होशंगाबाद के नर्मदा प्रसाद यादव ने पांच से छह लाख रुपये क़र्ज़ लिया था जो बढ़कर 30 लाख हो गया. साहूकार की प्रताड़ना के बाद उन्होंने हाल ही में आत्महत्या कर ली.
मिट्टी के दीवारों पर छाए गए तमाम खपरैल मकानों में से एक मकान नर्मदा प्रसाद यादव का है. मकान के सामने कच्ची सड़क पर पानी और कीचड़ जमा है. सीजन की पहली बरसात ने ही मोहल्ले को कीचड़ में सान दिया है. अब कुछ महीने इसी कीचड़ भरी सकड़ पर गांव वाले आते जाते रहेंगे. सड़क से लगी एक दीवार के बीचोबीच एक दरवाज़ा झांक रहा है, जिसमें अब नर्मदा प्रसाद यादव कभी प्रवेश नहीं करेंगे.
क्योंकि नर्मदा प्रसाद की मौत हो चुकी है. मीडिया और प्रशासन ने कहा है कि नर्मदा ने क़र्ज़ के चलते ज़हर खा लिया है. लेकिन नर्मदा प्रसाद घर वालों को इस पर भरोसा नहीं है क्योंकि नर्मदा प्रसाद साहूकार ज़बरन अपने साथ ले गया था कि चलो मूंग बेचकर पैसे दो.
नर्मदा प्रसाद ने 45 हज़ार की मूंग बेची थी, वह पैसा और ट्रैक्टर ट्रॉली साहूकार ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया. नर्मदा प्रसाद के भाई अशोक का कहना है यह हमें नहीं पता है कि ज़हर उन्होंने ख़ुद पिया या पिलाया गया, लेकिन जब सब लोग साथ थे तो उन्हें ज़हर कैसे पीने दिया?
नर्मदा का घर उन तमाम घरों से एकदम अलग नहीं है जो हमने मध्य प्रदेश के अन्य गांवों में देखे. गांव के मवेशियों को छोड़कर कोई हमें सामान्य नहीं दिख रहा था. कोई व्यक्ति ख़ुश नहीं है. इन गांवों में सड़क, बिजली, पानी तो नहीं पहुंचा है, लेकिन सरकारी और निजी क़र्ज़ के रूप में क़र्ज़ पहुंच गया है.
मिट्टी की दीवारों वाले खपरैल के तमाम घरों की ओर आप देखेंगे तो किसी घर की छत आधी गिर गई है, किसी में दरवाज़ा नहीं है, किसी की बड़ेर आधी टूट कर गिर गई है, किसी घर की दीवार गिरने वाली है.
मीडिया में खबरें छपीं कि नर्मदा प्रसाद ने क़र्ज़ के चलते ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली, तो हम उनके गांव पहुंचे. गांव चपलासर, तहसील बाबई, ज़िला होशंगाबाद. गांव में नर्मदा प्रसाद की मौत के बाद सन्नाटा पसरा है.
नर्मदा प्रसाद पर करीब 30 लाख का क़र्ज़ था. उन्होंने इतना पैसा क़र्ज़ में लिया नहीं था. ये साहूकारों की मेहरबानी है. एक साहूकार प्रभाकर से नर्मदा ने 50 हज़ार रुपये लिए थे जो एक साल में बढ़कर 2.5 लाख हो गया. इसी तरह नर्मदा पर कुल 20 लोगों का क़र्ज़ था. इसके अलावा उन्होंने बैंक से भी कुछ रुपये कर्ज़ ले रखे थे. कुल मिलाकर क़रीब छह लाख का क़र्ज़ उन्होंने लिया था जो बढ़कर 30 लाख तक हो गया.
हम एक दर्जन गांवों में गए, इसके अलावा तमाम लोगों से बातचीत की. क़र्ज़ किसानों के लिए एक मृत्युजाल बन चुका है, जिसमें एक बार फंसने वाला किसान कभी बाहर आने लायक नहीं रह गया.
उनके दो बेटे रोहित और मोहित 11वीं और 10वीं में हैं. वे एक शांत उदासी ओढ़े चुपचाप खचाखच भरे घर के बरामदे में बैठे हैं. हमें देखकर जो भीड़ जमा हुुई है वह समझती है हम कोई ताक़तवर लोग हैं जो सरकार हैं और हम चाह लेंगे तो उनकी सारी समस्या ख़त्म हो जाएगी.
इस भीड़ में सारे लोग नर्मदा प्रसाद के परिवार और पड़ोस के हैं. उनमें से एक एक हर सदस्य एक नया रहस्य खोलता है.
