सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 11 सूचना आयोगों की वेबसाइट पर लॉकडाउन में कामकाज के संबंध में कोई भी नोटिफिकेशन उपलब्ध नहीं था. बिहार, मध्य प्रदेश और नगालैंड राज्य सूचना आयोगों की वेबसाइट ही काम नहीं कर रही थी.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए 25 मार्च से ही देशव्यापी लॉकडाउन लागू है. देश के लाखों प्रवासियों, दिहाड़ी मजदूरों के लिए ये लॉकडाउन एक बहुत बड़ी विपत्ति साबित हो रहा है.
आय के सभी साधन बंद होने और जरूरतमंदों को राहत देने के लिए सरकारी मदद अपर्याप्त होने के कारण देश की बहुत बड़ी आबादी भूख संबंधी समस्याओं से जूझ रही है.
अपने घरों की ओर पैदल लौट रहे लोगों की सड़कों पर लंबी-लंबी कतार ही इस महामारी में भारत की तस्वीर बन गई है. सूचनाओं के अभाव के कारण लोगों को अपने अधिकारों और राशन, पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल जैसे हकों को प्राप्त करना मुश्किल है.
ऐसे में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को उचित ढंग से लागू करने की महत्ता और बढ़ जाती है.
लेकिन हकीकत ये है कि आरटीआई एक्ट को सही तरीके से अमल में लाने और लोगों के इस मौलिक अधिकार की सुरक्षा करने के लिए बनाए गए देश भर के अधिकतर सूचना आयोग बिल्कुल बंद पड़े हुए हैं.
आरटीआई एक्ट को मजबूत करने की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था सतर्क नागरिक संगठन (एसएनएस) के हालिया आकलन से ये पता चला है कि आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत स्थापित देश के 29 में से 21 सूचना आयोग 25 मार्च, 2020 (जब से लॉकडाउन लागू हुआ) से लेकर 15 मई, 2020 तक कोई भी सुनवाई नहीं कर रहे थे.
इसमें असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के सूचना आयोग शामिल हैं.
जो आयोग आरटीआई मामलों की सुनवाई कर उसका निपटारा कर रहे थे, उसमें केंद्रीय सूचना आयोग और अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और तेलंगाना राज्य सूचना आयोग शामिल हैं. मणिपुर, पंजाब और राजस्थान सिर्फ बेहद जरूरी मामले या जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे थे.
आंध्र प्रदेश राज्य सूचना आयोग सिर्फ उन्हीं मामलों का संज्ञान ले रहा था जिसमें जानकारी देने से मना किया गया है और बिना किसी सुनवाई के उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर मामलों का निपटारा किया जा रहा था.
मालूम हो कि सूचना आयोग आरटीआई एक्ट के तहत अंतिम अपीलीय संस्था है.
लॉकडाउन के दौरान जब सामान्य रूप से सुनवाई करना आसान नहीं था तो 29 में से सिर्फ सात सूचना आयोगों ने ही ये प्रावधान किया कि वे जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़े मामलों की तत्काल सुनवाई करेंगे. केंद्रीय सूचना आयोग और अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, मणिपुर, पंजाब और तेलंगाना के राज्य सूचना आयोगों ने ये विशेष प्रावधान किया था.
राजस्थान सूचना आयोग ने चार मई 2020 से ऐसे मामलों की तत्काल सुनवाई करने की शुरुआत की.
एसएनएस की रिपोर्ट में ये बताया गया है कि कौन-कौन से सूचना आयोगों द्वारा लॉकडाउन के दौरान अपने कामकाज को लेकर कोई नोटिफिकेशन जारी किया गया. इसके अलावा इसमें यह भी बताया गया है कि विभिन्न आयोगों में कितने सूचना आयुक्त काम कर रहे हैं, कितने मामले लंबित हैं और आयोगों की वेबसाइट चल रही है या नहीं.
रिपोर्ट के मुताबिक 29 में से 11 सूचना आयोगों की वेबसाइट पर लॉकडाउन में कामकाज के संबंध में कोई भी नोटिफिकेशन उपलब्ध नहीं था. वहीं बिहार, मध्य प्रदेश और नगालैंड राज्य सूचना आयोगों की वेबसाइट ही काम नहीं कर रही थी.
