नरेंद्र मोदी के पूरे प्रशासनिक-राजनीतिक सफर पर निगाह डालें तो पाएंगे कि मोदी खुद रेनकोट पहनकर नहाने की कला में मनमोहन सिंह से ज्यादा माहिर हैं.
नरेंद्र मोदी सही मायनों में एक चतुर राजनेता हैं जो जानता है कि कैसे किसी व्यक्ति विशेष पर सधा हुआ वार करना है. हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के दस साल के कार्यकाल को ‘रेनकोट पहनकर नहाने’ की संज्ञा दी. इस बात पर चाहे कितना ही विवाद क्यों न हुआ हो पर ये सच है. 2जी स्पेक्ट्रम, कोल ब्लॉक और कॉमनवेल्थ खेल घोटाले जैसे स्कैम मनमोहन सिंह की नाक के नीचे हुए पर इन सब के बावजूद उनके ऊपर कभी भ्रष्टाचार का कोई सीधा आरोप नहीं लगा.
उनके कट्टर आलोचक उन्हें ‘मौन मोहन सिंह’ कहते रहे पर उन्हें भ्रष्ट प्रधानमंत्री किसी ने नहीं कहा. कांग्रेस इस ‘रेनकोट’ की उपमा पर खासे ग़ुस्से में हैं. इस बयान ने उनकी कमज़ोर नब्ज़ पर हाथ रख दिया है. पर इस पर ग़ुस्सा करने की बजाय कांग्रेस को इस पर जवाब देना चाहिए कि कैसे ढेरों आरोपों में घिरे होने के बावजूद मोदी पाक़-दामन बच जाते हैं. उनकी छवि भी कीचड़ में डूबे कमल सरीखी है.
14 सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान गृह मंत्रालय का प्रभार भी मोदी ही संभालते थे. जहां एक ओर गृह राज्यमंत्री अमित शाह गैर-न्यायिक हत्याओं के मामले में गिरफ्तार हुए, जेल गए और फिर मामले से निकल गए, इन आरोपों के घेरे में मोदी कभी नहीं आए. जब वे और उनके वफादार साथी पुलिस अधिकारी जेल में थे, मोदी ने इन हत्याओं के आधार पर समाज में ध्रुवीकरण की दीवार खड़ी कर दी. उनकी एक मंत्री मायाबेन कोडनानी को नरोदा पाटिया नरसंहार के आरोप में 28 साल की सज़ा सुनाई गई.
बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी पर पाटिया में ही औरतों और बच्चों की हत्या का आरोप लगा, वे जेल गए और बाद में ज़मानत पर रिहा भी हो गए. बजरंगी अहमदाबाद में लंबे समय तक एक ऐसा नाम रहे, जिसपर लड़कियों के अपहरण, फिल्मों की रिलीज़ रोकने, अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने के आरोप लगते रहे. यही बाबू बजरंगी खुलेआम उस समय मुख्यमंत्री मोदी से अपनी निकटता ज़ाहिर किया करते थे. साल 2012 में चश्मदीदों की निशानदेही और और स्पाई-कैमरे पर उनकी स्वीकारोक्ति के बाद उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई. पर उनके बयान में मोदी के नाम की तरफ किया गया इशारा अफवाह कहकर ख़ारिज कर दिया गया.
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में मोदी 1000 से ज़्यादा लोगों की हत्याओं के ज़िम्मेदार थे, पर पार्टी के अंदर और बाहर, किसी भी न्यायिक जांच के समय हर जगह, वे राजनीति में बचे रहने के लिए हमेशा ख़ुद को निर्दोष बताते हुए इस बात का खंडन करते रहे.
असल में अगर ‘रेनकोट पहनकर नहाने’ को खेल माना जाए तो मोदी इसमें मनमोहन सिंह से ज़्यादा माहिर खिलाड़ी हैं. कैग द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम, कोल ब्लॉक्स, केजी बेसिन पर आई रिपोर्ट्स ने मनमोहन सिंह को राजनीतिक और निजी दोनों रूप से प्रभावित किया था, पर गुजरात में मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए घोटालों पर आई कैग रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं हुई.
