विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में 15 अप्रैल से शुरू हुई गेहूं ख़रीद के लिए राज्य सरकार ने 55 लाख टन गेहूं ख़रीद का लक्ष्य रखा है. अब तक 5,831 ख़रीद केंद्रों ने 1.95 लाख किसानों से गेहूं खरीदा है. इस हिसाब से एक खरीद केंद्र ने 22 दिनों में औसतन 33 किसानों से गेहूं ख़रीदा, यानी एक दिन में औसतन 1.5 किसान ही गेहूं बेच सके.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के कारण देश की एक बहुत बड़ी आबादी को गरीबी की ओर जाने के खतरों का सामना कर रही है. कृषि जगत भी इस समस्याओं से अछूता नहीं है.
उत्तर प्रदेश में बिजनौर के रहने वाले रविंदर सिंह ने अपनी छह एकड़ भूमि पर गेहूं की फसल लगाई थी लेकिन वे करीब 50 क्विंटल उत्पादन का एक दाना भी बेच नहीं पाए हैं.
उन्होंने कहा, ‘जब मैं खरीद केंद्र पर गया तो उन्होंने कहा कि गेहूं में बहुत ज्यादा नमी है और इसे खरीदने से मना कर दिया.’ अब लॉकडाउन के चलते सिंह के पास कोई और विकल्प नहीं है कि वे अपने उत्पाद को कहीं और बेच पाए.
वे बताते हैं, ‘पहले का समय रहा होता तो मैं पड़ोसी जिले या आटा चक्की पर ले जाकर इसे बेच लेता. वे एमएसपी से कम दाम जरूर देते लेकिन कम से कम मैं इसे बेच तो पाता. लेकिन इस समय तो ये विकल्प भी नहीं बचा.’
ये कहानी सिर्फ रविंदर सिंह की ही नहीं है बल्कि देश, खासकर उत्तर प्रदेश, के कई किसानों को इसी तरह की कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
गेहूं समेत अन्य रबी फसलों की खरीदी इस समय जारी है लेकिन ज्यादातर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना उत्पाद बेचने से वंचित होते हुए दिखाई दे रहे हैं.
आलम ये है कि देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीदी इस कदर धीमी रफ्तार पर है कि राज्य के खरीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी गेहूं नहीं खरीद पा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य एवं रसद विभाग द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 10 खरीद एजेंसियों के कुल 5,831 खरीद केंद्रों पर सात मई तक में 1,94,819 किसानों से 10.46 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है.
राज्य में पिछले महीने की 15 अप्रैल से गेहूं खरीदी चालू है और राज्य सरकार ने इस बार 55 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है. इस तरह पिछले 22 दिन में 5831 खरीद केंद्रों ने 1.95 लाख किसानों से गेहूं खरीदा है.
इसका मतलब है कि एक खरीद केंद्र ने इतने दिनों में औसतन 33 किसानों से गेहूं खरीदा. इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में औसतन मात्र 1.5 किसानों से गेहूं खरीदा है, जो दो किसानों से भी कम है.
वहीं अगर गेहूं खरीद की मात्रा से तुलना की जाए तो उत्तर प्रदेश में एक खरीद केंद्र ने पिछले 22 दिनों में 179.41 टन गेहूं खरीदा है. इस तरह एक खरीद केंद्र एक दिन में औसतन 8.15 टन गेहूं खरीद रहे हैं.
कृषि विशेषज्ञों और किसानों का कहना है कि ये काफी कम खरीदी है, जिसका खामियाजा किसान को अपने उत्पाद को औने-पौने दाम पर बेचकर भुगतना पड़ेगा.
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अब तक में एक किसान से औसतन 53 क्विंटल या 5.3 टन गेहूं खरीदा गया है.
खास बात ये है कि अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा खरीद केंद्र हैं लेकिन इसके मुकाबले खरीद काफी कम हो रही है.
कोरोना महामारी के दौर में भी कम खरीद के कारण न सिर्फ किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं मिल पा रहा, बल्कि कृषि उत्पाद का बाजार मूल्य भी एमएसपी से कम पर बना हुआ है.
एमएसपी की सिफारिश करने वाली केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक उत्तर प्रदेश देश में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, लेकिन यहां के सिर्फ सात फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है.
किसानों को एमएसपी का लाभ दिलाने में खरीद केंद्रों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हालांकि पिछले तीन सालों सिर्फ एक बार ही उत्तर प्रदेश सरकार निर्धारित लक्ष्य के जितना गेहूं खरीद पाई है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार ने वर्ष 2017-18 में 40 लाख मीट्रिक टन, 2018-19 में 50 लाख मीट्रिक टन और 2019-20 में 55 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था.