ये काफी ज्यादा चिंताजनक स्थिति है क्योंकि ऐसे समय में जब सभी ऑफिस बंद हों तो जनता के पास जानकारी प्राप्त करने का एकमात्र जरिया वेबसाइट ही रह जाता है.
ये पहला मौका नहीं है जब ऐसा हो रहा है. रिपोर्ट के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार राज्य सूचना आयोग की वेबसाइट पिछले 28 महीने से भी ज्यादा समय से बंद पड़ी हुई है. साल 2018 में प्रकाशित एक आकलन में भी ये पाया गया था कि बिहार की वेबसाइट बंद पड़ी हुई है.
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सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों की समय पर नियुक्ति न होना और सभी पदों को न भरना आरटीआई एक्ट के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है. आमतौर पर जब तक कोई इस मामले को लेकर कोर्ट नहीं जाता है तब तक सूचना आयुक्तों के पदों को नहीं भरा जाता है.
पिछले साल फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण आदेश दिया था जिसमें समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए दिशानिर्देश तय किए गए थे. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि पारदर्शिता कानून सही तरीके से काम करता रहे, इसमें सूचना आयोगों की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है.
हालांकि अभी भी देश के कई आयोगों में आयुक्तों के पद खाली पड़े हुए हैं. लॉकडाउन जैसी स्थिति में ये समस्या और गंभीर हो जाती है.
रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड और त्रिपुरा के सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं हैं. नतीजतन ये आयोग बिल्कुल निष्क्रिय हो गए हैं. त्रिपुरा के एक मात्र कार्यरत आयुक्त मुख्य सूचना आयुक्त अप्रैल 2020 में रिटायर हो गए.
वहीं झारखंड के कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त और आयोग के एकमात्र सूचना आयुक्त आठ मई 2020 को रिटायर हो गए. इसके कारण इन आयोगों में एक भी सुनवाई नहीं हो पा रही है.
वहीं देश के 29 में से चार सूचना आयोग बिना मुख्य सूचना आयुक्त के काम कर रहे हैं. इसमें बिहार, गोवा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल है. राजस्थान का सूचना आयोग दिसंबर 2018 से ही करीब 15 महीने से भी ज्यादा समय से मुख्य सूचना आयुक्त के बिना काम कर रहा है.
गोवा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त फरवरी 2020 और बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त जुलाई 2019 में रिटायर हुए थे.
एसएनएस ने सूचना आयोगों की आधिकारिक वेबसाइट्स पर उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की है. जिन आयोगों की वेबसाइट पर संबंधित जानकारी उपलब्ध नहीं थी, उन्हें टेलीफोन के जरिए प्राप्त किया गया है.
एसएनएस की सदस्य अंजली भारद्वाज कहती हैं कि गोपनीयता की आड़ में लोगों के अधिकारों का दमन किया जाता है और भ्रष्टाचार पनपता है.
उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 संकट के समय सूचना आयोगों को पारदर्शिता कानून के प्रावधानों का अनुपालन कराने की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आरटीआई एक्ट को कुचला न जाए.’
उन्होंने कहा कि इस महामारी के प्रकोप को देखते हुए सूचना मिलने में यदि थोड़ी बहुत देरी होती है तो उसे समझा जा सकता है, लेकिन आयोगों को सूचना दिलवाने के कानूनी कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए, खासकर आवश्यक वस्तुओं और सुविधाओं से संबंधित मामलों में.
सुप्रीम कोर्ट में अपने कई फैसलों में कहा है कि सूचना का अधिकार भारत का संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 का भाग है जो बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी और जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है.
सतर्क नागरिक संगठन ने सिफारिश की है कि सभी सूचना आयोग समय पर मामलों का निपटारा करें, जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़ी सूचनाओं को प्राथमिकता दी जाए, सूचना आयुक्तों के खाली पदों को जल्द भरा जाए, सभी लोगों को अपील करने का मौका दिया जाए और आरटीआई आवेदन तथा अपील के लिए ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया जाए.