2012 में कैग द्वारा गुजरात की मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी. केजी बेसिन गैस फील्ड के 4,57,000 एकड़ हिस्से, जिसे सरकार ने एक नीलामी में हासिल किया था, की 10% की हिस्सेदारी बाराबडोस की एक रहस्यमयी कंपनी जियोग्लोबल रिसोर्स (जिसकी पूंजी मात्र 64 डॉलर ही थी) को मुफ्त में दी गई थी.
मोदी सरकार के प्रेस कांफ्रेंस में बताए गए एस्टीमेट के अनुसार इस गैस फील्ड की कीमत 20 बिलियन डॉलर थी. हालांकि इस गैस फील्ड की मालिक राज्य सरकार की गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) ने ड्रिलिंग और जांचों में 20, 000 करोड़ रुपये से ज़्यादा ख़र्च किया था, साथ ही जियोग्लोबल के हिस्से के 20,000 करोड़ रुपये का भुगतान भी जीएसपीसी द्वारा ही किया गया था. इस मुद्दे को मुख्यधारा के मीडिया ने नज़रअंदाज़ किया क्योंकि उस वक़्त मोदी की प्रसिद्धि अपने उठान पर थी और कॉरपोरेट मीडिया मालिक जानते थे कि आगे किसका दौर आने वाला है.
इस मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की एक घंटे की प्रेस कांफ्रेंस का किसी ने संज्ञान नहीं लिया. आज तक इस संदेहपूर्ण सौदे पर न कोई पूछताछ की गई, न ही कोई जांच ही हुई. किसी ने जानने की कोशिश तक नहीं की कि इस जियोग्लोबल के पीछे कौन लोग थे, जिन्होंने जीएसपीसी के साथ इस संयुक्त उद्यम से जुड़ने के महज़ 6 दिन पहले इसे बनाया था. पिछले साल कैग की एक नई रिपोर्ट आई थी, जिसमें गुजरात की मोदी सरकार को जनता के 20,000 करोड़ रुपये गैस फील्ड जांच में बर्बाद करने का दोषी बताया गया था. इसमें कहा गया था कि सरकार ने इसे लेकर जो वादा किया तो उसका मात्र 1/10 फीसदी ही वापस मिला. इस बात को सामने लाना भी किसी टीवी चैनल ने ज़रूरी नहीं समझा.
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ हफ़्तों बाद ही कैग ने मार्च 2013 में ख़त्म हुए वित्त वर्ष पर पांच अलग-अलग रिपोर्ट जारी की थीं. इस रिपोर्ट में में 25,000 करोड़ रुपये की आर्थिक अनियमितताओं के बारे में बताया गया था, जिसमें रिलायंस पेट्रोलियम, एस्सार पावर और अडानी समूह को 1,500 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ देने की बात कही गई थी.
अगर मनमोहन सरकार ने कौड़ियों के भाव कांग्रेस के दोस्तों के कोल ब्लॉक बांटे थे, तो मोदी सरकार ने भी गुजरात के मुख्यमंत्री के बतौर अडानी स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) के लिए 1 रुपये से लेकर 32 रुपये प्रति स्क्वायर मीटर की दर पर ज़मीन मुहैया करवाई थी. भारत होटल्स, लार्सन एंड टूब्रो, एस्सार स्टील और रियल एस्टेट व्यवसायी के. रहेजा को भी प्रमुख जगहों पर बाज़ार मूल्य की तुलना में कौड़ियों के भाव ज़मीन दी गई थी.
इसमें वो सब था, जिसे क्रोनी कैपिटलिज़्म की निशानी कहा जाता है: मनमानी, राजकोष का निजी लाभ के लिए प्रयोग और मुख्यमंत्री और इन लाभार्थियों के बीच नज़दीकी. 2011 में जब इन ज़मीन सौदों पर विपक्ष की जांच की मांग तेज़ हुई तब मुख्यमंत्री ने एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया, जो इस तरह के मामले दबाने के लिए काफी आज़माया हुआ तरीक़ा है. इस कमीशन की जांच रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. न ही मीडिया ने इसमें रुचि दिखाई, न ही किसी कोर्ट ने… गुजरात सरकार की भी इस रिपोर्ट को सामने लाने में कम ही दिलचस्पी रही. यही वो समय था जब मोदी का ‘रेनकोट’ उनका भरपूर साथ निभा रहा था.
