार पर कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2019-20 के बजट को भी 14,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20,465.47 करोड़ रुपये करने की मांग की थी. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इसे और कम करके 13,640.85 करोड़ रुपये कर दिया.

कृषि ऋण योजना के बजट में भी बढ़ोतरी से इनकार

किसानों को ऋण पर ब्याज छूट देने के लिए चलाई जा रही योजना के बजट में पिछले साल के मुकाबले 10,000 करोड़ रुपये की वृद्धि करने की मांग की गई थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे भी खारिज कर दिया.

कृषि मंत्रालय ने 25 अक्टूबर 2019 को वित्त मंत्रालय को भेजे अपने पत्र में कहा था कि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इस योजना का बजट बढ़ाकर 28,000 करोड़ रुपये किया जाना चाहिए और वित्त वर्ष 2019-20 के लिए निर्धारित 18,000 करोड़ रुपये के बजट में 6,000 करोड़ की वृद्धि कर इसे 24,000 करोड़ रुपये किया जाए.

लेकिन वित्त मंत्रालय ने किसानों को ऋण पर ब्याज छूट देने वाली योजना का बजट वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 21,175 करोड़ रुपये रखा और वित्त वर्ष 2019-20 के लिए निर्धारित बजट को और घटाकर 17,863.43 करोड़ रुपये कर दिया.

इस योजना के तहत किसानों को सात फीसदी की ब्याद दर पर तीन लाख रुपये तक के लोन दिए जाते हैं. यदि किसान एक साल के भीतर पूरा लोन बैंक को वापस कर देता है तो उसे ब्याज पर तीन फीसदी की छूट मिलती है और इस तरह उसे सात के बजाय चार फीसदी की दर से ब्याज देना होता है.

भारत सरकार यही छूट देने के लिए हर साल बजट आवंटित करती है. यह योजना खरीफ 2006-07 में लागू हुई थी.

कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने मंत्रालय की मांग को सही ठहराते हुए कहा था कृषि ऋण की संख्या तेजी से बढ़ी है और इस योजना के लिए निर्धारित राशि का काफी हिस्सा पहले ही खर्च किया जा चुका है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आवंटित किए गए 18,000 करोड़ रुपये में से 72 फीसदी यानी कि 12,996.85 करोड़ रुपये सितंबर 2019 तक में ही खर्च किए जा चुके थे.

इस तरह यहां ये स्पष्ट है कि किसानों को ऋण पर ब्याज छूट देने वाली योजना की राशि काफी तेजी से खर्च हुई थी और इसी आधार पर मंत्रालय ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए संशोधित बजट और अगले वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान बढ़ाने की मांग की थी.

हालांकि कृषि विभाग की इस मांग को भी खारिज कर दिया गया.


Ministry of Agriculture Budget by The Wire

बजट निर्धारण के लिए आठ अक्टूबर 2019 को हुई बैठक वाली फाइल नोटिंग में लिखा है, ‘कृषि सचिव ने कहा कि पिछले कुछ सालों में कृषि ऋण में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. साल 2019-20 के लिए 13,50,000 करोड़ रुपये के लोन बांटने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए वित्त वर्ष 2019-20 में आवंटित 18,000 करोड़ रुपये में से अभी तक में 13,002 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. योजना के सामान्य भाग के तहत आवंटित फंड लगभग समाप्त हो चुका है.’

राज्यों को दाल देने की योजना का बजट बढ़ाने से इनकार

नौ अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने मूल्य समर्थन योजनाओं (पीएसएस) के तहत खरीदी गई दालों को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को रियायती दरों पर देने की एक महत्वपूर्ण योजना को मंजूरी दी थी.

इसके तहत राज्यों को 15 रुपये प्रति किलो की छूट दर से दालों की बिक्री की जानी था, ताकि केंद्र के पास इकट्ठा हुए दालों के स्टॉक को खाली कराया जा सके और इसे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं जैसे कि मिड-डे मील, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), आईसीडीएस, इत्यादि के लिए उपयोग में लाया जा सके.

