अमीरों-नेताओं के चुनावी बॉन्ड की छपाई और बैंक कमीशन का ख़र्च करदाता उठा रहा: आरटीआई

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अब तक क़रीब 19,000 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की छपाई हो चुकी है. ख़ास बात ये है कि इनकी छपाई, बिक्री और इसे भुनाने में बैंक का जो कमीशन बनता है, इसके ख़र्च की भरपाई केंद्र सरकार कर रही है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अब तक क़रीब 19,000 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की छपाई हो चुकी है. ख़ास बात ये है कि इनकी छपाई, बिक्री और इसे भुनाने में बैंक का जो कमीशन बनता है, इसके ख़र्च की भरपाई केंद्र सरकार कर रही है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: देश के विभिन्न वर्गों द्वारा चुनावी बॉन्ड पर सवाल उठाए जाने और सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका लंबित होने के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार इसकी छपाई जारी रखे हुए है.

आलम ये है कि अब तक में करीब 19,000 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की छपाई हो चुकी है और कुल 13 चरणों में 6200 करोड़ रुपये से ज्यादा के चुनावी बॉन्ड की बिक्री हो चुकी है. सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दायर किये एक आवेदन के जरिये इसका खुलासा हुआ है.

दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि चुनावी बॉन्ड को छापने में जो खर्च आता है उसकी भरपाई बॉन्ड का खरीददार नहीं, बल्कि सरकार कर रही है. अप्रत्यक्ष रूप से जनता की जेब से इस खर्च का भुगतान किया जा रहा है.

एक चुनावी बॉन्ड को छापने 25 रुपये का खर्च आता है और इस पर छह फीसदी केंद्र एवं छह फीसदी राज्य जीएसटी भी लगता है.

इसके अलावा चुनावी बॉन्ड को खरीदने और इसे भुनाने के लिये बैंक का जो भी कमीशन बनता है, उसकी भरपाई भी करदाताओं के पैसों से किया जा रहा है.

आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा दायर किये गए आवेदन के तहत भारतीय स्टेट बैंक ने बताया है कि वर्ष 2018 में कुल 7131.50 करोड़ रुपये के 6,042,50 चुनावी बॉन्ड की छपाई हुई थी. वहीं वर्ष 2019 में 11,400.00 करोड़ रुपये के 60,000 चुनावी बॉन्ड को छापा गया.

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इन बॉन्ड्स की छपाई महाराष्ट्र के नासिक में इंडियन सिक्योरिटी प्रेस (आईएसपी नासिक) में होती है. प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि अब तक एक हजार रुपये के 256,000 बॉन्ड्स, दस हजार रुपये के 256,000 बॉन्ड्स, एक लाख रुपये के 93,000 बॉन्ड्स, 10 लाख रुपये के 26,600 बॉन्ड्स और एक करोड़ रुपये के 14,650 बॉन्ड्स की छपाई हो चुकी है.

इन 664,250 चुनावी बॉन्ड को छापने में कुल 1.86 करोड़ रुपये का खर्च आया है, जिसकी भरपाई केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग को करनी होती है यानी करदाताओं के पैसे से खर्च उठाया जा रहा है. ये राशि न तो बॉन्ड के खरीददार से वसूली जाती है और न ही राजनीति दल ये खर्च उठाते हैं.

एसबीआई के उप महाप्रबंधक एवं केंद्रीय जन सूचना अधिकारी नरेश कुमार रहेजा द्वारा दिए गए जवाब के मुताबिक अब तक में कुल 13 चरणों में 6210.40 करोड़ रुपये के 12,452 चुनावी बॉन्ड की बिक्री की गई है, जिसमें से सबसे ज्यादा 91.81 फीसदी राशि के एक करोड़ रुपये वाले चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं.

बाकी के 7.91 फीसदी राशि के दस लाख रुपये वाले चुनावी बॉन्डों की बिक्री हुई. एक हजार और दस हजार के चुनावी बॉन्ड की बिक्री नाममात्र ही है.