13 सालों तक मुख्यमंत्री मोदी ने गुजरात में किसी लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की. उनकी सरकार ने आरए मेहता जैसे ईमानदार और सक्षम रिटायर्ड जस्टिस को लोकायुक्त नियुक्त करने के ख़िलाफ़ जनता के टैक्स के 45 करोड़ रुपये बर्बाद किए. मोदी को सत्ता में आए 3 साल होने को हैं पर अब तक उन्होंने एक लोकपाल भी नियुक्त नहीं किया है. बावजूद इसके वे ख़ुद को काले धन के ख़िलाफ़ खड़े योद्धा की तरह पेश करते हैं.
वहीं भाजपा ने 2004-15 के बीच पार्टी को मिले फंड के करीब तीन चौथाई हिस्से को अनाम स्रोतों द्वारा प्राप्त कैश के रूप में दिखाया है. इसी फंड के सहारे मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं और अब वे डंके की चोट पर कैशलेस अर्थव्यवस्था के फायदे गिनवाते हैं.
मोदी जब प्रधानमंत्री बनने के लिए दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे तब यूपीए सरकार ने मोदी के सबसे बड़े साथी गौतम अडानी के बिज़नेस पर जांच बिठा दी थी . राजस्व-आसूचना निदेशालय (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) ने अपनी जांच में हज़ारों करोड़ का घोटाला पाया, जहां बताया गया था कि अडानी समूह द्वारा आयात किए जा रहे प्रोजेक्ट पर ज़रूरत से ज़्यादा फ़ायदा मिल रहा है जबकि उस पर कस्टम ड्यूटी या तो कम है या फिर है ही नहीं. यह रिपोर्ट 2014 के आम चुनावों के परिणाम से कुछ समय पहले ही आई थी. अडानी के खिलाफ सबूतों को देखते हुए यूपीए सरकार ने मामला सीबीआई को सौंप दिया. अब इस बात को भी लगभग तीन साल होने को हैं, सीबीआई जो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट करता है, इस फाइल को दबाए चुप बैठा है.
पिछले साल जुलाई में डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस की एक और रिपोर्ट में सामने आया कि अडानी और अनिल धीरूभाई अंबानी समूह सहित देश की 40 बड़ी एनर्जी कंपनियां आयात किए जा रहे कोयले के गलत दाम देने के मामले में दोषी पाई गई हैं यानी ये कंपनियां महंगे दामों पर कोयला खरीदती हैं, जिसका सीधा असर आम जनता पर बिजली के बढ़े हुए बिल के रूप में पड़ता है. इस घोटाले की क़ीमत तक़रीबन 29,000 करोड़ रुपये आंकी गई है. इस लेखक ने प्रधानमंत्री कार्यालय, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को इस रिपोर्ट और इसकी जांच के लिए कई पत्र लिखे हैं पर इन पत्रों की प्राप्ति सूचना के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ. जांच या इस घोटाले की सच्चाई सामने आने का कोई रास्ता नहीं दिखता, वहीं मोदी जनता के सामने जब-तब अडानी और अनिल अंबानी के साथ अपने प्रेम प्रदर्शित करते दिखते रहते हैं.
यूपीए को घोटालों के बाद मंत्रियों या पार्टी नेताओं को हटाने की शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी, आदर्श घोटाले के बाद अशोक चह्वाण को हटाया गया, कॉमनवेल्थ घोटाले के बाद सुरेश कलमाड़ी, 2जी स्पेक्ट्रम के बाद ए. राजा, घूसखोरी में नाम आने के बाद पवन बंसल, कोल घोटाले की रिपोर्ट के बाद अश्विनी कुमार को बाहर का रास्ता दिखाया गया. पर मोदी को उनकी पार्टी के नेताओं के नाम घोटाले में जुड़ने पर कोई शर्म या झिझक नहीं होती.
