‘वे जल्द से जल्द लौटना चाहते थे कि बच्चों को देख सकें, पर ऐसे आएंगे ये नहीं सोचा था’

बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के एक गांव के रहने वाले सगीर अंसारी दिल्ली में सिलाई का काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान काम न होने और जमापूंजी ख़त्म हो जाने के बाद वे अपने भाई और कुछ साथियों के साथ साइकिल से घर की ओर निकले थे, जब लखनऊ में एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

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Chandigarh: Migrants from various districts of Uttar Pradesh ride bicycles to reach their native places, during the ongoing COVID-19 lockdown, in the outskirts of Chandigarh, Saturday, May 16, 2020. (PTI Photo)(PTI16-05-2020 000071B)

बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के एक गांव के रहने वाले सगीर अंसारी दिल्ली में सिलाई का काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान काम न होने और जमापूंजी ख़त्म हो जाने के बाद वे अपने भाई और कुछ साथियों के साथ साइकिल से घर की ओर निकले थे, जब लखनऊ में एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

Chandigarh: Migrants from various districts of Uttar Pradesh ride bicycles to reach their native places, during the ongoing COVID-19 lockdown, in the outskirts of Chandigarh, Saturday, May 16, 2020. (PTI Photo)(PTI16-05-2020 000071B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

‘एम्बुलेंस एक घंटे की देरी से पहुंची थी, अस्पताल में भी नियमों के नाम पर इलाज में देरी की गई. समय पर इलाज मिल जाता तो सगीर को बचाया जा सकता था,’ ये कहते हुए सगीर अंसारी के भाई सारिब रुआंसे हो जाते हैं.

26 साल के सगीर अंसारी पेशे से दर्जी थे और बीते पांच साल से दिल्ली में ही सिलाई का काम करते थे. वह दस हजार रुपये महीना तक कमा लेते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से काम-धंधा चौपट था.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के पास जाने के लिए सगीर अंसारी छह मई को दिल्ली से बिहार साइकिल से ही रवाना हुए, लेकिन रास्ते में एक तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी, इस दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.

गांव में सगीर के माता-पिता, उनकी पत्नी और तीन छोटे बच्चे हैं. उनके भाई सारिब अंसारी द वायर  से बातचीत में कहते हैं, ‘अंसारी की साइकिल से हम छह मई को दिल्ली से बिहार अपने घर के लिए निकले थे. बिहार के पूर्वी चंपारण में डैनियाटोला नाम का हमारा गांव है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘हम सात-आठ लोग एक साथ साइकिलों से बिहार के लिए निकले थे. अंसारी साइकिल चला रहा था और मैं उसके पीछे बैठा था. चार दिन के बाद हम नौ मई को लखनऊ के शहीद पथ पहुंचे थे.’

सगीर अंसारी. (फोटो: Special Arrangement)
सगीर अंसारी. (फोटो: Special Arrangement)

सगीर के साथ यहीं वह सड़क दुर्घटना हुई. सारिब कहते हैं, ‘सुबह के लगभग दस बज रहे थे. भूख लगी थी, तो सड़क किनारे साइकिल खड़ी की और सड़क के डिवाइडर पर बैठकर खाना खाने लगे. तभी एक तेज रफ्तार कार आकर डिवाइडर से टकराई और सगीर को टक्कर मार दी.

सारिब कहते हैं, ‘मेरे दिमाग में अभी भी वही दृश्य घूम रहा है. टक्कर लगते ही सगीर दूर जा गिरा. कार में दो लोग बैठे थे. कार का ड्राइवर घबरा हुआ था लेकिन तभी कार की पीछे की सीट पर बैठा आदमी बाहर निकला. उसने सगीर के इलाज का पूरा खर्च उठाने की बात कही थी. इधर हमने पुलिस और एम्बुलेंस दोनों को एक्सीडेंट की जानकारी दी.’

सारिब कहते हैं, ‘एम्बुलेंस लगभग एक घंटे की देरी से मौके पर पहुंची तब तक सगीर का बहुत खून बह चुका था और वह लगभग बेहोश था. एम्बुलेंस के आने के बाद उसे केजीएमयू ले जाया गया.’

वह आगे कहते हैं कि अस्पताल में भी मुश्किलें कम नहीं थी. अस्पताल ने नियमों का हवाला देकर इलाज में देरी की और सगीर ने समय पर इलाज नहीं मिलने पर जल्द ही दम तोड़ दिया.

मृतक सगीर के पड़ोसी दीपक (21) बिहार में बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं, वे बताते हैं,  ‘इस घटना के वक्त मैं गांव में ही था. ये सभी लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, रोज खाकर कमाने वाले लोग हैं. दुर्घटना के बाद इन्हें समझ ही नहीं आया कि क्या किया जाए? ये सभी लोग हमारे ही गांव के हैं तो किसी ने मुझे फोन कर इसके बारे में बताया.’

दीपक कहते हैं, ‘मैंने उनसे कहा कि कार ड्राइवर को पुलिस के आने तक रोककर रखे और कार का नंबर नोट कर लें लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही कार चालक फरार हो गया.’

दीपक ने बताया कि इसके बाद पुलिस को कार का नंबर दिया गया और पता लगा कि कार के मालिक का नाम अशोक सिंह है. घटना के वक्त उनका ड्राइवर गाड़ी चला रहा था और वो पीछे बैठे थे.