एसबीआई से प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक अब तक में एक करोड़ रुपये के 5702 बॉन्ड, दस रुपये के 4911 बॉन्ड, एक लाख रुपये के 1722 बॉन्ड, दस हजार के 70 बॉन्ड और एक हजार के 47 बॉन्ड बेचे गए हैं.

कम राशि वाले चुनावी बॉन्ड की छपाई से करदाताओं पर बेवजह का बोझ

उपर्युक्त आंकड़ों से ये स्पष्ट है कि एक हजार और 10 रुपये के चुनावी बॉन्ड की बिक्री बहुत ही ज्यादा कम हुई है. हर एक बॉन्ड को छापने में जितना खर्चा आता है उसकी भरपाई केंद्र सरकार करती है. इसलिये इसे इस रूप में देखा जा रहा है कि सरकार कम राशि के चुनावी बॉन्ड की छपाई कर करदाताओं के पैसे की बर्बादी कर रही है.

Electoral Bond RTI
आईएसपी नासिक द्वारा वित्त मंत्रालय को भेजा गया चुनावी बॉन्ड छपाई का एक बिल, जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक चुनावी बॉन्ड छापने का खर्च 25 रुपये है.

खास बात ये है कि कम राशि वाले बॉन्ड बनाने की सलाह भाजपा ने ही दी थी और कहा था इससे हर वर्ग के लोगों को राजनीतिक दलों को दान देने में मदद मिलेगी. केंद्र सरकार जब चुनावी बॉन्ड योजना पर विचार कर रही थी तो उन्होंने राष्ट्रीय पार्टियों से इस पर उनकी राय मांगी थी.

इसे लेकर 24 अगस्त 2017 भाजपा के महासचिव भूपेंद्र यादव ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर 10 हजार रुपये और इससे कम के चुनावी बॉन्ड बनाने पर विचार करने के लिये कहा था.

यादव ने अपने पत्र में लिखा था, ‘दानकर्ता की पहचान गोपनीय रखते हुए सभी वर्ग के लोगों को इसमें भागीदार बनाने के लिये बड़े मूल्य के साथ दो हजार, पांच हजार और 10 हजार रुपये के भी चुनावी बॉन्ड उपलब्ध कराने की जरूरत है.’ 

द वायर  ने पिछले साल नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में ही इस संबंध में रिपोर्ट कर जानकारी दी थी.

केंद्र सरकार इस सुझाव के साथ आगे बढ़ी और एक हजार एवं 10 हजार रुपये के 256,000 चुनावी बॉन्ड छाप दिये है लेकिन अभी तक इनमें से 47 बॉन्ड और 70 बॉन्ड की बिक्री हुई है. इन दो तरह के बॉन्ड को छापने में कुल 1.43 करोड़ रुपये का खर्च आया है.

चुनावी बॉन्ड के बैंक कमीशन का भी वहन जनता के सिर

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों से यह भी खुलासा होता है कि चुनावी बॉन्ड को बेचने और इसे भुनाने में एसबीआई का जो कमीशन बनता है उसकी भरपाई भी केंद्र सरकार करती है. पिछले 13 चरणों में इन बॉन्ड्स की बिक्री और भुनाने पर आए कमीशन को लेकर एसबीआई ने केंद्र सरकार के पास 3.48 करोड़ रुपये का बिल भेजा है.

भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य महाप्रबंधक (टीबीयू) वसुधा भट्ट कुमार द्वारा छह फरवरी 2020 को वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के संयुक्त सचिव (बजट) को लिखे गए पत्र के मुताबिक एसबीआई ने 13वें चरण को मिलाकर कुल 3.48 करोड़ रुपये के कमीशन की भरपाई करने के लिये कहा है. 13 जनवरी 2020 से 22 जनवरी 2020 तक चले 13वें चरण में एसबीआई का कमीशन 5.34 लाख रुपये बना था.

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दस्तावेज से पता चलता है कि केंद्र ने सातवें चरण (यानी कि जनवरी 2019) तक के लिए 77.44 लाख रुपये के कमीशन का भुगतान कर दिया है.

