द वायर ने पीएम केयर्स खाते में प्राप्त कुल अनुदान, खाते से निकाली गई राशि, अनुदान प्राप्ति और पैसा निकासी के संबंध में पीएमओ के साथ पत्राचार और पीएम केयर्स खाता को बनाने से जुड़े दस्तावेजों को मुहैया कराने की मांग की थी.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा पीएम केयर्स के संबंध जानकारी देने से मना किए जाने के बाद अब भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने भी इस संबंध में कोई भी सूचना देने से इनकार कर दिया है.
एसबीआई ने दलील दी है कि ये जानकारी विश्वास संबंधी और निजी है, इसलिए ऐसी सूचना साझा नहीं की जा सकती है. आरटीआई मामलों के जानकार और पूर्व सूचना आयुक्तों ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा है कि ये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एवं आरटीआई कानून का उल्लंघन है.
कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के नाम पर जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए भारत सरकार ने 28 मार्च को ‘पीएम केयर्स फंड’ नाम का एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया था. इस ट्रस्ट के चेयरमैन प्रधानमंत्री हैं और रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं.
पीएम केयर्स फंड ने अनुदान प्राप्त करने के लिए एसबीआई की नई दिल्ली शाखा में खाता खोला है, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार इस फंड को लेकर उच्च स्तर की गोपनीयता बरत रही है. सरकार ने अभी तक ये सार्वजनिक नहीं किया है कि इस फंड में कितनी राशि प्राप्त हुई है और कितना खर्च किया गया है.
इंडियास्पेंड वेबसाइट ने सरकार की ओर से जारी विभिन्न प्रेस रिलीज और मीडिया रिपोर्ट्स का आकलन कर अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि पीएम केयर्स फंड में कम से कम 9,677.9 करोड़ रुपये जमा हुए हैं, लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई सरकारी आंकड़ा जारी नहीं किया गया है.
इस संबंध में आधिकारिक जानकारी प्राप्त करने के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत कई आवेदन दायर किए गए हैं, लेकिन या तो सूचना देने से मना कर दिया जा रहा है या फिर जानकारी देने की समयसीमा पूरी होने के बाद भी सूचना नहीं दी जा रही है.
द वायर ने भी इस संबंध में कई आवेदन दायर किए हैं जिसमें से एक आवेदन एसबीआई मुख्यालय और इसकी दिल्ली शाखा में दायर किया गया था.
इसमें पीएम केयर्स खाते में अब तक प्राप्त कुल अनुदान, इस खाते से निकाली गई राशि, अनुदान प्राप्ति और पैसा निकासी के संबंध में पीएमओ एवं अन्य विभागों के साथ किए गए पत्रचार और पीएम केयर्स खाता को बनाने से जुड़े दस्तावेजों को मुहैया कराने की मांग की गई थी.
हालांकि एसबीआई ने इन सभी बिंदुओं पर ये कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि ये सूचना बैंक को किसी के विश्वास में प्राप्त हुई है और यह निजी जानकारी है, इसलिए ऐसी सूचनाएं नहीं दी जा सकती हैं.
एसबीआई के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने अपने जवाब में कहा, ‘आपके द्वारा मांगी गई जानकारी का खुलासा करने से आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 8(1)(ई) और 8(1)(जे) के तहत छूट प्राप्त है.’
धारा 8(1)(ई) के तहत यदि कोई सूचना किसी के द्वारा विश्वास में दी गई हो या वैश्वासिक नातेदारी (फिड्युशरी रिलेशनशिप) के रूप में उपलब्ध हो, तो ऐसी सूचना का खुलासा करने से छूट मिला हुआ है. हालांकि यदि जन सूचना अधिकारी को लगता है कि इस सूचना से व्यापक जनहित जुड़ा हुआ तो उन्हें जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए.
इसी तरह धारा 8(1)(जे) के तहत अगर कोई ऐसी सूचना है जो कि निजी है और जिसके खुलासे का जनहित से कोई संबंध नहीं है या ऐसी जानकारी देने से किसी की निजता में दखल देना होता है तो इस तरह की सूचना देने से भी मनाही है.
हालांकि इस प्रावधान में एक शर्त ये है कि अगर ऐसी कोई जानकारी संसद या राज्य विधायिका को दी जाती है तो इसे आम जनता को देने से मना नहीं किया जा सकता है.
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू कहते हैं कि इस मामले में बैंक द्वारा धारा 8(1)(ई) और 8(1)(जे) का सहारा लेकर जानकारी देने से मना नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘धारा 8(1)(जे) व्यक्ति की निजता को सुरक्षा प्रदान करता है. पीएम केयर्स व्यक्ति नहीं है. इसलिए पीएम केयर्स का निजता अधिकार नहीं है. यह प्रधानमंत्री की कोई व्यक्तिगत या निजी सूचना नहीं है.’
आचार्युलू ने कहा कि इस मामले में एसबीआई के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के पास सिर्फ एक ही विकल्प है कि वे सूचना का खुलासा करने से पहले एक बार पीएम केयर्स से पूछ लें क्योंकि ये थर्ड पार्टी सूचना है. लेकिन जानकारी देने से मना करने का उनको कोई अधिकार नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘यदि पीएम केयर्स जानकारी देने से मना करता है तब भी जनहित को ध्यान में रखते हुए एसबीआई सूचना का खुलासा करे.’