वे कहते हैं, ‘मैंने खुद उन्हें फोन किया था, वो तब तक परिवार की मदद करने की बात कर रहे थे लेकिन न तो सगीर के परिवार को हर्जाना मिल सका और न ही कार ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया. पुलिस कह रही है कि ड्राइवर फरार हैं और पुलिस तलाश में जुटी है.’

वहीं सारिब कहते हैं, ‘दुर्घटना के समय कार के मालिक ने सगीर के इलाज का खर्चा उठाने की हामी भरी थी लेकिन बाद में वह पलट गया.’

वह बताते हैं, ‘सगीर की मौत के बाद हमने उसे कई बार फोन किया लेकिन वह हर बार यही कहता रहा, जो करना है कर लो. मैं एक पाई नहीं दूंगा. उसके बाद उसका फोन बंद हो गया.’

सगीर अंसारी की पत्नी शाहिदा खातून की उम्र सिर्फ 21 साल है. 17 साल की उम्र में सगीर से उनकी शादी हुई थी. उनके तीन छोटे बच्चे हैं, जिसमें तीन और दो साल के बेटे और लगभग नौ महीने की बेटी है.

सगीर के गांव में उनके पास नाममात्र की जमीन है, जो गुजर-बसर करने लायक नहीं है. शाहिदा द वायर  से कहती हैं, ‘हमारी शादी से पहले ही वह कमाने के लिए दिल्ली चले गए थे, ठीक-ठाक कमा लेते थे, गुजारा हो जाता था. वो हर महीने समय से पैसे भेज दिया करते थे.’

सगीर की पत्नी शाहिदा और उनके बच्चे. (फोटो: Special Arrangement)
सगीर की पत्नी शाहिदा और उनके बच्चे. (फोटो: Special Arrangement)

वह आगे कहती हैं, ‘उनसे आखिरी बार फोन पर छह मई को बात हुई थी. उन्होंने कहा था कि दिल्ली से रवाना हो गए हैं और कुछ दिनों में गांव पहुंच जाएंगे. मेरे पास फोन नहीं है, पड़ोसी के फोन के जरिए ही उनसे बात होती थी.’

लॉकडाउन में श्रमिक वर्ग द्वारा भोगी जा रही मुश्किलों की झलक शाहिदा की बातों में भी मिलती है. वे बताती हैं, ‘वो बहुत परेशान थे. लॉकडाउन के बाद दो महीने दिल्ली में बड़ी मुश्किल से गुजारे थे, उनकी सारी जमापूंजी खत्म हो गई थी.’

शाहिदा कहती हैं, ‘पैसे जोड़ रहे थे ताकि बच्चों की परवरिश ठीक से हो. घर भी कई-कई महीनों में आते थे. इस लॉकडाउन ने मेरा सब कुछ छीन लिया है. मेरे शौहर की मौत लापरवाही से हुई है न? पहले कार वाले ने लापरवाही की, फिर एम्बुलेंस वाले ने और फिर अस्पताल ने. गरीब आदमी का कोई मोल ही नहीं है.’

प्रशासन से किसी प्रकार की मदद मिलने के बारे में पूछने पर शाहिदा कहती हैं, ‘बिहार सरकार से एक लाख रुपये का चेक मिला है. इसके अलावा एक संस्था की ओर से 40,000 रुपये दिए गए हैं. इन पैसों से घर चलाने में मदद तो मिलेगी लेकिन जो खालीपन हमेशा के लिए रह गया है, वो नहीं भर पाएगा.’

शाहिदा कहती हैं, ‘वह घर में अकेले कमाने वाले थे और खाने वाले हम सात लोग. ये पैसा भी कब तक चलेगा? बच्चे बहुत छोटे हैं. ससुर बीमार रहते हैं. गांव में हम पर कर्जा भी है, ये पैसा पूरी जिंदगी तो नहीं चल पाएगा न.’

इस पूरे प्रकरण में पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े करते हुए दीपक कहते हैं, ‘इस पूरी घटना में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने ही चाहिए. जिस कार ने सगीर को टक्कर मारी थी, उसका नंबर पुलिस को दे दिया गया था लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही.’

वे आगे कहते हैं, ‘हमें बता दिया गया कि कार अशोक सिंह नाम के व्यक्ति के नाम रजिस्टर्ड है. उनसे तब तक कोई पूछताछ नहीं की गई, जब तक हमने पुलिस पर दबाव नहीं बनाया. बाद में पुलिस ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि कार ड्राइवर फरार है और हम उसकी तलाश में जुटे हैं.’

लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर के मुताबिक, इस मामले में ड्राइवर के खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने का मामला दर्ज किया गया है और कार को जब्त कर लिया गया है लेकिन अभी तक मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

दीपक कहते हैं कि लखनऊ के एक स्थानीय एनजीओ ने इस हादसे का पता लगने के बाद एक वाहन का बंदोबस्त कर सगीर के शव को उनके गांव तक पहुंचाया था.

शाहिदा कहती हैं, ‘वह जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहते थे ताकि बच्चों को देख सकें. हम सब उनका इंतजार कर रहे थे लेकिन नहीं पता था कि वो इस तरह गांव लौटेंगे.’