एसबीआई ने वित्त मंत्रालय से बकाया कमीशन लगभग 2.70 करोड़ रुपये 18 फीसदी जीएसटी के साथ जमा कराने के लिये कहा है. इसके अलावा पूर्व में किये गए भुगतान पर जो 18 फीसदी की जीएसटी नहीं दी गई थी, उसे भी जमा कराने की मांग की है.

इस पत्र के जरिये यह भी पता चलता है कि सरकार चुनावी बॉन्ड्स पर 10 फीसदी टीडीएस के बजाय पांच फीसदी ही टीडीएस काट रही है. एसबीआई ने आर्थिक कार्य विभाग को लिखा है कि सरकार ने सातवें चरण तक के लिए जो 77.43 लाख रुपये का भुगतान किया है उस पर उन्होंने 10 फीसदी का टीडीएस काटा है, इसलिए केंद्र पांच फीसदी टीडीएस वापस बैंक को लौटाए.

यहां तक की सातवें चरण तक के कमीशन भुगतान में वित्त मंत्रालय की ओर से 270 रुपये की कमी रह गई थी, एसबीआई ने इसे भी जमा कराने को कहा है.

चुनावी बॉन्ड्स बेचने के लिए 14वें चरण की शुरुआत अप्रैल महीने में होने वाली थी. हालांकि शायद कोरोना वायरस के चलते ऐसा नहीं हो सका. हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार इस चरण वाली बिक्री के लिये कुछ दिन बाद शुरुआत कर सकती है या नहीं.

वैसे तो चुनावी बॉन्ड कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि यदि बिक्री का कोई चरण छूट जाता है तो कुछ दिन बाद इसकी शुरुआत की जा सकती है. लेकिन साल 2018 में सरकार ने ऐसा किया था, जब जनवरी 2018 के हिस्से की खरीदी मार्च 2018 में हुई थी. उस समय जनवरी महीने में चुनावी बॉन्ड खरीदी प्रकिया की पूरी रूपरेखा तैयार नहीं की जा सकी थी.

चुनावी बॉन्ड को लेकर क्यों है विवाद

चुनाव नियमों के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति या संस्थान 2000 रुपये या इससे अधिक का चंदा किसी पार्टी को देता है तो राजनीतिक दल को दानकर्ता के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ती है.

हालांकि चुनावी बॉन्ड ने इस बाधा को समाप्त कर दिया है. अब कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को चंदा दे सकता है और उसकी पहचान बिल्कुल गोपनीय रहेगी. इस माध्यम से चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को सिर्फ ये बताना होता है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये उन्हें कितना चंदा प्राप्त हुआ.

इसलिए चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है. इस योजना के आने के बाद से बड़े राजनीतिक दलों को अन्य माध्यमों (जैसे चेक इत्यादि) से मिलने वाले चंदे में गिरावट आई है और चुनावी बॉन्ड के जरिये मिल रहे चंदे में बढ़ोतरी हो रही है.

साल 2018-19 में भाजपा को कुल चंदे का 60 फीसदी हिस्सा चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुआ था. इससे भाजपा को कुल 1,450 करोड़ रुपये की आय हुई थी. वहीं वित्त वर्ष 2017-2018 में भाजपा ने चुनावी बॉन्ड से 210 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त होने का ऐलान किया था.

चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स इन्हीं संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि कई बार से इस सुनवाई को लगातार टाला जाता रहा है.

याचिका में कहा गया है कि इन संशोधनों की वजह से विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए हैं और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैधता प्राप्त हो गई है. साथ ही इस तरह के राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता है.

पिछले साल चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई सारे खुलासे हुए थे, जिसमें ये पता चला कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी.

हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया.

आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.

वहीं चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दायर कर कहा कि चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को मिलने वाला चंद पारदर्शिता के लिए खतरनाक है.

इसके अलावा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीति दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया.

इसके अलावा चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट बनने से पहले ही भाजपा को इसके बारे में जानकारी थी, बल्कि मोदी के सामने प्रस्तुति देने से चार दिन पहले ही भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर चुनावी बॉन्ड योजना पर उनकी पार्टी के सुझावों के बारे में बताया था.