हालांकि इस दौरान राज्य सरकार क्रमश: 36.99 लाख टन, 52.92 लाख टन और 37.04 लाख टन ही गेहूं खरीद पाई.
10 खरीद एजेंसी, 5,831 खरीद केंद्र, लेकिन खरीद नाममात्र
उत्तर प्रदेश में खाद्य विभाग की विपणन शाखा, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ), उत्तर प्रदेश राज्य कृषि एवं औद्योगिक निगम (यूपीएग्रो), यूपी राज्य खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम (एसएफसी), यूपी कर्मचारी कल्याण निगम (केकेएन), भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित (एनसीसीएफ), नैफेड, उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव यूनियन (यूपीसीयू) और उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ (यूपीएसएस) कुल दस एजेंसियां हैं, जो गेहूं खरीदती हैं.
इसमें से सबसे ज्यादा खरीदी यूपीपीसीएफ और खाद्य विभाग की विपणन शाखा द्वारा की जाती है. इस बार गेहूं खरीद के लिए यूपीपीसीएफ ने कुल 3109 खरीद केंद्र लगाए हैं, जिन पर सात मई तक 98,518 किसानों से 4,76,586.54 टन गेहूं खरीदा गया है, जो राज्य में हुई कुल खरीदी का लगभग 50 फीसदी है.
इस तरह यूपीपीसीएफ के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में करीब 32 किसानों से गेहूं खरीदी हुई और एक दिन में इसके एक खरीद केंद्र में राज्य के औसत से भी कम करीब 1.44 किसानों से खरीददारी की गई.
यदि गेहूं की मात्रा की तुलना करें, तो इस एजेंसी के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में औसतन 153 टन की खरीदी हुई और एक दिन में करीब सात टन गेहूं खरीदी हुई जो कि राज्य स्तर के औसत से कम है.
खाद्य एवं रसद विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक यूपीपीसीएफ एक किसान से औसतन करीब 48 क्विंटल या 4.84 टन ही गेहूं खरीद रही है.
राज्य की दूसरी सबसे बड़ी गेहूं खरीद एजेंसी खाद्य विभाग की विपणन शाखा का भी यही हाल है. इस एजेंसी ने इस बार गेहूं खरीदी के लिए कुल 930 खरीद केंद्र लगाए हैं.
इन केंद्रों पर सात मई तक में 40,828 किसानों से 2.20 लाख टन गेहूं खरीदी हुई है. इस तरह एजेंसी के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में औसतन करीब 44 किसानों से गेहूं खरीदा गया. यानी एजेंसी के एक खरीद केंद्र पर एक दिन में करीब दो किसानों से गेहूं खरीदा गया है.
यदि गेहूं की मात्रा के आधार पर आकलन करें, तो खाद्य विभाग की विपणन शाखा के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में औसतन 237.51 टन गेहूं खरीदा गया. इस तरह एक केंद्र पर एक दिन में करीब 11 टन गेहूं खरीदा जा रहा है जो कि राज्य की औसत से थोड़ा ज्यादा तो है लेकिन वैसे काफी कम ही है.
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक खरीद एजेंसी खाद्य विभाग की विपणन शाखा एक किसान से औसतन करीब 54 क्विंटल या 5.41 टन गेहूं खरीद रही है.
उत्तर प्रदेश की तीसरी और चौथी सबसे बड़ी खरीद एजेंसी यूपीसीयू और यूपीएसएस हैं और इनका भी हाल करीब-करीब वैसा ही है. राज्य में गेहूं खरीदी के लिए दोनों एजेंसियों ने 550 और 442 खरीद केंद्र लगाए हैं और पिछले 22 दिनों में इन पर 18.34 हजार और 12.36 हजार किसानों से खरीदी हुई है.
इस तरह यूपीसीयू के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में औसतन 33 किसानों और यूपीएसएस के एक खरीद केंद्र पर औसतन 27 किसानों से खरीदी हुई. यानी यूपीसीयू के एक खरीद केंद्र पर एक दिन में 1.5 किसान और यूपीएसएस के एक खरीद केंद्र पर एक दिन में इससे भी कम किसानों से खरीदी हुई.
