उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे को लेकर पुलिस पर उठ रहे सवालों को लेकर द वायर ने सूचना का अधिकार के तहत कई आवेदन दायर कर इस दौरान पुलिस द्वारा लिए गए फैसले और उनके द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में जानकारी मांगी थी.
नई दिल्ली: इस साल फरवरी में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें गंभीर रूप से घायल पांच लोगों को कई पुलिसवाले बर्बर तरीके से पीट रहे थे और उन पर राष्ट्रगान गाने का दबाव डाल रहे थे.
इस वीडियो को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कर्दमपुरी में 24 फरवरी को शूट किया गया था, जब राष्ट्रीय राजधानी का ये हिस्सा हिंदू-मुस्लिम दंगों में जल रहा था.
दो दिन बाद इनमें से एक 23 वर्षीय फैजान की अस्पताल में मौत हो गई. ये एकमात्र ऐसा मामला नहीं था. तीन दिन तक चले इस दंगे में दिल्ली पुलिस पर बर्बरता दिखाने के कई आरोप लगे हैं.
इस दौरान कम से कम 52 लोगों की मौत हुई और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए. कई लोगों की संपत्ति बर्बाद की गई और बड़ी संख्या में लोगों को अपने ही शहर में शरणार्थी बनना पड़ा.
इस दंगे में एक पुलिसकर्मी और कुछ हिंदुओं की भी मौत हुई, लेकिन ज्यादातर पीड़ित मुसलमान ही हैं. स्थानीय लोगों और इन जगहों का दौरा करने वाले पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सुरक्षा विशेषज्ञों इत्यादि का आरोप है कि अगर समय रहते पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की होती तो इस दंगे को रोका जा सकता है.
पुलिस पर उठ रहे विभिन्न सवालों की पुष्टि करने के लिए द वायर ने कई सूचना का अधिकार आवेदन दायर कर दंगे के दौरान पुलिस द्वारा लिए गए फैसले और उनके द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में जानकारी मांगी थी.
लेकिन पुलिस ने आरटीआई एक्ट की सूचना देने से छूट प्राप्त धाराओं का ‘गैर-कानूनी’ इस्तेमाल करते हुए और इससे लोगों की जान खतरे में होने का हवाला देकर दिल्ली दंगों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों का खुलासा करने से इनकार कर दिया है.
इसके अलावा पुलिस ने आरटीआई एक्ट के तहत जीवन-मृत्यु के मामले में 48 घंटे के भीतर जवाब देने की समयसीमा का भी उल्लंघन किया और करीब 28 दिन में ये अनुपयोगी जवाब भेजा है.
आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल:
1. 24 फरवरी 2020 से 27 फरवरी 2020 के बीच उत्तर-पूर्वी इलाकों में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस ने कुल कितने बुलेट फायर किए? हिंसा प्रभावित क्षेत्र-वार सूचना दी जाए.
2. 24 फरवरी 2020 से 27 फरवरी 2020 के बीच उत्तर-पूर्वी इलाकों में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस ने कुल कितने आंसू गैस, रबर बुलेट और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया? हिंसा प्रभावित क्षेत्र-वार सूचना दी जाए.
3. 24 फरवरी 2020 से 27 फरवरी 2020 के बीच उत्तर-पूर्वी इलाकों में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस के कुल कितने जवानों की तैनाती की गई थी? हिंसा प्रभावित क्षेत्र-वार और दिन-वार सूचना दी जाए
4. इस दौरान हिंसा से संबंधित कुल कितने कॉल उत्तर-पूर्वी दिल्ली के किन-किन क्षेत्रों से प्राप्त हुए? इन कॉल्स पर दिल्ली पुलिस ने क्या कार्रवाई की?
5. दिल्ली दंगे के सभी आरोपियों के नाम, एफआईआर नंबर, थाने के नाम के साथ दर्ज करने की तारीख की जानकारी दी जाए.
इसके अलावा इस हिंसा में मारे गए और घायल हुए सभी व्यक्तियों के नाम, पते, उम्र की जानकारी मांगी गई थी. द वायर ने घायल हुए सभी पुलिसकर्मियों के नाम, उनका पद और इंजरी के प्रकार से जुड़ी जानकारी मांगी थी.