वहीं आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक मानना है कि इस जानकारी का खुलासा करने से पहले एसबीआई को पीएम केयर्स से परामर्श लेने की भी जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘आरटीआई एक्ट के तहत थर्ड पार्टी से पूछने की स्थिति तब उत्पन्न होती है जहां सीपीआईओ जानकारी देना चाहता है लेकिन वो ये कनफर्म करना चाहता है कि कहीं संबंधित जानकारी उन्हें गोपनीय करार करके तो नहीं दी गई है. ये आम तौर पर तब होता है जब हम किसी की निजी बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी मांगना चाहते हैं, लेकिन ये लोगों का पैसा है, सार्वजनिक हित के लिए है. इसलिए ये बिल्कुल अलग मामला है.’
क्या है वैश्वासिक नातेदारी मामला?
आरटीआई एक्ट के तहत कई आवेदनों पर वैश्वासिक नातेदारी (फिड्युशरी रिलेशनशिप) यानी कि किसी के विश्वास में प्राप्त हुई सूचना का हवाला देते हुए बैंकों ने जानकारी देने से मना किया है.
यहां तक कि आरबीआई ने भी कई बार ऐसा किया है, जिसमें से एक प्रसिद्ध जयंतीलाल एन. मिस्त्री मामला है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने आरबीआई की सभी दलीलों को खारिज कर दिया था और कहा था कि आरबीआई और बैंक के बीच वैश्वासिक नातेदारी का मामला नहीं बनता है.
खुद आरबीआई द्वारा साल 2015 में जारी एक मास्टर सर्कुलर के मुताबिक बैंक और कस्टमर के बीच ‘वैश्वासिक नातेदारी’ नहीं बल्कि ‘संविदात्मक संबंध’ यानी कि कॉन्ट्रैक्चुअल रिलेशनशिप होता है.
इस मास्टर सर्कुलर के पैराग्राफ 25 में ग्राहक की गोपनीयता वाले कॉलम में लिखा है, ‘गोपनीयता बनाए रखने के लिए बैंकरों का दायित्व बैंकर और ग्राहक के बीच कॉन्ट्रैक्चुअल रिलेशनशिप से उत्पन्न होता है.’
फिड्युशरी संबंध यानी कि वैश्वासिक नातेदारी की स्थिति में फिड्युशरी (एजेंट) को लाभार्थी के सर्वोत्तम हितों में कार्य करने की आवश्यकता होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई एवं अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय, भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री, केंद्रीय जन सूचना अधिकारी बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल जैसे मामलों में वैश्वासिक और वैश्वासिक नातेदारी को परिभाषित किया है.
आदित्य बंदोपाध्याय मामले में कोर्ट ने कहा है, ‘इस न्यायालय ने यह माना कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ई) के तहत छूट उन लाभार्थियों पर लागू नहीं होती है, जिनके बारे में वैश्वासिक (फिड्युशरी) जानकारी रखता है. दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक प्राधिकरण के पास लाभार्थियों से संबंधित उपलब्ध जानकारी को स्वयं लाभार्थियों से छिपाया या मुहैया कराने से मना नहीं किया जा सकता है.’
कोर्ट ने वैश्वासिक नातेदारी के उदाहरणों के रूप में बताया कि क्लाइंट और वकील के बीच, मरीज और डॉक्टर के बीच, अनाथ आश्रम चलाने वाले और यहां रह रहे बच्चों के बीच, कंपनी और शेयरहोल्डर्स के बीच, माता-पिता और बच्चे के बीच, ट्रस्ट और इसके लाभार्थियों के बीच जैसी स्थिति में फिड्युशरी रिलेशनशिप स्थापित होता है.
हालांकि कोर्ट ने इन फैसलों में बैंक और ग्राहक के बीच ऐसा कोई संबंध स्थापित होने की बात नहीं की है.
आरबीआई की ‘फिड्युशरी’ दलील को खारिज करते हुए लोन डिफॉल्टर्स के नाम, कारण बताओ नोटिस, इंस्पेक्शन रिपोर्ट्स जैसी जानकारी का खुलासा करने का आदेश देने वाले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी की इस संबंध में राय थोड़ी अलग है.
गांधी कहते हैं कि इस मामले में एसबीआई द्वारा ये कहना कि मांगी गई जानकारी निजी है, ये बिल्कुल गलत है. लेकिन उन्हें सीपीआई द्वारा दी गई वैश्वासिक नातेदारी की दलील सही प्रतीत होती है.
उन्होंने कहा, ‘आरबीआई की ‘फिड्युशरी रिलेशनशिप’ वाली दलील इसलिए सही नहीं थी, क्योंकि बैंकों को कानून के मुताबिक आरबीआई को ये सूचनाएं मुहैया करानी होती है, इसलिए आरबीआई इस आधार पर जानकारी देने से मना नहीं कर सकता है. यहां पर पीएम केयर्स के पास विकल्प था कि वे एसबीआई के अलावा कहीं और खाता खोल सकते थे. एसबीआई में खाता खोलने के लिए उन्हें कोई बाध्य नहीं कर रहा.’
हालांकि आचार्युलू का कहना है कि बैंक इस मामले में आरटीआई की धारा 8(1)(ई) का सहारा ले ही नहीं सकते हैं. ये किसी व्यक्ति का अकाउंट नहीं बल्कि पब्लिक अकाउंट है जिसमें जनता अनुदान दे रही है. इसलिए लोगों को जानने का हक है कि इस खाते में कितना पैसा आया और कितना खर्च हुआ.
इससे पहले पिछले महीने द वायर ने रिपोर्ट दायर कर बताया था कि किस तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक विवादित कथन का सहारा लेते हुए पीएम केयर्स के संबंध में सूचना देने से इनकार कर दिया था.
द वायर ने इस संबंध में प्रथम अपील दायर कर दी है.