खरीद एजेंसी यूपीसीयू ने सात मई तक में 1.16 लाख किसानों से गेहूं खरीदा है. एजेंसी के एक खरीद केंद्र पर पिछले 22 दिनों में करीब 222 टन गेहूं खरीदी गया, यानी कि एक केंद्र पर एक दिन में करीब 10 टन गेहूं की खरीददारी हो रही है.
यूपीएसएस की स्थिति इससे भी खराब है. इसके एक खरीद केंद्र पर एक दिन में करीब 7.4 टन गेहूं खरीदा जा रहा है, जो राज्य औसत से भी काफी कम है. बाकी की अन्य छह खरीद एजेंसियों का भी यही हाल है.
भारतीय किसान संघ के नेता दिगंबर सिंह कहते हैं कि बिजनौर जिले में 43 खरीद केंद्र हैं लेकिन इसमें से सिर्फ पांच केंद्र ही काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘बाकी केंद्र या तो बंद पड़े हैं या तो खरीददारी ही नहीं कर रहे है. ये पूरी खरीदी प्रक्रिया मात्र एक दिखावा है.’
बेमौसम बारिश और तत्काल खरीदी नहीं होने की वजह से सामान्य दिनों के मुकाबले गेहूं में धीरे-धीरे और नमी आ रही है. सिंह कहते हैं, ‘इसलिए अब उन्हें ये कहने का मौका मिल गया है कि गेहूं में पहले की तुलना में और ज्यादा नमी है. वे सीधे मना कर देते हैं कि गेहूं की गुणवत्ता अच्छी नहीं है.’
ये पहला ऐसा मौका नहीं है जब राज्य में इतनी धीमी रफ्तार और इतने कम किसानों से गेहूं की खरीदी हो रही है. रबी खरीदी वर्ष 2019-20 के दौरान इन्हीं 10 खरीद एजेंसियों के 4,982 खरीद केंद्रों पर उत्तर प्रदेश के 7.24 लाख किसानों से खरीदी की गई थी.
यानी कि एक खरीद केंद्र पर औसतन करीब 146 किसानों से खरीदी की गई थी. पिछले साल 15 अप्रैल से लेकर 30 जून तक (कुल 75 दिन) गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी. इस तरह एक दिन में एक खरीद केंद्र ने करीब दो किसानों से ही गेहूं खरीदा था.
इतने ज्यादा खरीद केंद्र होने के बावजूद उत्पादन की तुलना में काफी कम किसानों से गेहूं खरीदना राज्य की योगी सरकार पर सवालिया निशान खड़े करता है.
पिछले साल उत्तर प्रदेश में कुल उत्पादन का 11.30 फीसदी ही खरीदी हुई. जबकि देश के कुल उत्पादन में सबसे ज्यादा 31.4 फीसदी हिस्सा यूपी का था. इसके उलट पंजाब में कुल उत्पाद का 72.62 फीसदी खरीदी हुई थी. हरियाणा में सबसे ज्यादा 79.97 फीसदी खरीदी हुई थी.
खरीदी के बाद भुगतान में भी देरी
उत्तर प्रदेश में जिन किसानों की खरीदी हो गई है, उन्हें भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जालौन के एक किसान निशांत पालीवाल बताते हैं कि उन्होंने 15 दिन पहले 30 क्विंटल गेहूं बेचा था लेकिन अभी तक उन्हें उनके 57,750 रुपये का भुगतान नहीं किया गया है.
पालीवाल ने कहा, ‘उन्होंने कहा था कि दो दिन के भीतर पैसा आ जाएगा. लेकिन अभी तक नहीं आया है. हर दूसरे दिन मैं केंद्र पर जाता हूं और वे हर बार कहते हैं कि कल आ जाएगा. अच्छा होता कि मैं किसी प्राइवेट एजेंट या आटा चक्की को बेच देता.’
किसान ने कहा कि प्राइवेट में कम दाम पर जरूर बेचना पड़ता लेकिन कम से कम ये सिरदर्द तो न होता.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के अध्यक्ष वीएम सिंह कहते हैं कि हकीकत ये है कि सरकार खरीदी करना ही नहीं चाहती है और इसलिए जानबूझकर ऐसी प्रक्रिया बनाई गई है ताकि किसान मजबूर होकर कहीं प्राइवेट में बेचे, जहां उसे कम दाम मिल पाएगा.
उन्होंने कहा, ‘एक फसल की कटाई के बाद अगली फसल की बुवाई के लिए किसान को तुरंत पैसे की जरूरत होती है. ऐसे में जब भुगतान होने में इतने दिन लगेंगे तो कौन सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचना चाहेगा. किसान मजबूर होकर कहीं और बेच देता है.’