हालांकि दिल्ली पुलिस की उत्तर-पूर्वी जिला के जन सूचना अधिकारी और एडिशनल डिप्टी पुलिस कमिश्नर एमए रिज़वी ने आरटीआई की धारा 8(1)(जी, जे और एच) का सहारा लेते हुए इन सभी बिंदुओं पर जानकारी देने से मना कर दिया.
उन्होंने 30 मार्च की तारीख में भेजे आरटीआई के जवाब में कहा, ‘सभी एसएचओ/एनईडी द्वारा दी गई रिपोर्ट के मुताबिक मांगी गई जानकारी आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 8(1)(जी, जे और एच) के तहत नहीं दी जा सकती है.’
हालांकि रिज़वी ने अपने जवाब में इसका उल्लेख नहीं किया कि आखिर किस आधार पर मांगी गई जानकारी सूचना देने से छूट प्राप्त धाराओं के दायरे में आती है.
ऐसा न करना आरटीआई एक्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के कई महत्वपूर्ण आदेशों का गंभीर उल्लंघन है, जिसमें ये कहा गया है कि जानकारी देने से मना करते हुए इसका उल्लेख किया जाए कि आखिर किस आधार पर जानकारी नहीं दी जा रही है.
आरटीआई की धारा 8(1)(जी) के तहत अगर सूचना का खुलासा करने से किसी व्यक्ति की जान या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाए या सुरक्षा कार्यों के लिए विश्वास में दी गई किसी सूचना या सहायता के स्रोत की पहचान हो जाए, तो ऐसी सूचना का खुलासा करने से छूट मिला हुआ है.
वहीं धारा 8(1)(एच) के तहत यदि किसी सूचना के खुलासे से जांच की प्रक्रिया या अपराधियों का अभियोजन प्रभावित होता है तो ऐसी जानकारी को भी देने से मना किया गया है.
इसी तरह धारा 8(1)(जे) के तहत अगर कोई ऐसी सूचना है जो कि निजी है और जिसके खुलासे का जनहित से कोई संबंध नहीं है या ऐसी जानकारी देने से किसी की निजता में दखल देना होता है तो इस तरह की सूचना देने से भी मनाही है.
हालांकि इस प्रवाधान में एक शर्त ये है कि अगर ऐसी कोई जानकारी संसद या राज्य विधायिका को दी जाती है तो इसे आम जनता को देने से मना नहीं किया जा सकता है.
द वायर ने ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगी है जो कि इन तीनों उप-धाराओं के दायरे में आती हो. दिल्ली पुलिस से उनके द्वारा चलाई गई गोली, रबर बुलेट, वॉटर कैनन और प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किए गए पुलिसकर्मियों की जानकारी मांगी गई थी, जो कि किसी भी तरह से निजी जानकारी नहीं है, न ही ये सूचना जांच को प्रभावित करेगा और न ही इस जानकारी से किसी की जान को खतरा होगा.
इसके अलावा दंगे के दौरान मदद के लिए लोगों द्वारा पुलिस को की गई कॉल्स और पुलिस द्वारा इन कॉल्स पर की गई कार्रवाई का विवरण किसी भी तरह धारा 8(1) की तीनों उपधाराओं के दायरे में नहीं आएगा. ये जानकारी जनहित से जुड़ी हुई है.
एफआरआई अपने आप में एक सार्वजनिक दस्तावेज होता है लेकिन हैरानी की बात है कि पुलिस ने ये जानकारी देने से भी मना कर दिया. मृतकों और घायलों से जुड़ी सूचना भी नहीं दी गई, जो कि पहले ही दिल्ली के कई अस्पताल सार्वजनिक कर चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1994 में आर. राजगोपाल बनाम तमिलनाडु मामले में अपने फैसले मे कहा था कि एफआईआर जैसे सार्वजनिक दस्तावेज में दर्ज की गई निजी जानकारी निजता के दायरे में नहीं है. इसमें एकमात्र शर्त ये है कि अगर एफआईआर यौन उत्पीड़न या अपहरण से जुड़ा हुआ है तो महिला की पहचान उजागर नहीं किया जाता है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने अपने ऐतिहासिक निजता के अधिकार वाले फैसले में बरकरार रखा है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत सरकार मामले में महत्वपूर्ण निर्देश दिया था कि सरकारी वेबसाइटों के जरिये एफआईआर की जानकारी खुद ही दी जानी चाहिए. इसलिए एफआईआर से जुड़ी जानकारी को आरटीआई के तहत मना करना इन निर्देशों का उल्लंघन होगा.