यह क़रीब 60 घरों का गांव है. गांव के जिस भी परिवार के पास खेती है वह क़र्ज़ में है. उनमें से 60 फीसदी लोग बैंक की तरफ से डिफाल्टर घोषित हो चुके हैं. नर्मदा प्रसाद के अड़ोस पड़ोस में रह रहे लोग भी क़र्ज़दार हैं और सरकारी रिकॉर्ड में डिफ़ॉल्टर हैं.
गांव के बहुत कम घरों के बच्चे पढ़ने जाते हैं. ज़्यादातर पैसे के अभाव में पढ़ाई छोड़ चुके हैं. जो क़र्ज़दार हैं वे एक अवचेतन अवसाद में हैं. उन्हें डर है कि एक दिन साहूकार उनका जीना हराम कर देगा. सरकारी बैंक उन्हें नोटिस भेजेगा. वे क़र्ज़ नहीं दे पाएंगे तो क्या करेंगे? क़र्ज़ भरने का एकमात्र ज़रिया खेती है और खेती घाटे का सौदा है.
राम कुमार ने छह एकड़ मूंग बोई थी. कुछ मिलाकर 60 किलो मूंग बुवाई में लगी थी. उपज हुई कुल एक क्विंटल. मैंने पूछा अब क्या करेंगे, बोले ‘जितनी मूंग पैदा हुई है, उसे रख लेंगे बीज के लिए. खाद, पानी, मज़दूरी, जुताई वगैरह का पैसा तो डूब ही चुका है.’
नर्मदा प्रसाद के भाई अशोक ने हमे बताया, ‘उन्होंने एक साहूकार प्रभाकर से 50 हज़ार क़र्ज़ लिया था. उसने एक साल बाद ब्याज लगाया तो यह रकम ढाई लाख हो गई.
‘एक दिन साहूकार घर आया और कट्टा दिखाकर खूब गालियां दीं. नर्मदा प्रसाद ने बेबसी ज़ाहिर की कि अभी उनके पास पैसे नहीं हैं. लेकिन उसने धमकी दी. इस सीजन में मूंग की फसल हुई थी. उसने कहा तुरंत ले चलो और फसल बेच के पैसे दो.’
नर्मदा प्रसाद मूंग ट्राली में भरी और बेचने ले गए. उनके साथ साहूकार खुद कुछ लोगों के साथ मौजूद था. 45 हज़ार की मूंग बिकी. उसने सारे पैसे ले लिए और ट्रैक्टर ट्रॉली भी अपने क़ब्ज़े में लिया.
नर्मदा प्रसाद के भाइयों का आरोप है कि ‘हम पहुंचे तब नर्मदा प्रसाद ट्रैक्टर के पास ही पड़े थे. वहां पर मूंग की फसल पर डालने वाला एक केमिकल की आधा लीटर की बोतल पड़ी थी. ये नहीं पता कि उन लोगों ने नर्मदा को ज़हर पिला दिया या उन्होंने खुद पी लिया. लेकिन उन लोगों ने मुझे धमकाया कि मुंह बंद रखना, वरना तुम्हारा भी यही हाल होगा.’
प्रशासन और मीडिया ने नर्मदा प्रसाद की मौत को आत्महत्या माना है, लेकिन नर्मदा प्रसाद के परिजनों को आशंका है कि उन्हें ज़हर पिलाया गया है. पड़ोसियों के कहना है कि साहूकार घर आकर कट्टा दिखाकर गाली देकर गया था. पुलिस ने साहूकार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. नर्मदा की मौत के बाद मामला गहराता देख साहूकार ने ट्रेक्टर ट्रॉली वापस कर दी है.
लेकिन नर्मदा की जान अब वापस नहीं आएगी, ना ही उस परिवार को फिलहाल क़र्ज़ से मुक्ति मिलने का कोई रास्ता नज़र आ रहा है. कई किलोमीटर पर कच्चे रास्ते पर चलकर हम इस गांव तक पहुंचे थे. गांव में सड़क नहीं पहुंची है, लेकिन कोकाकोला का एक प्लांट वहां पहुंच गया है. बंसल ग्रुप को प्लांट बनाने का ठेका मिला है. ग्रामीणों का आरोप है कि प्लांट के लिए सरकार ने जो ज़मीन दी है, उसके अलावा भी ठेकेदार कंपनी आसपास की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर रही है.
जब हम गांव से वापस चलने लगे तो एक बूढ़े आदमी ने गाड़ी रोकी. हाथ जोड़कर बोले, ‘आपने रास्ता तो देखा ही होगा. बरसात में बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे? आप कृपा कर देंगे तो बच्चों का भविष्य बन जाएगा.’
वह कौन सी समस्या है जिसके दूर होने से यह गांव ख़ुशहाल हो जाएगा? क़र्ज़ माफ़ होने से या फ़सलों का सही दाम मिलने से, साहूकारों के चंगुल से मुक्ति मिलने से या गांव तक पहुंचने से? इसमें से फ़िलहाल किसी समस्या पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.