हालांकि दस्तावेजों से पता चलता है कि इस योजना का बजट आवंटन और खर्च दोनों काफी कम है.

कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इसका बजट 2,250 करोड़ तय करने की सिफारिश की थी, जो कि वित्त वर्ष 2019-20 में आवंटित 800 करोड़ रुपये के मुकाबले 1,450 करोड़ रुपये अधिक है.

इसके अलावा मंत्रालय ने 2019-20 के बजट को भी संशोधित करके 1,588.95 करोड़ रुपये करने की मांग की थी.

हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन दोनों मांगों को खारिज कर दिया और 2020-21 का बजट पिछले साल के बराबर 800 करोड़ रुपये रखा और मौजूदा वित्त वर्ष का बजट घटाकर काफी कम 370 करोड़ रुपये कर दिया था.

कृषि मंत्रालय ने वित्त विभाग को लिखे अपने पत्र में कहा था कि उनकी ये मांग योजना के तहत वास्तवित आवंटन पर आधारित है.

इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2019-20 के पहले छह महीने यानी कि सितंबर 2019 तक बजट का 22 फीसदी हिस्सा ही खर्च किया जा सका था.

इसी तरह कृषि सहयोग पर एकीकृत योजना के बजट में पिछले साल के मुकाबले 794.70 करोड़ रुपये की वृद्धि की मांग की गई थी.

कृषि मंत्रालय ने कहा था कि कृषि सहयोग के तहत पहले से ही स्वीकृत परियोजना के संबंध में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) की प्रतिबद्ध देनदारियों के निर्वहन के लिए अतिरिक्त राशि की आवश्यकता है.

हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इस योजना का बजट 400 करोड़ रुपये ही रखा, जबकि कृषि मंत्रालय ने इसे 879.70 करोड़ रुपये रखने की मांग की थी.

पिछले साल वित्त वर्ष 2019-20 के लिए इसका बजट 85 करोड़ रुपये आवंटित था. लेकिन कृषि मंत्रालय ने इसे संशोधित कर 2326.70 करोड़ रुपये करने की बहुत बड़ी वृद्धि की मांग की थी.

इस पर वित्त मंत्रालय ने सिर्फ 55 करोड़ रुपये की वृद्धि कर वित्त वर्ष 2019-20 का संशोधित बजट 140 करोड़ रुपये रखा.

खास बात ये है कि कृषि मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कहा था कि चूंकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के लिए आवंटित किए गए 75,000 करोड़ रुपये में से काफी राशि बच गई है, इसलिए इस राशि को अन्य योजनाओं के बजट में बढ़ोतरी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया था.

दस्तावेजों से पता चलता है कि पूरी राशि खर्च न होने के चलते कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पीएम-किसान योजना का बजट घटाकर 60,180 करोड़ रुपये करने की सिफारिश की थी.

लेकिन वित्त मंत्रालय ने कृषि विभाग की सिफारिशों को खारिज करते हुए पीएम-किसान योजना का बजट पिछले साल के बराबर 75,000 करोड़ रुपये रखा.

मालूम हो कि द वायर  ने अपनी पिछली कई रिपोर्टों में बताया है कि किस तरह पीएम-किसान योजना का इतना बजट एक साल के भीतर खर्च कर पाना संभव नहीं है. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पास ये स्पष्ट आंकड़ा नहीं है कि भारत में कुल कितने किसान हैं.

पीएम-किसान योजना के तहत एक साल में 2000-2000 रुपये की तीन किश्तों में किसानों के खाते में 6,000 रुपये डालने का प्रावधान है.

इससे पहले द वायर ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह कृषि मंत्रालय ने किसानों को लाभकारी मूल्य देने वाली योजनाओं बाजार हस्तक्षेप योजना/मूल्य समर्थन प्रणाली (एमआईएस/पीएसएस) और प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) का बजट बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे खारिज करते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इनका बजट पिछले साल दिए गए बजट से भी कम रखा.

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