जब द वायर ने पूछा कि जो सूचना स्वत: पुलिस को सार्वजनिक करनी चाहिए, ऐसी जानकारी का भी खुलासा करने से उन्होंने क्यों मना किया, इस पर एमए रिजवी ने कहा, ‘मुझे जो सूचना देनी थी, वो मैंने दे दी. अगर आप खुश नहीं तो अपील फाइल करिए. अपील में हम देखेंगे कि आपको सूचना देनी है या नहीं.’
ध्यान रहे कि ये जरूर है कि आरटीआई एक्ट की धारा 8(1) में विभिन्न चीजों से जुड़ी जानकारी से खुलासे की छूट दी गई है, लेकिन इसकी एक शर्त ये भी है कि अगर छूट प्राप्त जानकारी भी व्यापक सार्वजनिक हित से जड़ी हुई है तो ये जानकारी आम जनता को दी जानी चाहिए.
आरटीआई एक्ट की धारा 8(2) के तहत अगर मांगी गई जानकारी धारा 8(1) के तहत छूट प्राप्त के दायरे में है तब भी यदि संरक्षित हितों की तुलना में जनहित भारी पड़ता है तो ऐसी जानकारी का खुलासा अवश्य किया जाना चाहिए.
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी कहते हैं कि सूचना देने से मना करने का कोई आधार नहीं है और जवाब से पता चलता है ये सिर्फ सूचना न देने की कोशिश है. यह कल्पना करना भी असंभव है कि किस तरह से ऐसी जानकारी का खुलासा करने से किसी की जान या सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘जन सूचना अधिकारी को सूचना देने से मना करते हुए इसका कारण बताना चाहिए था कि किस आधार पर वे इन धाराओं का उल्लेख कर रहे हैं. जन सूचना अधिकारी ने मनमानी ढंग से सूचना देने से मना किया है.‘
दिल्ली पुलिस ने यही रवैया इस संबंध में दायर की गईं अन्य आरटीआई आवेदनों के साथ भी अपनाया है.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के एक्सेस टू इन्फॉर्मेश प्रोग्राम के प्रोग्राम हेड वेंकटेश नायक ने दिल्ली दंगे में मारे गए लोगों, गिरफ्तार किए गए लोगों के नाम, दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम के नोटिस बोर्ड पर दिखाए गए गिरफ्तार लोगों की सर्टिफाइड प्रति, दंगे के दौरान सभी पुलिस स्टेशनों में हिरासत में लिए गए लोगों के नाम, पुलिस स्टेशन-वार दर्ज एफआईआर और दिल्ली पुलिस वेबसाइट पर एफआईआर अपलोड न करने के संबंध में लिए गए फैसले से जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रति मांगी थी.
लेकिन पुलिस ने द वायर को जैसा जवाब दिया है वैसा ही नायक को भी भेजा और जानकारी देने से मना कर दिया.
नायक ने कहा, ‘दंगे में मारे गए मृतकों की जानकारी संबंधित अस्पतालों ने दी है, जिसका कई मीडिया रिपोर्ट्स में उल्लेख किया गया है. मैंने ये जानकारी इसलिए मांगी गई थी, ताकि इसकी पुष्टि की जा सके कि जो खबरें मीडिया में चल रही हैं वो सही हैं या नहीं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जहां तक गिरफ्तार किए गए और हिरासत में लिए गए लोगों का सवाल है ये जानकारी वैसे भी सीआरपीसी की धारा 41सी के तहत स्वत: सार्वजनिक की जानी चाहिए. सीआरपीसी में कहीं भी इस जरूर कार्य को करने पर रोक के लिए किसी भी तरह की छूट नहीं है. हिरासत से जुड़ी जानकारी न देना संविधान के तहत सुनिश्चित स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है.’
आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि आरटीआई एक्ट जन सूचना अधिकारी को ये इजाजत नहीं देता है कि कि अगर कोई जानकारी सीआरपीसी के तहत स्वत: सार्वजनिक की जानी चाहिए तो ऐसी सूचना का खुलासा करने से वो मना कर दें.
द वायर ने सभी आरटीआई के संबंध में जन सूचना अधिकारी के जवाब के खिलाफ अपील दायर कर दिया है.