व्यापमं घोटाले में ढेरों गड़बड़ियों, 40 से ज्यादा मौतों के बाद भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर मोदी ने एक शब्द नहीं कहा. वसुंधरा राजे और उनके परिवार पर ललित मोदी से जुड़े विवाद पर भी प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोले. मार्च 2014 में चंडीगढ़ में एक चुनावी रैली में यूपीए सरकार पर बरसते हुए मोदी ने दाग़ी नेता पवन बंसल को टिकट देने पर निशाना साधा था. पर मोदी के बाएं हाथ अमित शाह ने बीएस येदियुरप्पा को फिर से पार्टी में जगह दी, ये वही येदियुरप्पा हैं जिन पर बेल्लारी घोटाले सहित कई घोटालों के ढेरों आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें अप्रैल 2016 में कर्नाटक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया भी गया था. इन सबके बावजूद मोदी में यह हिम्मत है कि वे कांग्रेस की ‘जन्मपत्री’ निकालने की बात करते हैं. प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में वे विदेशी बैंकों में जमा हज़ारों करोड़ की कीमत का काला धन वापस लाने की बात किया करते थे, पर उनके प्रधानमंत्री रहते हुए विजय माल्या जैसा घोटालेबाज़ फ़रार होने में कामयाब हो गया.
मोदी के ऐसे ग़लत कामों की सूची लंबी है. गुजरात में हुई हिंसा और तबाही में उनके द्वारा बरती गई चूक और उसके बाद आपराधिक न्यायिक प्रणाली में हुई ग़लतियां किसी भी समझदार आदमी के विवेक को चुनौती-सी देती हैं और एक देश के बतौर यह हम पर ‘कलंक’ है. दादरी जैसी घटनाओं पर उनकी चुप्पी मनमोहन सिंह की चुप्पी से अलग नहीं है. सहारा-बिड़ला डायरी मामले में शायद कभी कोई जांच हो कि कैसे उनकी सरकार ने आयकर में अनुचित छूट दी, पर यह सत्ता में बैठे लोगों की रक्षा के लिए सत्ता के दुरुपयोग का बड़ा उदाहरण है. पुलिस की मदद से राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न, नागरिक अधिकारों के लिए लड़ रहे कार्यकर्ताओं का शोषण, संस्थाओं को एक-एक करके संगठित रूप से उनकी स्वायत्तता छीनने में इस सरकार ने पिछली यूपीए सरकार का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
अगर मनमोहन सिंह ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ थे तो नोटबंदी ने दिखा दिया है कि मोदी एक निरंकुश प्रधानमंत्री हैं.
मनमोहन सिंह ने कभी किसी गलती के लिए आपराधिक मुक़दमे का तो सामना नहीं किया, हालांकि मोदी पर भी अब तक कोई इस तरह का आरोप नहीं लगा है. यह विडंबना ही है कि आज़ाद भारत के इतिहास में ऐसी केंद्रीय सरकार, जिसने दस साल तक शासन किया, जिस पर ढेरों घोटालों के आरोप लगे थे, उसके प्रधानमंत्री की छवि जनता में ‘मि. क्लीन’ की ही बनी रही. उसी तरह वर्तमान प्रधानमंत्री, जो आज़ाद हिंदुस्तान की सबसे धोखेबाज़, असंवेदनशील और मनमानी सरकार चला रहे हैं, वो भी ख़ुद को एक ईमानदार आदमी के रूप में दिखाते हैं.
हालांकि इतिहास मोदी के साथ कैसा न्याय करेगा, यह अलग बात है पर अभी तक तो वे अपने और पार्टी के ग़लत कामों के बावजूद बिना किसी आरोप के राजनीतिक फ़ायदे उठाने में सफल रहे हैं. इसे हमारी न्याय-व्यवस्था की कमी ही मानिए कि यह किसी ताक़तवर व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई फ़ैसला नहीं दे पाती या फिर वैसा ही है जिसे मोदी ने ‘रेनकोट पहनकर नहाने’ की उपमा दी है. दोनों नेताओं की शैली भले ही विपरीत हो, पर दोनों ही इस कला में पारंगत हैं.
(लेखक दिल्ली डायलॉग और डेवलपमेंट कमीशन के अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी के नेता हैं)